बातचीत पर बातचीत और फिर से बातचीत... केंद्र और किसानों के बीच कृषि कानूनों को लेकर यही कुछ चल रहा है. पिछले करीब एक हफ्ते से बातचीत का दौर खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा. चौथे दौर की बातचीत के बाद सभी को उम्मीद थी कि सरकार किसी अंतिम नतीजे तक पहुंचेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. सरकार ने एक बार फिर किसानों से वक्त मांगा है और अब 9 दिसंबर को फिर बातचीत होगी.
किसान स्पष्ठ तरीके से रखें मुद्दे- कृषि मंत्री
अब किसानों से लंबी बातचीत के बाद जब कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर विज्ञान भवन से बाहर निकले तो मीडिया ने सवाल पूछा कि आखिर क्यों इस मामले को इतना लंबा खींचा जा रहा है. इस सवाल पर केंद्रीय कृषि मंत्री कहीं न कहीं इसके लिए किसानों को ही जिम्मेदार ठहराते हुए नजर आए. नरेंद्र सिंह तोमर ने एक नहीं बल्कि कई बार इस बात का जिक्र किया कि किसानों ने स्पष्ठ तरीके से अपने मुद्दे नहीं रखे हैं. उन्होंने कहा कि वो उम्मीद करते हैं कि अगली बैठक में बिंदुओं पर किसान नेता अपनी स्पष्ठ राय रखेंगे.
अब कृषि मंत्री की इस बात को चौथे दौर की बातचीत से जोड़कर देखें तो, केंद्र ने पिछली बार कहा कि किसानों को बिंदुवार तरीके से अपनी समस्याओं को रखने के लिए कहा गया है. किसानों ने ठीक उसी तरह हर कानून पर अपनी आपत्तियों को सरकार के सामने रखा. लेकिन फिर सरकार ने कोई भी लिखित आश्वासन देने की बजाय मामले को चार और दिनों के लिए टाल दिया है. हालांकि हर बार समस्या का समाधान निकालने की बात हो रही है.
पीएम मोदी से चर्चा के बाद भी नहीं सुलझा मसला
अब इस सबके बीच कुछ और चीजों को देखना भी जरूरी है. पिछले कई दिनों से जो बातचीत चल रही है, उसमें केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल हिस्सा ले रहे हैं. लेकिन किसानों के साथ बातचीत से पहले और बातचीत के बाद बड़े नेताओं से इसे लेकर चर्चा हो रही है. पांचवे दौर की बातचीत से पहले पीएम मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और कृषि मंत्री के बीच करीब दो घंटे की बातचीत हुई.
पीएम मोदी के साथ किसानों के मसले पर बातचीत से हर कोई ये मानने लगा कि अब इस बैठक में आखिरी फैसला सरकार किसानों को सुना देगी. लेकिन सरकार ने फिर वक्त मांग लिया. अब सवाल ये उठता है कि क्या पीएम मोदी के साथ हुई बैठक में यही तय हुआ था? क्या मोदी सरकार कृषि कानूनों को लेकर अभी और विचार करने जा रही है? इन सभी सवालों के जवाब अगले कुछ दिनों में जरूर मिल सकते हैं.
अब अगले दौर की बातचीत में सरकार किसानों के मुद्दों को और छोटा कर सकती है और सिर्फ दो या तीन बातों में संशोधन की बात कर सकती है. क्योंकि अब तक जो किसानों ने मुद्दे रखे हैं, उन पर भी सरकार ने स्पष्ठता मांग ली है. यानी सरकार चाहेगी कि कानूनों में थोड़ा बहुत बदलाव करके किसानों को शांत किया जाए.
किसानों की दो टूक- हां या ना में जवाब दे सरकार
अब आते हैं किसानों की बात पर, किसानों ने सरकार से दू टूक कह दिया है कि वो अब हां या ना में बात करे. यानी ये बताए कि क्या सरकार इन कृषि कानूनों को खत्म करेगी या फिर नहीं. किसानों ने फिर सरकार से कहा कि वो एक साल तक दिल्ली की सड़कों पर रहने के लिए तैयार हैं. सरकार उन्हें बता दे कि वो कुछ नहीं कर सकती है, उन्हें कोई परेशानी नहीं है.
इसके अलावा किसानों ने ये भी साफ किया है कि प्रदर्शन लगातार जारी रहेगा और 8 दिसंबर को पूरे भारत में बंद बुलाया जा रहा है. किसान नेता इस बात से भी नाराज दिखे कि आखिर सरकार बैठक पर बैठक क्यों बुला रही है और फैसला लेने में इतनी देर क्यों हो रही है? साथ ही साफ किया गया है कि उन्हें संशोधन नहीं बल्कि कानून रद्द चाहिए.
फिलहाल केंद्र सरकार ने किसानों से और वक्त मांग लिया है, इस बीच सरकार क्या सोचती है और किन मुमकिन संभावनाओं पर विचार करती है ये देखना अब दिलचस्प होगा. क्योंकि एक तरफ सरकार है, जो अपने इन कानूनों को बिल्कुल सही ठहरा रही है, वहीं दूसरी तरफ किसान इन्हें रद्द करने के अलावा किसी भी दूसरे विकल्प के बारे में नहीं सोच रहे हैं.
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