21वीं सदी में भी महिलाएं माहवारी पर खुलकर बात करने में हिचकती हैं. इस मुद्दे पर बात करना सभ्य समाज को सभ्य नहीं लगता. लेकिन इसी भीड़ में एक शख्स ऐसा भी है, जिसने 1990 के दशक में माहवारी पर लिपटे शर्म के चोले को उतार फेंकने से गुरेज नहीं किया. यह शख्स हैं केरल के अरुणाचलम मुरुगनाथम.
अक्षय कुमार की फिल्म 'पैडमैन' इन्हीं के जीवन से प्रेरित है.
माहवारी के मुद्दे पर मुरुगनाथम ने कहा:
मुझे माहवारी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. एक दिन अचानक ही अपनी पत्नी को बहुत ही गंदा कपड़ा छिपाकर ले जाते देखा, तो उससे पूछ बैठा कि ये क्या है और क्यों ले जा रही हो? पत्नी ने डांटकर चुप कर दिया, लेकिन उस दिन मैं समझ गया था कि उस गंदे कपड़े का क्या इस्तेमाल होने वाला है. कपड़ा इतना गंदा था कि मैं उससे अपनी साइकिल पोंछने की हिम्मत भी नहीं जुटा सकता था, लेकिन तब मैंने ठान लिया था कि महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी इस समस्या के खातिर जरूर कुछ करना है.अरुणाचलम मुरुगनाथम
मुरुगनाथम कहते हैं कि इस घटना के बाद उन्होंने इस विषय पर जानकारी जुटानी शुरू की, लेकिन दिक्कत यह थी कि इस मुद्दे पर कोई उनसे बात करने को ही तैयार नहीं था. वह बताते हैं, "लोग इस कदर गुस्से में थे, जैसे मैं पता नहीं कोई पाप करने जा रहा हूं."
बदलाव के लिए उठाया साहसिक कदम
असल जिंदगी का यह पैडमैन काफी दुखों और दिक्कतों से गुजरते हुए बदलाव लाने में सफल रहा. इस बीच मुरुगनाथम ने कुछ ऐसा किया, जो यकीनन किसी भी पुरुष के लिए आसान नहीं रहा होगा. उन्होंने मुश्किल भरे चंद दिनों की समस्या को समझने के लिए महिलाओं की इस पीड़ा को खुद महसूस करने का फैसला लिया. इसके लिए मुरुगनाथम को खुद कई दिनों तक सिनैटरी पैड लगाना पड़ा. वह कहते हैं:
इस दौरान मैं महिलाओं की मानसिक स्थिति को भांपना चाहता था. इसी इरादे से मैंने कई दिनों तक पैड पहना. पैड पर तरल पदार्थ डालकर उस गीलेपन को महसूस करना चाहता था, लेकिन मेरे द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले पैड कॉटन के होते थे, जो कारगर नहीं थे, जबकि बड़ी-बड़ी कंपनियों के पैड सेल्यूलोज के होते हैं जो गरीब महिलाओं की पहुंच के बाहर हैं.”अरुणाचलम मुरुगनाथम
सस्ते पैड बनाने वाली मशीन का आविष्कार
महिलाओं की पीड़ा को जानने-समझने की इस कश्मकश में मुरुगनाथम ने सस्ते पैड बनाने वाली मशीन ईजाद कर डाली. इससे दो काम सधे. पहला, गरीब महिलाओं को सस्ते पैड मिलने लगे और दूसरा, कई महिलाओं को रोजगार भी मिला.
दिक्कतें आईं पर डिगे नहीं
लेकिन एक तरफ मुरुगनाथम जहां अपने लक्ष्य के पीछ दौड़ रहे थे, वहीं उनकी पत्नी लोकलाज का हवाला देकर उन्हें छोड़कर चली गई थी. मां-बाप ने भी शर्म के नाम पर उनसे नाता तोड़ दिया. गांव के लोग उन्हें तिरस्कार और हीन नजरों से देखने लगे, लेकिन ये मुरुगनाथम के हौसले डिगा नहीं पाए. यह मुरुगनाथम की लगन और मेहनत ही है, जो देश के 22 राज्यों में उनके द्वारा तैयार सस्ते पैड बनाने वाली मशीनें स्थापित की गई हैं. वह अति पिछड़े क्षेत्रों में पैड नि:शुल्क भी मुहैया करा रहे हैं और देश के कोने-कोने में घूमकर माहवारी को लेकर जागरूकता फैला रहे हैं.
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