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संडे व्यू: G20 दिल्ली घोषणापत्र से रचा इतिहास, मोदी राज में सांस्कृतिक जड़ों की तलाश

पढ़ें आज बीबीसी और न्यूयॉर्क टाइम्स में जी 20 घोषणापत्र में मिली प्रमुखता, टीएन नाइनन, पी चिदंबरम, तवलीन सिंह, ट्विंकल खन्ना के विचारों का सार.

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बीबीसी ने जी 20 शिखर सम्मेलन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) के हवाले से लिखा है कि इतिहास रचा गया है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पोस्ट किया, “नई दिल्ली लीडर्स डिक्लरेशन की मंजूरी के साथ ही इतिहास रचा गया है. सर्वसम्मति और मनोभाव के साथ हम एकजुट होकर बेहतर, अधिक समृद्ध और समन्वय भविष्य के लिए सहयोग के साथ काम करने का संकल्प लेते हैं. जी 20 के सभी साथी सदस्यों को उनके समर्थन और सहयोग के लिए मेरा आभार.”

नई दिल्ली घोषणा पत्र में जिन बातों पर जोर दिया गया है उनमें शामिल हैं- मजबूत, दीर्घकालिक, संतुलित और समावेशी विकास, सतत विकास लक्ष्यों पर आगे बढ़ने मे तेज़ी, दीर्घकालिक भविष्य के लिए हरित विकास समझौता, 21वीं सदी के लिए बहुपक्षीय संस्थाएं, बहुपक्षवाद को पुनर्जीवित करना.

नई दिल्ली घोषणा पत्र में कहा गया है, “यूक्रेन में युद्ध के संबंध मे बाली में हुई चर्चा को दोहराते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा प्रस्तावों पर अपने राष्ट्रीय रुख को दोहराया और इस बात पर ज़ोर दिया कि सभी देशों को संयुक्त राष्ट्र चार्टर के उद्देश्यों और सिद्धांतों के अनुरूप कार्य करना चाहिए.“

न्यूयॉर्क टाइम्स और दुनिया के कई अखबारों ने यूक्रेन की प्रतिक्रिया प्रकाशित की है जिसमें कहा गया है कि नई दिल्ली घोषणा पत्र से उन्हें निराशा हुई है. यह बाली घोषणा पत्र के मुकाबले भी कमजोर है. नई दिल्ली घोषणापत्र में रूस का नाम तक नहीं लिया गया है.

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सांस्कृतिक जड़ों की तलाश

टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि प्रधानमंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल के अंत में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि उन्हें इस बात का पछतावा है कि वह लुटियंस दिल्ली को नहीं जीत सके.लुटियंस दिल्ली का प्रयोग आम तौर पर अंग्रेजी भाषी कुलीनों या सत्ता प्रतिष्ठान के भारतीय संस्करण के लिए किया जाता है. अब जबकि उनका दूसरा कार्यकाल समापन की ओर बढ़ रहा है तो मोदी सत्ता प्रतिष्ठान पर जीत हासिल करने में नहीं बल्कि उसे विस्थापित करने में कामयाब रहे हैं जो न केवल राजधानी बल्कि पूरे देश को नया रूप देने की उनकी व्यापक योजना का हिस्सा है.

नाइनन लिखते हैं कि कोई यह दलील भी दे सकता है यह भारत द्वारा लुटियंस दिल्ली पर क्रमण की कहानी नहीं है जैसा कि प्रस्तुति किया जा रहा है. इसके बावजूद इसमें आइडिया ऑफ इंडिया यानी भारत के विचार को फिर से बताना शामिल है. मुद्दा नाम परिवर्तन, सत्ता परिवर्तन और पहचान की राजनीति से परे जाता है.

अब इस धारणा को चुनौती पेश की जा रही है कि यूरोपीय जागरण ने ऐसे विचार पेश किए जिनकी सार्वभौमिक वैधता है. उदाहरण के लिए य्व्क्तिगत स्वतंत्रता, समता और व्यक्ति के व्यापक अधिकारों को फ्रांस की क्रांति के समय उल्लिखित किया गया था और वे 150 वर्ष बाद संयुक्त राष्ट्र के सार्वभौम मानवाधिकार घोषणा पत्र में भी नजर आए.

अगर कोई इंगलहार्ट-वेल्जेल के विश्व के सांस्कृतिक मानचित्र का रुख करे जो दो अक्षों पर चित्रित है तो भारत ने पारंपरिक से धार्मिक-तार्किक मूल्यों की ओर नैसर्गिक बदलाव को पलट दिया है. उसने अस्तित्व मूल्यों पर ध्यान केंद्रित किया है जो स्व अभिव्यक्ति के मूल्यों से अलग हैं. मोदी काफी हद तक एक मजबूत नेता हैं और वह ‘भारत को लोकतंत्र की जननी’ बताते हुए एकदम सही नजर आते हैं.

रोशनी के पीछे पाबंदियों का अंधेरा

तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि दिल्ली तो वैसे भी रोशनियों का शहर है लेकिन पिछले हफ्ते इतनी रोशनियों से भर गया था कि जैसे किसी बहुत बड़ी शादी में बहुत बड़ी बारात का इंतजार हो. हमारे विदेशी वीआइपी को सुरक्षित रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी गयी. सो इन रोशनियों को हम सबने सिर्फ टीवी पर देखा. अतिथि देवो भव को इतनी गंभीरता से लिया गया कि जितनी तारीफ हो मोदी की मेजबानी की कम होगी. शायद ही कोई शहर होगा देश मे जिसकी दीवारों, चौराहों और बाजारों में इस शिखर सम्मेलन के पोस्टर न दिखे हों. इन पोस्टरों में अपने प्रधानमंत्री का न सिर्फ चेहरा दिखता है उनके विचार भी पाए जाते हैं- कभी यह याद दिलाते हुए कि धरती एक है, परिवार एक है हम सब का, और भविष्य भी एक है तो कभी याद दिलाते हुए कि लोकतंत्र का जन्म स्थान भारत है.

तवलीन सिंह लिखती हैं कि जी 20 की रोशनियों ने हम देसी पत्रकारों को इतना प्रभावित किया कि हमने इन टूटी बस्तियों के बारे में जिक्र तक करना ठीक न समझा. लेकिन, सीएनएन जैसे विदेशी टीवी चैनलों को ऐसी कोई दिक्कत नहीं थी. वह लिखती हैं कि सच पूछिए जब सीएनएन पर उन लोगों का हाल देखा जिनके घर तोड़े गये थे तो रोना आ गया. जब देखा कि बड़ी-बड़ी दीवारें खड़ी कर दी गयी थीं उन गरीब, बेहाल बस्तियों को ढंकने के लिए जिनको तोड़ा नहीं गया था तो शर्म आयी.

दुनिया जानती है कि भारत के करोड़ों नागरिक गरीबी की रेखा के नीचे अपना पूरा जीवन बिताते हैं. हम अगर चांद तक जा सकते हैं तो गरीबी को भी मिटा सकते हैं. रोजगार देकर, बच्चों के लिए अच्छे स्कूल बनाकर और बेहाल बस्तियों में बुनियादी शहरी सेवाएं उपलब्ध कराकर हम ऐसा कर सकते हैं. रोशनियों और चमकती इमारतों के पिछवाड़े में अंधेरे हैं जिनका सामना हमको कभी न कभी करना होगा.

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एक राष्ट्र, एक चुनाव

पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि चुनौती का सामना केवल एक ही तरीके से किया जा सकता है- एकजुट लोगों की सरकार, निस्वार्थ लोगों द्वारा और सभी लोगों के लिए. विभिन्न देशों ने अलग-अलग रास्ते अपनाए हैं. चीन एकपक्षी, वर्चस्ववादी सरकार का मॉडल है तो रूस सैन्यवादी, विस्तारवादी मॉडल. म्यांमार और कई देश सैन्य तानाशाही मॉडल सामने रख रहे हैं तो ईरान, अफगानिस्तान व अन्य धर्मशासित, धर्म-संक्रमित मॉडल हैं.

संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रपति सर्वोच्च शक्ति है लेकिन शक्तियों के पृथक्करण और कड़े नियंत्रण और संतुलन के साथ और यूरोप के अधिकांश देश, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड व कनाडा संसदीय लोकतंत्र के ब्रिटिश मॉडल का पालन करते हैं जिसमें सरकार संसद के प्रति जवाबदेह होती हैं. भारत ने भी ब्रिटिश मॉडल का अनुसरण किया है.

चिदंबरम लिखते हैं कि वर्तमान शासक बीजेपी उसके सहयोगी और बीजेपी के गुप्त समर्थक बिल्कुल विपरीत मॉडल पेश करते हैं. यह मॉडल है कि भारतीय एक हैं और हर तरह की अनेकता को इस एकात्मता के तहत समाहित किया जाना चाहिए. वे इस तर्क को दरकिनार कर देते हैं कि एकात्मता की अवधारणा इतिहास और पिछले 75 वर्षों के जीवंत अनुभव के सामने कहीं नहीं टिकतीं. एकात्मता के सिद्धांत को भाषा, भोजन, पोशाक, सामाजिक व्यवहार और यहां तक कि वर्तमान लॉ और रीति रिवाजों तक पर थोप दिया गया.

‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ वास्तव में एकात्म की परियोजना ही है. लक्ष्य एक चुनाव नहीं है, वास्तविक लक्ष्य है एक ध्रुव- बीजेपी, जिसके इर्द-गिर्द पूरी व्यवस्था का पुनर्निर्माण किया जाएगा.

राष्ट्रीय और राज्य के चुनावों को एक साथ कर, बीजेपी दो तिहाई बहुमत के साथ लोकसभा चुनाव जीतने के साथ ही पर्याप्त राज्यों में भी जीत की उम्मीद कर रही है. यह आमूल-चूल संवैधानिक परिवर्तनों का मार्ग प्रशस्त करेगा जो हिंदू राष्ट्र की स्थापना के लिए सभी बाधाओं को दूर कर देगा.

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चंद्रयान 3 की सफलता और जी 20 सम्मेलन

ट्विंकल खन्ना ने टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखा है कि हम अपनी भव्य चंद्रयान 3 की सफलता के बाद जश्न के हकदार हैं. चंद्र मिशन के बारे में एक और असाधारण बात है जो हर भारतीय के दिल से बात करती है- वह है इसकी सस्ती कीमत. चंद्रयान 3 ऑपरेशन की लागत फिल्म ‘इंटरस्टेलर’ के आधे बजट से भी कम थी. जी 20 रात्रिभोज निमंत्रण के बीच एंकर और नाराज पैनलिस्ट नाम बदलने की अफवाहों पर गरमागरम बहस में पड़ गये. विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A भी मैदान में कूद पड़ा. कुछ ने मजाक किया कि पाकिस्तान न केवल अपने क्रिकेटरों को तैयार कर रहा है बल्कि अगर हम आधिकारिक तौर पर दावा छोड़ दें तो INDIA नाम पर दावा करके गुगली की भी योजना बना रहा है.

ट्विंकल लिखती हैं कि ‘भारत’ शब्द से जो निश्चित छवि दिमाग में आती है वह प्रतिष्ठित मनोज कुमार की है जिनके चेहरे पर दर्द भरी अभिव्यक्ति है और हाथ से उनका आधा चेहरा ढंका हुआ है. व्लादिमिर पुतिन के साथ जी 20 बैंड बाजा बारात में शामिल नहीं होने वाले एक अन्य नेता चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग हैं.

ऐसी अफवाहें जोरों पर हैं कि शी जिनपिंग पहले शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए बहुत उत्साहित थे जब उन्होंने राहुल गांधी और हमारे लालूजी के मटन पकाने के वीडियो को जी 20 भोज की तैयारियों का हिस्सा समझ लिया था. ट्विंकल लिखती हैं कि उनकी बुआ इस बीच अपडेट पोस्ट करने में व्यस्त है, “हमारा देश सभी प्रथम विश्व देशों के साथ सबसे ऊपर है.” वे कहते थे कि सभी सड़कें रोम की ओर जाती हैं लेकिन शिखर सम्मेलन के लिए विश्व नेताओं के कारण सड़कें अस्थायी रूप से बंद हो गयीं. यह स्पष्ट है कि सभी उड़ान मार्ग केवल दिल्ली की ओर जाते हैं.

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