एक तरफ सरकार आम बजट के किसानों का बजट होने का दावा कर रही है, वहीं देश के कई किसान नेता और संगठन लगातार बजट को किसानों के लिए छलावा बता रहे हैं. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के बैनर तले देश की भर के 191 किसान संगठनों ने सरकार के खिलाफ राष्ट्रव्यापी संघर्ष का ऐलान किया है.
स्वराज इंडिया के कन्वेनर योगेंद्र यादव का कहना है:
देश के वित्तमंत्री ने किसानों के दबाव में आंख और मुंह तो खोल दिए, पर अभी तक वे जेब नहीं खोल पाए हैं. वित्तमंत्री 19 जनवरी को संसद में कहते हैं कि किसानों को उनके फसल पर डेढ़ गुना ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दिया जा सकता है, लेकिन 1 फरवरी को कहते हैं कि हम तो 4 महीने से यह सुविधा दे रहे हैं. कितना बड़ा झूठ है ये.योगेंद्र यादव, कन्वेनर, स्वराज इंडिया
इस मौके पर नर्मदा बचाव आंदोलन की नेता मेधा पाटकर, महाराष्ट्र से लोकसभा सांसद राजो शेट्टी, एआईकेएससीसी के संयोजक वी एम सिंह, पूर्व सांसद हन्नान मौल्ला मौजूद थे.
किसानों का आरोप सरकार के बजट से गायब थे ये मुद्दे
क्विंट से बात करते मेधा पाटकर ने कहा, “कृषि संकट से किसानों को उबारने के लिए किसानों की संपूर्ण कर्जा मुक्ति को लेकर बजट में कोई प्रावधान नहीं किया गया है. यहां तक कि किसानों के आत्महत्या को रोकने को लेकर भी कोई जिक्र नहीं हैं. सिंचाई, आपदा की स्थिति में किसान को मुआवजा जैसे मुद्दों पर एक शब्द भी नहीं बोला.”
सरकार जिस न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की बात कर रही है, वो भी बेवकूफ बनाने के लिए है. सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य का पैमाना ही बदल दिया.मेधा पाटकर
क्या है न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)? और कहां फंसा है पेच?
भारत में किसानों को उनकी उपज का ठीक दाम दिलाने और बाजार में कीमतों को गिरने से रोकने के लिए सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की बात करती है.
देश में 26 कृषि उत्पादों पर सरकार समर्थन मूल्य घोषित करती है. इनमें सात अनाज, पांच दलहन,आठ तिलहन के अलावा जटा वाले और छिले नारियल, कपास, जूट और तम्बाकू शामिल हैं.
वित्ता मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में कहा था कि सरकार रबी के फसल पर डेढ़ गुना ज्यादा एमएसपी दे रही है. इसी तरह सरकार रबी फसलों पर भी डेढ़ गुना ज्यादा एमएसपी देगी. मेधा पाटकर का कहना है:
सरकार ने लागत का डेढ़ गुना देने की ऐलान तो कर दिया है, लेकिन उन्होंने ने यह नहीं बताया कि लागत कैसे जोड़ा जायेगा. इसमें किसान की जमीन की कीमत, किसान की मजदूरी, खेती के लिए ब्याज पर लिया गया पैसा भी नहीं जोड़ा गया है. सरकार ने रबी फसल में सी-2 के आधार पर लागत करने के बजाए ए-2+ एफेल पर आंकलन किया है. ये किसानों के साथ मजाक है. इससे साफ होता है कि खरीफ के फसल में भी किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक लागत से डेढ़ गुना समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा.
क्या है ए-2, ए-2 + एफेल और सी-2?
2004 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने किसानों के लिए राष्ट्रीय आयोग बनाया था, जिसे हम स्वामीनाथन आयोग के नाम से जानते हैं.
इस आयोग का काम खेती, सूखे की समस्या और किसानों के मुद्दे से जुड़े मामलों पर सुझाव देना था. इस आयोग ने ही किसानों को फसलों पर आई लागत का 50 फीसदी एमएसपी देने को कहा था. आयोग ने फसल पर आने वाली लागत को तीन हिस्सों में बांटा था. ए2, ए2+एफएल और सी2.
ए2 का मतलब?
ए2 का मतलब किसानों के फसल उत्पादन में किए गए सभी तरह के कैश खर्च. जैसे कि खाद, मजदूर, बीज, सिंचाई के लिए जनरेटर पर किये गए खर्च शामिल हैं.
ए2+एफएल और सी-2
ए2+एफएल में कैश खर्च के साथ साथ किसान का मेहनताना आता है. वहीं सी2 लागत में फसल उत्पादन में कैश पैसों का खर्च और कैश के अलावा जमीन पर लगने वाले लीज रेंट, महाजन से खेती के लिए ब्याज पर लिए गए पैसे भी शामिल हैं.
फसल बीमा के नाम पर कॉर्पोरेट को फायदा
महाराष्ट्र से लोकसभा सांसद और स्वाभिमानी शेतकारी पार्टी के अध्यक्ष राजो शेट्टी ने बीजेपी सरकार पर आरोप लगाया कि फसल बीमा योजना सिर्फ कॉर्पोरेट घरानों और बीमा कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए है. क्विंट से बात करते हुए उन्होंने कहा:
फसल बीमा के नाम पर 11 आईटी कंपनियों को करीब चौबीस हजार करोड़ का मुनाफा हुआ, पर किसानों को इससे कोई फायदा नहीं है. किसानों ने बीमा के नाम पर लाखों रुपये दिए लेकिन बीमा कंपनी ने जरूरत पड़ने पर बहाना लगा कर किसानों को पैसा नहीं दिया.
बजट से नाखुश किसान AIKSCC के नेतृत्व में 12 फरवरी से 19 फरवरी तक देश भर के लगभग एक हजार जगहों पर किसान मुक्ति सप्ताह मनाने का ऐलान किया है. साथ ही AIKSCC ने इस बात का भी ऐलान किया है कि वो बजट की कॉपियां जलाकर विरोध प्रकट करेगी.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)