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CAA के मूल में हिंदू राष्ट्रवाद की विचारधारा: पूर्व चीफ जस्टिस

नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर देश भर में बवाल चल रहा है

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नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर देश भर में बवाल चल रहा है. जगह-जगह लोग विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं. दिल्ली के शाहीन बाग में महिलाएं पिछले 10 दिन से भी ज्यादा समय से इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रही हैं. इन सबके बीच अब दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस अजीत प्रकाश शाह ने भी इसके खिलाफ लेख लिख कर आपत्ति दर्ज कराई है. शाह ने अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' में एक लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने CAA को संविधान के लिए खतरा बताया है.

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पूर्व जस्टिस शाह ने इस कानून को दिक्कतों से भरा करार दिया है. उनका कहना है कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (NRC) से इसके संबंधित होने से परेशानी बढ़ गई हैं. शाह ने लेख में बताया है कि वो असम में NRC लागू करने वाले पीपुल्स ट्राइब्यूनल में शामिल रहे हैं. उनका कहना है कि हालांकि ये प्रोसेस कोर्ट के माध्यम से हुआ लेकिन फिर भी इसके भयानक परिणाम देखने को मिले.

'देश का नेतृत्व सांप्रदायिक, निरंकुश'

पूर्व जस्टिस शाह का कहना है कि नागरिकता कानून के खिलाफ देश भर में हो रहे प्रदर्शनों में कुछ भी चौंकाने वाला नहीं है. शाह लिखते हैं कि इन प्रदर्शनों में शामिल लोगों के साथ सरकारी मशीनरी ने जो सलूक किया, उससे ज्यादातर 'शांतिपूर्ण प्रदर्शन हिंसक' हो गए, जिसे वो दुर्भाग्यपूर्ण मानते हैं.

पूर्व जस्टिस प्रदर्शनकारियों पर सरकारी कार्रवाई को सांकेतिक मानते हैं. उनके मुताबिक इससे पता लगता है कि भविष्य में देश के युवाओं को ऐसे 'सांप्रदायिक' नेतृत्व का सामना करना है जो 'निरंकुश' भी है.

'न्यायपालिका की आवाज गायब'

पूर्व जस्टिस इमरजेंसी को याद करते हुए लिखते हैं कि व्यक्तिगत तौर पर मुझे न्यायपालिका की आवाज लगभग 'गायब' महसूस होती है, या तो फिर मजबूत सरकार में आवाज 'दबी' हुई है. शाह ने लिखा कि नागरिकता कानून संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन करता है और इसलिए ये असंवैधनिक है, इस कानून में जानबूझकर मुस्लिम को शामिल नहीं किया गया.

'कानून के मूल में हिंदू राष्ट्रवाद की विचारधारा'

एपी शाह कहते हैं कि इस कानून से मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने की आशंका है, क्योंकि इसके मूल में धार्मिक राष्ट्रवाद की विचारधारा है. शाह लिखते हैं कि सावरकर और उनके साथियों की इस विचारधारा को मानने वाले देश पर हिंदू शासन देखना चाहते हैं.

अपने बचपन को याद करते हुए शाह लिखते हैं कि उनके नाना 1940 के दशक में हिंदू महासभा के अध्यक्ष थे और तब मेरा पाला सावरकर की लेखनी से पड़ा. शाह ने लिखा है कि महासभा के नेता सावरकर फासिस्ट शासकों से बड़ा लगाव रखते थे और इन शासकों की तरह बहुसंख्यकवाद हिंदू महासभा और उसके जैसे संगठनों की नापसंद ही रहा है.

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