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किसानों की चेतावनी, मॉनसून सत्र में रोज संसद के बाहर प्रदर्शन करेंगे 200 किसान

Farmers Protests को 7 महीने से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन अब तक उनके और सरकार के बीच कोई सहमति नहीं बन पाई है.

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दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन (Farmers Protests) को सात महीने से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन अब तक उनके और सरकार के बीच कोई सहमति नहीं बन पाई है. अब किसानों ने अपना आंदोलन तेज करने का ऐलान किया है. सिंघु बॉर्डर पर बैठक के बाद, संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) के नेताओं ने 4 जुलाई को प्रदर्शन की आगे की योजनाओं के बारे में बताया. किसानों ने पूरे मॉनसून सत्र में संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन करने की चेतावनी दी है.

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अपने बयान में संयुक्त किसान मोर्चा ने बताया कि वो 17 जुलाई को देश के सभी विपक्षी दलों को एक चेतावनी पत्र भेजेगा, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि मॉनसून सत्र का उपयोग किसानों के संघर्ष का समर्थन करने के लिए किया जाता है, और किसानों की मांगों को सरकार पूरा करे.

इसके अलावा, 22 जुलाई से, हर संगठन से पांच सदस्य और रोजाना कम से कम 200 प्रदर्शनकारी संसद के बाहर हर दिन मॉनसून सत्र के खत्म होने तक विरोध प्रदर्शन करेंगे.

पंजाब CM के घर का घेराव नहीं

पंजाब यूनियनों की तरफ से घोषणा की गई कि राज्य में बिजली की आपूर्ति के संबंध में स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ है, इसलिए मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के 'मोती महल' के घेराव के पूर्व घोषित कार्यक्रम को अभी स्थगित किया जाता है. संयुक्त किसान मोर्चा की पिछली बैठक में ये पहले ही तय हो गया था कि डीजल और रसोई गैस जैसी जरूरी वस्तुओं की बढ़ती कीमतों के खिलाफ 8 जुलाई को सुबह 10 बजे से दोपहर 12 बजे के बीच देशव्यापी विरोध प्रदर्शन होगा.

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल और संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधियों के बीच ग्यारह दौर की औपचारिक वार्ता हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई हल नहीं निकला है. सरकार का कहना है कि वो बातचीत के लिए तैयार है, बशर्ते किसान उन प्रावधानों पर चर्चा करने के लिए तैयार हों, जिनसे उन्हें समस्या है. सरकार कई बार कृषि कानूनों को निरस्त नहीं करने के अपने फैसले के बारे में भी बता चुकी है.

वहीं, किसानों इसी मांग पर अड़े हैं कि कृषि कानून वापस लिए जाएं. किसानों का कहना है कि ये कानून किसानों के खिलाफ है, और इन कानूनों को असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक तरीके से लाया गया है. किसान मोर्चा ने कहा, "दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक चुनी हुई सरकार अपने नागरिकों के सबसे बड़े वर्ग - किसानों - के साथ अहंकार का खेल खेल रही है. और देश के अन्नदाता के ऊपर क्रोनी पूंजीपतियों के हितों को चुनना पसंद कर रही है."

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