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त्रिपुरा: पत्रकार पर केस दर्ज, अब होटल से बाहर नहीं निकलने दे रही पुलिस

इससे पहले त्रिपुरा पुलिस ने 102 लोगों को नामजद कर,त्रिपुरा हिंसा पर गलत बातें फैलाने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया था

Published
भारत
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त्रिपुरा (Tripura) में पत्रकारों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई थमने का नाम नहीं ले रही है. आज सुबह करीब सात बजे पत्रकार समृद्धि सकुनिआ (Samriddhi Sakunia) ने अपने ट्विटर (Twitter) हैंडल से बताया कि उनके खिलाफ त्रिपुरा पुलिस (Tripura Police) ने विश्व हिन्दू परिषद् (VHP) की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की है.

बता दें पिछले दिनों वीएचपी ने बांग्लादेश में "हिंदुओं के खिलाफ हिंसा" को लेकर रैली निकाली थी, इस रैली के दौरान त्रिपुरा में हिंसा भड़क उठी थी. हाल में त्रिपुरा हिंसा के खिलाफ लिखने पर पुलिस ने 102 लोगों के खिलाफ नामजद एफआईआर कर UAPA जैसे कानून के तहत कार्रवाई भी की थी.

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पत्रकारों का दावा- होटल से बाहर नहीं आने दे रही पुलिस

समृद्धि ने अपने ट्विटर पर लिखा कि त्रिपुरा को कवर करने के दौरान उनके साथ जो बर्ताव किया गया, उसके बारे में विस्तार से वे बाद में लिखेंगी. फिलहाल इतना सूचित कर रही हैं कि उन्हें होटल से बाहर नहीं निकलने दिया जा रहा है.

समृद्धि के साथ उनकी सहयोगी पत्रकार स्वर्णा झा के खिलाफ भी एफआईआर (FIR) दर्ज की गई है. दोनों पत्रकारों के खिलाफ 120B (आपराधिक षड्यंत्र रचने) और 153(A) (दो समुदायों के बीच में दुश्मनी कराने) जैसी संगीन धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई है.

उन्होंने आगे बताया कि कल रात पुलिस होटल में आई थी और आज सुबह उन्हें एफआईआर की कॉपी थमा गई. उन्हें त्रिपुरा की राजधानी अगरतला निकलना था, लेकिन उनके होटल के बाहर करीब 16-17 पुलिसवाले तैनात हैं. उन्हें होटल से बाहर निकलने की अनुमति नहीं दी जा रही है.

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102 लोगों पर पहले भी हो चुकी है एफआईआर दर्ज

इससे पहले भी त्रिपुरा पुलिस ने 6 अक्टूबर को त्रिपुरा में सांप्रदायिक हिंसा के संबंध में कथित रूप से गलत पोस्ट करने के लिए UAPA के तहत 68 ट्विटर हैंडल समेत कम से कम 102 सोशल मीडिया एकाउंट्स होल्डर्स पर केस दर्ज किया था. पुलिस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को लेटर लिखकर इन एकाउंट्स को ब्लॉक करने को भी कहा है.

पुलिस ने जिन 102 लोगों के खिलाफ UAPA के तेहत कार्रवाई की थी, उनमे से कई पत्रकार भी शामिल थे.

त्रिपुरा हिंसा पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा था की "ऐसी घटनाओं पर रिपोर्टिंग को दबाने के लिए सरकारें यूएपीए जैसे कड़े कानूनों का उपयोग नहीं कर सकती हैं.”

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