“उबर और ओला जैसे कैब-हेलिंग ऐप्स के साथ काम करते हुए 43 प्रतिशत कैब ड्राइवर हर दिन 500 रुपये से भी कम कमाते हैं (फ्यूल, भोजन आदि की लागत निकालने के बाद). जबकि 72 प्रतिशत ड्राइवर अपनी कमाई से मासिक खर्चा नहीं निकाल पाते हैं." यह डेटा सोमवार, 11 मार्च को जारी एक सर्वे से पता चलता है.
यह सर्वे पीपल्स एसोसिएशन इन ग्रासरूट्स एक्शन एंड मूवमेंट्स (PAIGAM) ने इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स (IFAT) की मदद से किया. सर्वे में ऐप बेस्ड कैब ड्राईवरों के साथ-साथ डिलीवरी करने वालों की कमाई और काम करने के उनके माहौल का जायजा लिया गया.
सर्वे के लिए आठ शहरों से 5,300 कैब ड्राईवर और 5,000 डिलीवरी करने वाले लोगों का इंटरव्यू लिया गया. वे दिल्ली, लखनऊ, जयपुर, इंदौर, मुंबई, बेंगलुरु, कोलकाता और हैदराबाद से थे.
आंकड़ों से पता चलता है कि 32 फीसदी (या तीन में से एक) ऐप के जरिए ग्रॉसरी (किराने का सामान) डिलीवर करने वाले व्यक्ति रोजाना 200-400 रुपये कमाते हैं. अन्य 30 प्रतिशत डिलीवरी कर्मी रोजाना 400-600 रुपये कमाते हैं, लेकिन इनमें से 76 फीसदी वर्कर्स को अपने मासिक खर्चों को पूरा करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
सर्वे में यह भी बताया गया कि कैसे ऐप-आधारित वर्कर्स सड़क पर अपने दिन का एक लंबा समय गुजारते हैं, काम पर हिंसा का सामना करते हैं और शारीरिक- मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते हैं.
यहां सर्वे में सामने आईं कुछ खास बातों का जिक्र किया गया है.
'ज्यादातर कैब ड्राइवर हर दिन 10 घंटे से ज्यादा गाड़ी चलाते हैं, 30% ने अधिक कमीशन की शिकायत की'
सर्वे में शामिल 5,308 कैब ड्राइवरों में से 83 प्रतिशत ने कहा कि वे एक दिन में दस घंटे से ज्यादा काम करते हैं, जबकि 31 प्रतिशत ड्राइवर एक दिन में 14 घंटे से भी ज्यादा समय तक काम करते हैं. इनमें से 40.7 प्रतिशत ड्राइवरों ने कहा कि वे सप्ताह में एक भी दिन की छुट्टी नहीं ले पाते.
इन कैब ड्राइवर की सामाजिक पृष्ठभूमि देखने पर देखा गया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के 60 प्रतिशत से ज्यादा कैब ड्राइवर 14 घंटे से अधिक समय तक काम करते हैं, जबकि ऐसा करने वाले सामान्य श्रेणी के 16 प्रतिशत हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है, "इससे संकेत मिलता है कि उत्तर देने वालों में से हाशिए पर पड़े वर्ग वालों पर अधिक बोझ और जिम्मेदारियां हैं, यह उनके आत्मशोषण का कारण बनता है.'
तीन में से एक कैब ड्राईवर ने कैब कंपनियों द्वारा हर सवारी पर 31-40 प्रतिशत कमीशन के तौर पर लेने की चिंता जताई. इस बीच, तीन में से दो ड्राइवरों ने दुख जताया कि उन्हें ऐप एल्गोरिदम के कारण "अस्पष्ट" और "मनमाना" कटौती का सामना करना पड़ा.
अधिकांश डिलीवरी करने वाले वर्कर को '10 मिनट में डिलीवरी' अनुचित लगती है
डिलीवरी करने वालों में भी इसी तरह के ट्रेंड सामने आए, जिनमें से 75 प्रतिशत (या चार में से तीन) ने कहा कि उन्होंने दिन में 10 घंटे से ज्यादा काम किया है. सर्वे में शामिल 5,028 डिलीवरी वर्कर्स में से लगभग आधे (48.24 प्रतिशत) ने कहा कि वे पूरे सप्ताह में एक दिन की भी छुट्टी नहीं ले सकते.
रिपोर्ट के अनुसार, 34.4 प्रतिशत डिलीवरी वर्कर अपने सभी मासिक खर्चों (रखरखाव, ईएमआई, चालान आदि) काटने के बाद प्रति माह 10,000 रुपये से कम कमाते हैं.
डिलीवरी करने वाले 85.9 प्रतिशत लोगों ने कहा कि 10 मिनट में तत्काल डिलीवरी की नई पॉलिसी उन्हें पूरी तरह से अस्विकार्य है.
लगभग आधे (47.8 प्रतिशत) ने अफसोस जताया कि उन्हें एक दिन का टारगेट पूरा करने में कोई प्रोत्साहन राशि/ इंसेंटिव नहीं मिली ना ही कोई न्यूनतम गारंटी दी गई.
40% से अधिक ऐप-आधारित वर्कर्स को कार्यस्थल पर हिंसा का सामना करना पड़ता है, 90% खराब मानसिक स्वास्थ्य से पीड़ित
डेटा से पता चला है कि राइड-हेलिंग ऐप्स के साथ काम करने वाले 47.1 प्रतिशत (लगभग आधे) कैब ड्राइवरों को काम पर हिंसा का सामना करना पड़ा. 83 प्रतिशत ड्राइवरों ने कहा कि वे आईडी ब्लॉकिंग के मुद्दे से बुरी से प्रभावित हुए हैं. इसमें अगर कस्टमर जोखिम-संबंधी कारणों को चिह्नित करता है तो ड्राइवर अस्थायी रूप से उलके अकाउंट का एक्सेस खो देते हैं.
99.3 प्रतिशत कैब ड्राइवरों ने सिरदर्द, जोड़ों के दर्द, टांगों, पैरों और पीठ में दर्द, ब्लड प्रेशर की समस्या आदि जैसी शारीरिक बीमारियों से पीड़ित होने की शिकायत की. इसके अलावा, 98.5 प्रतिशत ड्राइवर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पीड़ित थे. इसमें चिंता, तनाव, अवसाद, क्रोध, चिड़चिड़ापन आदि शामिल है.
41.5 प्रतिशत डिलीवरी वर्कर्स को भी काम पर हिंसा का सामना करना पड़ा, और 64.3 प्रतिशत ने हिंसा का सामना करने पर एग्रीगेटर कंपनियों से कोई मदद नहीं मिलने की शिकायत की. 87 प्रतिशत डिलीवरी वर्कर्स ने भी आईडी ब्लॉकिंग और डिएक्टिवेशन के मुद्दे से किसी न किसी तरह से नकारात्मक रूप से प्रभावित होने की जानकारी दी.
मजबूत कानून और सामाजिक सुरक्षा मानदंडों के लागू करने की आवश्यकता
जब ग्राहक Paytm या PhonePe जैसे डिजिटल वॉलेट से भुगतान करते हैं, तो कंपनी 40 किमी की सवारी के लिए लगभग 920 रुपये चार्ज करती है. हालांकि, यदि वे कैश में भुगतान करते हैं, तो चार्ज केवल 615 रुपये के आसपास है. यह चौंकाने वाली बात है; ये शुल्क कैसे काम करते हैं, इसमें कोई स्पष्टता या स्थिरता नहीं है."
हम एक रेस्तरां में खाना लेने जाते हैं, लेकिन वे हमें बाहर इंतजार करने के लिए कहते हैं. ग्राहकों की भूख मिटाने के लिए हमें अपना भोजन भी भूल जाते हैं. पानी देने के बारे में तो भूल जाइए, ग्राहक हम पर चिल्लाते हैं, हमें कई मंजिल पर चढ़ाते हैं और हमें अपनी लिफ्टों का इस्तेमाल करने से रोकते हैं! कुत्तों का काटना इस फील्ड में एक गंभीर मुद्दा है!”
रिपोर्ट के मुताबिक, यह बयान कैब ड्राईवर और डिलीवरी वर्कर के हैं.
ऐप-बेस्ड वर्कर्स की कामकाजी माहौल को जानने के बाद, रिपोर्ट में कहा गया है कि "ड्राइवरों के वेतन को बढ़ाने और उनके सामने आने वाली अनिश्चितता को खत्म करने के लिए कई मैकेनिज्म स्थापित करने की आवश्यकता है"
इसके लिए रिपोर्ट में नीचे लिखीं सिफारिशें की गईं:
गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को कर्मचारियों के रूप में माना जाना चाहिए और उन्हें स्किल श्रमिकों के लिए लिए जो न्यूनतम मजदूरी है, कम से कम उसके बराबर पैसे मिले.
प्रति डिलीवरी जो कमीशन की दर है, उसके मानक तय करें.
सरकारी रिकॉर्ड में सभी ऐप-आधारित वर्कर्स का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य हो.
ऐप के कामकाज, एल्गोरिदम, इंसेंटिव सिस्टम और पेमेंट मैकेनिज्म में पारदर्शिता रहे.
तत्काल प्रभाव से '10 मिनट में डिलीवरी' की पॉलिसी बंद हो.
बिना वर्कर का पक्ष सुने और बिना किसी सही कारण के वर्कर्स की आईडी को डिएक्टिवेट न करें.
काम करने की अधिकतम समय सीमा तय करें.
रेस्टोरेंट, आवासीय समुदाय में डिलीवरी वर्कर्स के भेदभाव को रोकें और उन्हें लिफ्ट-टॉयलेट तक पहुंच की अनुमति दें.
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