लौहपुरुष सरदार पटेल देश की राजधानी दिल्ली में औरंगजेब रोड, जिसे अब एपीजे अब्दुल कलाम रोड के नाम से जाना जाता है, स्थित बंगला संख्या एक में रहते थे, जहां से उन्होंने देश को एकजुट करने का काम किया और किसी प्रकार की अशांति की स्थिति पैदा नहीं होने दी. सरदार पटेल 1946 में दिल्ली आए थे जब जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में देश में अंतरिम सरकार बनी थी. पटेल अंतरिम सरकार में गृहमंत्री थे. भारत जब आजाद हुआ तो सरदार पटेल उप प्रधानमंत्री बने और दिल्ली आगमन के बाद से वह गृहमंत्री के पद पर बने रहे और उनका निवास भी औरंगजेब रोड ही बना रहा.
इस घर के मालिक उनके मित्र बनवारी लाल थे, कहा जाता है कि पटेल जब दिल्ली आए थे, तो बनवारी लाल ने उनसे इसी भवन में रहने का आग्रह किया था. पटेल उनका आग्रह मान गए और अपनी बेटी मणिबेन पटेल के साथ वहां रहने लगे. सादगी का जीवन जीने वाले पटेल इस भवन के एक छोटे से हिस्से का उपयोग करते थे. दुर्भाग्यवश, इस भवन में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे यह मालूम हो कि भारत के इतना बड़ा राजनेता इस भवन में निवास करते थे.
यह निजी भवन है, लेकिन उसे भी उनके मेमोरियल के रूप में बदला जा सकता था. प्रख्यात लेखक और नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) के पूर्व निदेशक मदन थपलियाल ने कहा,
“महात्मा गांधी के जीवन के आखिरी 144 दिन बिरला भवन में गुजरे थे और 26 अलीपुर रोड में डॉ. बी. आर. अंबेडकर अपने जीवन के आखिरी क्षण (1956) तक रहे थे, अगर इन दोनों को मेमोरियल में बदला जा सकता है तो फिर 1, औरंगजेब रोड को भी सरदार पटेल का मेमोरियल बनाया जाना चाहिए।”
सभी राष्ट्रीय स्तर के शीर्ष नेताओं के दिल्ली में मेमोरियल हैं, लेकिन सरदार पटेल का मेमोरियल नहीं है. प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता प्रीतम धालीवाल ने कहा, "हालांकि गुजरात में स्टेच्यू ऑफ यूनिटी सरदार पटेल का उपयुक्त मेमोरियल है, लेकिन राष्ट्र निर्माण में उनकी भूमिका को स्वीकार करते हुए दिल्ली में भी उनका मेमोरियल होना चाहिए. पटेल चौक स्थित उनकी प्रतिमा पर्याप्त नहीं है, आधुनिक भारत के वास्तुकार और एकजुटता के सूत्रधार के प्रति न्याय करने का यह वक्त है"
उन्होंने कहा, "दुख की बात है कि कोई उनकी प्रतिमा की नियमित तौर पर सफाई नहीं करता है" सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री थे, तब 2002 में 1, औरंगजेब रोड स्थित भवन को सरदार पटेल मेमोरियल बनाने की कोशिश की थी. हालांकि वह कोशिश कामयाब नहीं हुई, क्योंकि बनवारी लाल का परिवार मेमोरियल बनाने के लिए यह परिसंपत्ति देने को तैयार नहीं था. वर्तमान में यह बनवारी लाल के पौत्र विपुल खंडेलवाल के कब्जे में है.
उधर, एपीजे कलाम रोड से 10 किलोमीटर दूर स्थित सिविल लाइन के मेटकैपे हाउस में भी कुछ बेहतर नहीं है. यहां भी आपको पटेल ऐतिहासिक पते की याद में कोई फलक नहीं मिलेगा. यह 21 अप्रैल 1947 को इंडियन सिविल सर्वेट्स का पता था. भारतीय सिविल सेवा का मुख्यालय, इसी मेटकैफ हाउस में उस दिन सरदार वल्लभभाई पटेल ने भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के पहले बैच को संबोधित किया था.
(इनपुट IANS)
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