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G7 में भारत ने थामा फ्री स्पीच का ‘झंडा’, घर में कुछ और ही फंडा?

G7 summit में भारत की ‘फ्री स्पीच’ की वकालत जबकि देश में असमति जाहिर करने पर इंटरनेट शटडाउन ,UAPA का प्रयोग

Published
भारत
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13 जून को भारत सरकार ने G7 समिट (G7 Summit) में 'ओपन सोसाइटी' को प्रमोट करने वाले ज्वाइंट स्टेटमेंट पर हस्ताक्षर किया. यह ज्वाइंट स्टेटमेंट ऑनलाइन और ऑफलाइन ,दोनों रूपों में 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' को ऐसी आजादी के रूप में बढ़ावा देता है जो लोकतंत्र को मजबूत करती है और लोगों के जीवन को भय तथा उत्पीड़न से मुक्त रखने में मदद करती है.

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ज्वाइंट स्टेटमेंट का एक महत्वपूर्ण भाग 'इंटरनेट शटडाउन' का राजनैतिक टूल के रूप में लोगों की आवाज दबाने के लिए प्रयोग करने के खिलाफ है. लेकिन भारत सरकार द्वारा इस ज्वाइंट स्टेटमेंट पर हस्ताक्षर करना नागरिक स्वतंत्रता के मुद्दे पर उसके हिपोक्रेसी को ही दिखाता है. जहां एक तरफ ग्लोबल फोरम पर पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार लोकतांत्रिक मूल्यों का बखान करती है वहीं दूसरी तरफ देश के अंदर असहमतियों का अपराधीकरण करके 'अभिव्यक्ति की आजादी' पर राजनीति से प्रेरित होकर प्रतिबंध लगा रही है.

‘इंटरनेट शटडाउन’,’UAPA’, ‘देशद्रोह- यें कठोर उपाय वर्तमान सरकार के ‘लोकतंत्र विरोधी कार्यवाही’ का हिस्सा बन गये हैं. जहां पहले इसका उपयोग कभी-कभार और गंभीर अपराधों के मामले में होता था वहीं अब इसका प्रयोग ‘टू मच डेमोक्रेसी’ को दबाने के लिए रोजमर्रा के टूल के रूप में हो रहा है.

जब सरकार 'ओपन सोसाइटी' को लेकर साझा बयान मे हामी भर रही है, तब हम इस सरकार के 'फ्री स्पीच' के विरासत को देखने का प्रयास करते है.हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि कैसे एक सरकार जो दुनिया का सबसे लंबा राजनीति प्रेरित 'इंटरनेट शटडाउन' लागू करती है, वही ग्लोबल फोरम पर 'फ्री स्पीच' का समर्थन करती नजर आती है.

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विश्व का सबसे लंबा इंटरनेट शटडाउन

5 अगस्त 2019 को पूर्व जम्मू-कश्मीर राज्य के विशेष संवैधानिक स्टेटस को छीनने के बाद वहां भारत सरकार ने लगभग पूरा इंटरनेट शटडाउन लागू कर दिया था. जहां कंप्लीट शटडाउन 5 महीने से ऊपर रहा,वहीं उसके बाद इंटरनेट को जब रिस्टोर किया गया तब वह भी किसी दिखावे से कम नहीं था. रिस्टोर किया गया इंटरनेट 2G लेबल का था जिसमें नेट स्पीड की अधिकतर सीमा 384kbps रखी गयी.

पूरी आबादी को संस्थागत रूप से चुप कराने के एक साल बाद ही भारत सरकार ने कुछ जिलों में ‘ट्रायल बेसिस’ पर 4G लेबल के इंटरनेट सेवाओं की बहाली की घोषणा की. internetshutdowns.in के मुताबिक 2012 से भारत में हुए कुल 413 इंटरनेट शटडाउन में से लगभग आधे कश्मीर में लागू किए गए हैं.

कश्मीर में राजनैतिक रूप से प्रेरित इंटरनेट शटडाउन 'सामूहिक दंड' का एक रूप था,जहां पूरे क्षेत्र को कश्मीरी होने के अपराध के लिए बिना मुकदमे के दंडित किया गया. निरंतर इंटरनेट शटडाउन ना केवल अलोकतांत्रिक है बल्कि वह अपने प्रकृति में औपनिवेशिक भी. यह एक 'तकनीकी नरसंहार' था.

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अगस्त 2020 में जम्मू कश्मीर कोयलेशन ऑफ़ सिविल सोसायटी(JKCCS) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में इंटरनेट शटडाउन द्वारा हुए नुकसानों की चर्चा है.

” जम्मू और कश्मीर में लगाए गए संचार एवं इंटरनेट अवरोध संदिग्ध,अस्पष्ट और गोलमोल कानूनी ढांचे पर आधारित है. अथॉरिटी इसका आसानी से प्रयोग ‘सामूहिक दंड’ देने और हर तरह के राजनीतिक बातचीत और मोबिलाइजेशन को आतंकवाद से जोड़ने, राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा बताने के लिए कर सकती है”
JKCCS

ऑब्जर्वर रिसर्च फाऊंडेशन के एसोसिएट फेलो खालिद शाह के अनुसार 'सुरक्षा की आड़ में किए गए ऐसे उपायों ने इस क्षेत्र के लोगों को राजनीतिक रुप से करीब लाने की जगह पूरे जनसंख्या को अलग-थलग करने का काम किया है.

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असहमतियों का अपराधीकरण

भारत के आतंक विरोधी कानून-गैरकानूनी गतिविधियां( रोकथाम) कानून,UAPA को वर्तमान सरकार ने संशोधित किया और उसका प्रयोग वह पूरे देश में असंतोष को दबाने के लिए अपने सबसे प्रमुख टूल के रूप में कर रही है. पीएम मोदी के नेतृत्व वाली केंद्रीय सरकार ने UAPA का नियमित तौर पर प्रयोग शिक्षाविदों, छात्रों ,पत्रकारों और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ किया है ,यह जानते हुए भी कि ये केस कोर्ट में नहीं टिकेगें.

केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा संसद में प्रस्तुत डेटा के अनुसार 2016 से 2019 के बीच दर्ज UAPA के केवल 2.2% मामलों में ही आरोपी को सजा मिली. 2014 के बाद इस आतंक विरोधी कानून के अंतर्गत हिरासत में लिए गए लोगों की संख्या में बड़ी वृद्धि देखने को मिली है.
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सरकार के तरकश में ‘फ्री स्पीच’ को दबाने के लिए दूसरा तीर है -देशद्रोह

नेशनल क्राइम ब्यूरो द्वारा जारी डेटा यह स्पष्ट दिखाता है कि 96% देशद्रोह के केस में आरोपी का दोष सिद्ध नहीं हुआ. 2016 से 2019 के बीच देशद्रोह के केस में कुल 96 गिरफ्तारियां हुई जिसमें से केवल 2 आरोपियों का ही दोष सिद्ध हुआ. 2016 से 19 के बीच देशद्रोह के मामले में एक भी महिला का दोष सिद्ध नहीं हो सका .बावजूद इसके गिरफ्तारियों में खतरनाक वृद्धि,चार्जशीट फाइल करने में देरी और दोष सिद्धि की गिरती दर सरकार के मंशा को उजागर करती है कि वह कानून का उपयोग लोगों के 'विचार' को सजा देने के लिए करना चाहती है ना कि 'देशद्रोह' के अपराध को.

Artical 14 के वेबसाइट पर मौजूद देशद्रोह के मामलों का डेटाबेस यह दिखाता है कि पिछले एक दशक में राजनेताओं और सरकार की आलोचना करने के लिए 405 भारतीयों के खिलाफ दर्ज किए गए देशद्रोह के 96% मामले 2014 के बाद दर्ज किए गए हैं.इसमें 149 आरोपियों पर पीएम मोदी के खिलाफ "आलोचनात्मक" और/या "अपमानजनक" टिप्पणी करने का आरोप था जबकि 144 लोगों पर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ ऐसी टिप्पणी का आरोप था.

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'हेट स्पीच' को बढ़ावा देना

असहमतियों और लोकतांत्रिक सिद्धांतों का गला घोटने के अलावा केंद्र सरकार ने एक ऐसे राजनीतिक व्यवस्था को तैयार किया है जहां नफरत फैलाने और ध्रुवीकरण करने को प्रोत्साहित किया जाता है. 12 जून को राइट विंग ग्रुप करणी सेना के अध्यक्ष सूरजपाल अमू को हरियाणा बीजेपी का प्रवक्ता नियुक्त किया गया. इसी इंसान ने 2017 में पद्मावत फिल्म के लिए अभिनेत्री दीपिका पादुकोण की नाक काटने पर इनाम रखा था.

इस नफरत-प्रोत्साहन योजना से लाभ लेने वाले राजनेताओं की लिस्ट बहुत लंबी है. फरवरी 2020 में दिल्ली के उत्तर-पूर्वी जिलों में दंगे भड़कने के ठीक पहले बीजेपी नेता अनुराग ठाकुर, कपिल मिश्रा और परवेश वर्मा को भड़काऊ भाषण देते हुए तथा CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों और अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा को उकसाते हुए कैमरे पर कैद किया गया था. इन तीनों पर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं हुई ,उल्टे इनका पार्टी में रैंक और ऊंचा हुआ है. अनुराग ठाकुर को मार्च 2021 में भारतीय सेना के ‘कैप्टन’ पद पर प्रमोट किया गया.
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'टू मच डेमोक्रेसी'

G7 समिट में 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' मुद्दे पर भारत का रुख वर्तमान सरकार के मंत्रियों और सलाहकारों द्वारा दिए गए बयानों के ठीक विपरीत है. 8 दिसंबर 2020 को नीति आयोग के CEO अमिताभ कांत ने स्वराज पत्रिका द्वारा आयोजित एक वर्चुअल इवेंट को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में सुधारों को बढ़ावा देना मुश्किल है क्योंकि यहां "टू मच डेमोक्रेसी" है.

जो भी सरकार के खिलाफ प्रश्न उठाता है-चाहे वह पत्रकार हो, कॉमेडियन हो या कार्टूनिस्ट हो- उसके फेसबुक,ट्विटर अकाउंट को हटाने के लिए नोटिस जारी करना अब आम हो गया है.सरकार के इस कठोर नियंत्रण ने स्वयं टेक जाइंट्स को नहीं बख्शा. टि्वटर इंडिया के ऑफिस पर हाल में मारा गया छापा और उसके खिलाफ दिल्ली पुलिस और सूचना मंत्रालय का बयान दिखाता है कि अपने अलोकतांत्रिक प्रथाओं को जारी रखने के लिए अपने सहयोगियों को भी दुश्मन बना लिया जाता है.

इसलिए 'ओपन सोसाइटी' पर G7 के ज्वाइंट स्टेटमेंट पर भारत का साथ बोलना उस पर विश्वास या आस्था नहीं जगाता, खासकर तब जब भारत के जेलों में इतने सारे राजनैतिक कैदियों को ठूंसा जा रहा हो,असहमत लोगों और कंटेंट क्रिएटरों के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज किया जा रहा हो और 'फ्री स्पीच' पर अंकुश लगाया जा रहा हो.

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