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राइट टू प्राइवेसी है मौलिक अधिकार, जानिए कैसे बदलेगी आपकी जिंदगी

राइट टू प्राइवेसी को सुप्रीम कोर्ट ने माना मौलिक अधिकार, हनन की दशा में सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंच सकते हैं पीड़ित

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‘राइट टू प्राइवेसी’ किसी को उसकी मर्जी से खाने-पीने, उसकी पसंद से शादी करने और उसकी पसंद का पहनावा पहनने की छूट जैसे कई अधिकार देता है. मतलब किसी भी इंसान को उसकी जिंदगी में खुल कर जीने की आजादी. यह आजादी तब तक है, जब तक यह किसी की भावना को ठेस ना पहुंचाए या पब्लिक ऑर्डर को कोई खतरा ना पहुंचाए.

सुप्रीम कोर्ट की 9 मेंबर बेंच ने आज राइट टू प्राइवेसी को एक बार मौलिक अधिकार माना है. 1954 में एम पी शर्मा केस और 1962 में खड़क सिंह केस में कोर्ट ने कहा था कि संविधान में राइट टू प्राइवेसी नहीं है.

हांलांकि कई मामलों में हमें स्पष्टता की जरूरत है. लेकिन इतना तय है कि हमारा डेटा या हमारी निजी जिंदगी में सरकारी एजेंसियों की शक के पर दखलंदाजी कम होगी. चाहे मामला रेड का हो या सर्विलांस का. टेलीफोन टैंपिंग पर पहले से ही गाइडलाइंस हैं और सरकारी एजेंसियों को उनका पालन कड़ाई करना होगा.

क्या हैं मौलिक अधिकार

संविधान के भाग-3 में आर्टिकल 12 से लेकर 35 तक मौलिक अधिकारों का जिक्र है. ये हर नागरिक को दिए गए बुनियादी अधिकारी हैं.

यह अधिकार किसी व्यक्ति को सरकारी एजेंसियों की मनमानी से बचाता है. अगर कोई नियम-कानून मौलिक अधिकारों का हनन कर रहा है, तो कोर्ट उसे गैरकानूनी करार दे सकता है.

मौलिक अधिकारों में 'राइट टू प्राइवेसी' लिखित तौर पर शामिल नहीं है. 'राइट टू प्राइवेसी' आर्टिकल-21 (जीवन और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार) के अंदर आने वाले अधिकार का हिस्सा माना जाता है.

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अगर उल्लंघन हुआ तो जा सकते हैं सीधे SC

मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की दशा में सीधे सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जा सकता है. आर्टिकल 32 के तहत पीड़ित सुप्रीम कोर्ट जा सकता है, वहीं संविधान के आर्टिकल 226 (पर ये मौलिक अधिकार नहीं है) के तहत पीड़ित हाईकोर्ट में गुहार लगा सकता है.

आर्टिकल 32 भारत के संविधान की आत्मा है- बी आर अंबेडकर

आर्टिकल 32 में पीड़ित 5 तरीकों से इंसाफ पा सकता है. खास बात ये है कि इस प्रोसेस (रिट जारी करवाने) के लिए उसे किसी वकील की जरूरत नहीं है. आम आदमी भी एक फॉर्म भरकर इस प्रक्रिया को शुरू करवा सकता है.

बेहद ताकतवर होती है रिट

कोर्ट 5 तरह की रिट्स जारी करता है- हीबियस कॉर्प्स, मैंडेमस, प्रोहेबिशन, क्वो वारंटो और सर्शीओररी. इनमें हीबियस कार्प्स और मैंडेमस उल्लेखनीय हैं.

हीबियस कार्प्स के जरिए कोर्ट प्रशासन को किसी व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर कोर्ट में पेश करने का आदेश देता है. इस अधिकार के जरिए नागरिक गैर कानूनी पुलिस या प्राइवेट रिमांड से सुरक्षा पाते हैं.

मैंडेमस के जरिए कोर्ट किसी गवर्मेंट बॉडी या लोअर कोर्ट को कुछ काम करने का आदेश देता है. वहीं ‘प्रोहिबिशन’ में सुप्रीम कोर्ट, लोअर कोर्ट को अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाने से रोकता है.

कितने मौलिक अधिकार?

हमारे संविधान में हमें 6 तरह के मौलिक अधिकार दिए गए हैं.

1) समता का अधिकार (राइट टू इक्वेलिटी) (14 से 18)- समता के अधिकार में चार आर्टिकल्स हैं. इनमें कानून के समक्ष समता, भेदभाव पर प्रतिबंध, समान अवसर, छुआछूत पर प्रतिबंध और उपाधियों पर प्रतिबंध की व्यवस्था की गई है.

2) स्वतंत्रता का अधिकार (राइट टू फ्रीडम) ( आर्टिकल 19 से 22)- स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत आर्टिकल 19 में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की व्याख्या है, इसमें 6 तरह की अभिव्यक्ति की आजादी है.

बाकि के तीन आर्टिकल्स में इस अधिकार को सुरक्षित करने के अधिकार हैं. इन्ही में आर्टिकल 21 में है- राइट टू लाइफ. इसी राइट टू लाइफ में एक अंतर्निहित अधिकार है 'राइट टू प्राइवेसी'.

3) शोषण के विरुद्ध अधिकार (आर्टिकल 23 और 24)- यह अधिकार भारत के नागरिकों के बेगार और ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर बैन लगाता है. साथ ही आर्टिकल 24 द्वारा बालश्रम पर भी रोक लगाई जाती है.

4) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (राइट टू फ्रीडम ऑफ रिलीजन) (आर्टिकल 24 से 28)- यही अधिकार भारत के सेकुलरिज्म का आधार हैं. इन अधिकारों के द्वारा ही धर्म और सरकार के संबंध तय होते हैं.

5) संस्कृति और शिक्षा का अधिकार(आर्टिकल 29 और 30)- भारत कई भाषाओं, धर्मों और संस्कृतियों का देश है. इनमें कई माइनॉरिटीज को सुरक्षा की जरूरत होती है. आर्टिकल 29 और 30 इन्हीं माइनॉरिटीज के अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी देते हैं.

6) संवैधानिक उपचारों का अधिकार (आर्टिकल 32)- यह बेहद खास अधिकार है. आर्टिकल 32 से 35 तक के अधिकार संवैधानिक उपचारों के अधिकार के अंतर्गत आते हैं. मतलब अगर आपके मौलिक अधिकारों का हनन सरकार कर रही है, उस दशा में आप इस आर्टिकल के जरिए लाभ ले सकते हैं.

स्वतंत्रता के बाद संपत्ति का अधिकार भी मौलिक अधिकारों में शामिल था. लेकिन इंदिरा गांधी के समय 1976 में स्वर्ण सिंह कमेटी के सुझाव पर इसे मौलिक अधिकारों से हटा दिया गया.

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