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50 किलो बैंगन बेचकर जेब में आए महज 5 रुपये!

किसान देश के उन तमाम किसानों का प्रतीक है जो खेती से मुनाफा पाना तो दूर उल्टे लागत तक नहीं निकाल पाते.

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भारतीय किसान की विडंबना है कि खेती अच्छी हो या खराब उसके हिस्से में आंसू और तकलीफें ही आती हैं. पिछले हफ्ते महाराष्ट्र का एक किसान अहमदनगर की मंडी में 50 किलो बैंगन बेचने गया. इतने बैंगने बेचने पर उसे महज 75 रुपये मिले. इनमें से 60 रुपये तो आने-जाने में खर्च हो गए और 10 रुपये उसने मजदूर को दे दिए. इस तरह उसकी जेब में आए कुल 5 रुपये.

यह किसान देश के उन तमाम किसानों का प्रतीक है जो खेती से मुनाफा पाना तो दूर उल्टे लागत तक नहीं निकाल पाते. सब्जियों की सप्लाई जैसे-जैसे बढ़ती है उनके दाम और गिरते जाते हैं. स्थिति यह है कि इस समय मुंबई की खुदरा मंडी में सभी सब्जियां 10 से 20 रुपये प्रति किलो के बीच बिक रही हैं. सब्जियों के दामों में आई इस गिरावट से किसान बहुत परेशान हैं.

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आउटलुक इंडिया में छपी एक खबर के मुताबिक, किसान समूह स्वाभिमानी शेतकारी संगठन के नेता योगेश पांडेय का कहना है, “जमीनी हालात बेहद खराब हैं. टमाटर का प्रति किलोग्राम थोक भाव 1 रुपये तक पहुंच गया है. एक बैंगन की कीमत 10 पैसे है, प्याज प्रति किलो 20 से 30 पैसे के बीच बिक रही है. कुलमिलाकर हालात बहुत खराब हैं. बीजेपी सरकार का यह दावा कि वह स्वामिनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने जा रही है, सरासर झूठ है. बीजेपी सरकार ने किसानों को उनके हाल पर छोड़ दिया है उसे केवल कॉरपोरेट सेक्टर की चिंता है. यही वजह है कि किसानों की आत्महत्याएं रोके नहीं रुक रही हैं.”

महाराष्ट्र की सबसे बड़ी थोक मंडी शोलापुर मंडी में पिछले सप्ताह एक किलो बैंगन की कीमत 8 रुपये थी. जानकारों का कहना है कि केवल ताजे और बहुत अच्छे बैंगनों को यह रेट मिल रहा था, वरना किसानों को अपने बैंगन 1 रुपये प्रति किलो की कीमत पर भी बेचने पड़े हैं. किसान सभा के सचिव हन्नान मुल्ला ने बताया, “ मंडी में कीमतें इतनी नहीं गिरी हैं लेकिन इसका फायदा बिचौलिए उठा ले जा रहे हैं. बिचौलिए ही किसानों से सब्जी खरीदते हैं और उसे मंडी में पहुंचाते हैं. हालांकि आजकल बहुत से किसान समूह भी मंडी में सीधे सब्जियां ले जा रहे हैं.”

ऐसा नहीं है कि इसी वर्ष ऐसा हो रहा है, पिछले साल भी सब्जियां माटी के मोल बिक रही थीं. पिछले साल भी इंदौर के एक किसान ने अपने 50 बोरी आलू बेचे बदले में उसे हासिल हुआ महज एक रुपया.

लेकिन साहब अच्छा मॉनसून हो या खराब, सूखा हो या बारिश, मंदी हो या तेजी किसान और ग्राहक के बीच जमे बिचौलिए के लिए हर मौसम खुशनुमा है. त्रासदी यही है कि केवल किसान को ही मंदी का बोझ उठाना पड़ता है.

आमतौर पर जब कीमतें स्थिर हो जाती हैं तो स्थानीय बिचौलिए किसानों से उपज खरीदकर उन्हें कोल्ड स्टोर में रख देते हैं. अधिकांश किसान खुद ऐसा इसलिए नहीं कर पाते, क्योंकि उन्हें कर्ज चुकाने या अगली बुवाई के लिए तुरंत पैसे चाहिए होते हैं. यहां भूमिकाएं जटिल हैं, क्योंकि अक्सर इलाके के बड़े किसान ही बिचौलिओं की भूमिका निभाते हैं, वही कोल्ड स्टोर के मालिक भी हैं.

एक बागवानी विशेषज्ञ कहते हैं कि आदर्श स्थिति में जब अच्छी बारिश हो और कम कीटनाशकों का इस्तेमाल किया गया हो तो एक किलो बैंगन के 8 रुपये भी मिलें तो लागत निकल आती है. लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता. जरूरत से कम बारिश या अधिक बारिश की स्थिति में 8 रुपये पर्याप्त नहीं हैं. धान या गेहूं की तरह फल-सब्जियां एक बार में ही नहीं तोड़ी जातीं. यह प्रक्रिया कई दिनों तक चलती है. इस दौरान, बारिश कम या ज्यादा होने का डर रहता है, परजीवियों का हमला हो सकता है. बैंगन में कीड़े लगने का डर ज्यादा होता है.

हमने देखा है कि जिन राज्यों में अच्छी पैदावार होती है उन्हीं में किसान आंदोलन भी ज्यादा होते हैं. यही भारतीय खेती का विरोधाभास है.

सरकार ने कई फसलों के लिए एमएसपी तय किया है लेकिन बहुत से कृषि उत्पादों की कीमत बाजार में एमएसपी से नीचे ही लगाई जाती है. उसकी वजह यह है कि महज चावल और गेहूं को ही सरकार एमएसपी पर खरीदती है. इसलिए जो कृषि उत्पाद सरकार द्वारा सीधे नहीं खरीदे जाते उनके लिए तो एमएसपी का मोल एक प्रतीक से ज्यादा कुछ नहीं है.

(आलोक सिंह भदौरिया की ये रिपोर्ट गांव कनेक्शन से ली गई है.)

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