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मांग नहीं मानी गई तो 26 जनवरी को किसान करेंगे ‘किसान गणतंत्र परेड’

शनिवार को दिल्ली में किसान नेताओं ने की प्रेस कॉन्फ्रेंस 

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केंद्र के 3 नए कृषि कानूनों को वापस लिए जाने समेत बाकी मांगों के साथ जारी आंदोलन के बीच किसान नेताओं ने सरकार को एक बार फिर चेतावनी दी है. किसानों के आंदोलन का समन्वय कर रही 7 सदस्यीय एक समिति ने शनिवार को दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर केंद्र सरकार से कहा कि अगर किसानों की मांगें नहीं मानी गईं तो दिल्ली के चारों ओर लगे मोर्चों से किसान 26 जनवरी को दिल्ली में आकर ट्रैक्टर ट्रॉली और बाकी वाहनों के साथ "किसान गणतंत्र परेड" करेंगे.

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इस प्रेस कॉन्फ्रेंस को संयुक्त किसान मोर्चा की राष्ट्रीय समन्वय समिति के सदस्यों बलबीर सिंह राजे वाल, दर्शन पाल, गुरनाम सिंह चढ़ूनी, जगजीत सिंह डल्लेवाल और योगेंद्र यादव ने संबोधित किया.

किसान नेताओं ने यह भी साफ किया कि यह परेड गणतंत्र दिवस की आधिकारिक परेड खत्म होने के बाद होगी.

किसान नेताओं ने कहा, “हमने सरकार को पहले दिन ही बता दिया था कि हम इन तीनों किसान विरोधी कानूनों को रद्द कराए बिना यहां से हटने वाले नहीं हैं. सरकार के पास दो ही रास्ते हैं: या तो वो जल्द से जल्द इस बिन मांगी सौगात को वापस ले और किसानों को एमएसपी पर खरीद की कानूनी गारंटी दे, या फिर किसानों पर लाठी-गोली चलाए. आर-पार की लड़ाई में अब हम एक निर्णायक मोड़ पर आ पहुंचे हैं. 26 जनवरी तक हमारे दिल्ली में डेरा डालने के दो महीने पूरे हो जाएंगे. हमने इस निर्णायक कदम के लिए गणतंत्र दिवस को चुना क्योंकि यह दिन हमारे देश में गण यानी बहुसंख्यक किसानों की सर्वोच्च सत्ता का प्रतीक है.”

संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से अब से 26 जनवरी के बीच कई स्थानीय और राष्ट्रीय कार्यक्रमों की घोषणा भी की गई है. किसान आंदोलन को पूरे देश में गति देने के लिए 6 जनवरी से 20 जनवरी तक ''सरकारी झूठ और दुष्प्रचार का भंडाफोड़'' करने के लिए "देश जागृति पखवाड़ा" मनाया जाएगा. इस पखवाड़े में देश के हर जिले में धरने और पक्के मोर्चे आयोजित किए जाएंगे.

संयुक्त किसान मोर्चा के मुताबिक,

  • अगर सरकार से 4 जनवरी की बातचीत नाकाम रहती है तो 6 जनवरी को किसान केएमपी एक्सप्रेसवे पर मार्च निकालेंगे. उसके बाद शाहजहांपुर पर मोर्चा लगाए किसान भी दिल्ली की तरफ कूच करेंगे.
  • 13 जनवरी को लोहड़ी/ संक्रांति के अवसर पर देशभर में "किसान संकल्प दिवस" बनाया जाएगा और तीनों कानूनों को जलाया जाएगा.
  • 18 जनवरी को महिला किसान दिवस मनाकर देश की खेती में महिलाओं के योगदान को रेखांकित किया जाएगा.
  • 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की याद में "आजाद हिंद किसान दिवस" मनाकर सभी राजधानियों में राज्यपाल के निवास के बाहर किसान डेरा डालेंगे.

किन कानूनों का विरोध कर रहे हैं किसान?

किसान संगठन कृषक (सशक्तीकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार अधिनियम 2020, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम 2020 और आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम 2020 को वापस लिए जाने की मांग कर रहे हैं.

सितंबर में बनाए गए इन तीनों कृषि कानूनों को सरकार ने कृषि क्षेत्र में एक बड़े सुधार के रूप में पेश किया है. उसने कहा है कि इससे बिचौलिये हट जाएंगे और किसान देश में कहीं भी अपनी उपज बेच पाएंगे.

मगर किसान संगठनों को आशंका है कि इन कानूनों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और मंडी व्यवस्था खतरे में आ जाएगी और किसानों को बड़े औद्योगिक घरानों पर निर्भर छोड़ दिया जाएगा. हालांकि, सरकार ने कहा है कि एमएसपी और मंडी व्यवस्था बनी रहेगी.

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