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किसानों-सरकार के बीच वार्ता का डेडएंड? सरकार अड़ी, किसान अडिग

ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार-किसानों के बीच बातचीत पटरी से उतर गई है. 

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वार्ता सिर्फ रुकी नहीं, टूट गई है- सरकार-किसान संगठनों की 11वें दौर की बातचीत बिना किसी नतीजे के लंच टाइम में ही खत्म हो जाने पर योगेंद्र यादव ने ये टिप्पणी की. अब ऐसा कहे जाने की वजहें हैं. 22 जनवरी की बैठक में जहां सरकार की तरफ से किसानों को नए कृषि कानून के अमल पर डेढ़ साल तक रोक लगाने और एक समिति बनाकर आंदोलन से जुड़े सभी पहलुओं का समाधान तलाशने का प्रस्ताव दिया गया. किसानों ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया और तीनों कानूनों को खत्म करने की अपनी मांग पर डटे रहे.

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बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी अपने बयानों में इस बात की पुष्टि की. लेकिन अगले दौर की बातचीत की तारीख सामने नहीं आई. ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार-किसानों के बीच बातचीत पटरी से उतर गई है.

अगले राउंड की बातचीत तय नहीं

बैठक के बाद कृषि मंत्री ने कहा-

  • अगर किसान कानूनों को स्थगित करने के प्रस्ताव पर बात करना चाहते हैं तो एक बार और चर्चा की जा सकती है.
  • भारत सरकार की कोशिश थी कि "वो सही रास्ते पर विचार करें जिसके लिए 11 दौर की वार्ता की गई. परन्तु किसान यूनियन कानून वापसी पर अड़ी रहीं."
  • सरकार ने किसान संगठनों को आंदोलन समाप्त करने हेतु समाधान की दृष्टि से श्रेष्ठतम प्रस्ताव दिया है.
  • 'जब आंदोलन की पवित्रता नष्ट हो जाती है तो निर्णय नहीं होता'

न्यूज एजेंसी IANS से किसान नेता बलवंत सिंह कहते हैं कि, "आज की मीटिंग में गतिरोध खड़ा हो गया. सरकार ने कानूनों को खत्म करने से साफ इनकार किया. हम किसान भी पीछे हटने वाले नहीं हैं. मीटिंग में कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि हमने आपको जो प्रपोजल दिया है उस पर विचार कीजिए, इससे अच्छा प्रपोजल हमारे पास नहीं है. अगर आपके (किसानों के) पास कोई प्रपोजल हो तो हमें बताएं, सरकार उस पर विचार करेगी."

किसान नेता राकेश टिकैत ने बताया कि सरकार की तरफ से कहा गया कि 1.5 साल की जगह 2 साल तक कृषि कानूनों को स्थगित करके चर्चा की जा सकती है. सरकार की तरफ से कोई दूसरा प्रस्ताव सरकार ने नहीं दिया.

संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से कहा गया कि सरकार "18 महीनों तक इन कानूनों पर रोक लगाने के प्रस्ताव" पर डटी है.

कुल मिलाकर मतलब साफ है कि सरकार कानूनों को वापस नहीं लेने पर अड़ी है, स्थगन का प्रस्ताव रख रही है. कमेटी बनाने का प्रस्ताव दे रही है. किसान प्रस्ताव मानने को तैयार नहीं हैं और 26 जनवरी पर परेड की तैयारी में हैं.

सरकार के प्रस्ताव पर एक भी प्रतिनिधि नहीं था सहमत

इस बीच कुछ ऐसी भी अटकलें लगाईं जा रही थी कि कुछ किसान संगठन 'विकल्पों' पर सोच रहे हैं. इस आंदोलन में मुखर रहे योगेंद्र यादव कहना है कि ऐसी बातें भ्रामक हैं, बैठक में एक भी प्रतिनिधि ने ऐसा नहीं कहा कि सरकार का प्रस्ताव माना जाए.

जो लोग ये मीडिया में फैला रहे हैं कि दो फाड़ हो गया है या दो ओपिनियन बन रहे हैं, ऐसी कोई बात ही नहीं हुई. पंजाब के संगठनों ने इससे पहले बातचीत की थी. एक भी संगठन ऐसा नहीं था जिसने सरकार के प्रस्ताव की बात स्वीकार की है. सरकार काल्पनिक तरह के विकल्प दे रही थी.
योगेंद्र यादव

26 जनवरी के ट्रैक्टर मार्च पर किसान-पुलिस के बीच गतिरोध

किसान सगंठनों की तरफ से ट्रैक्टर मार्च निकालने का ऐलान किया गया है, जिसपर भी किसानों और पुलिस के बीच गतिरोध बना हुआ है. किसानों की तरफ से ट्रैक्टर मार्च पर हुई दिल्ली पुलिस के साथ वार्ता को लेकर एक बयान जारी किया गया, जिसमें कहा गया है कि, "पुलिस अधिकारियों के साथ हुई वार्ता में पुलिस द्वारा एक रोडमैप किसान नेताओं के सामने रखा गया है, जिसपर किसान विचार करेंगे और शनिवार को जवाब देने की बात कही गई है."

दरअसल, दिल्ली पुलिस ने किसानों को दिल्ली के बाहर रैली निकालने को कहा है, लेकिन किसान संगठनों ने साफ किया है कि ये ट्रैक्टर मार्च दिल्ली के आउटर रिंग रोड पर ही होगा. मार्च को लेकर अब तक किसान संगठन अपनी मांग पर कायम हैं.

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