ऐसा हो सकता है कि आने वाले कुछ महीनों तक दिल्ली की शादियों में घोड़े या बग्घी दिखाई न पड़े. दरअसल दिल्ली में पहली बार घोड़ों में 'ग्लैंडर्स' नामक बीमारी का पता लगा है. इस वजह से एहतियात के तौर पर दिल्ली सरकार ने घोड़ों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है. बैक्टीरिया से होने वाली ये बीमारी इंसानों तक भी पहुंच सकती है. ऐसे में सरकार इस बीमारी से निपटने के लिए तैयारी में जुट गई है.
सैंपल जमा करने में जुटी दिल्ली सरकार
फिलहाल केवल पश्चिमी दिल्ली में ही ग्लैंडर्स के मामले पाए गए हैं. इस इलाके में 13 में से 7 सैंपल पॉजिटिव पाए गए. लेकिन एहतियात के तौर पर अब पूरी दिल्ली में घोड़ों की जांच की जा रही है.
“ग्लैंडर्स के सैंपल पॉजिटिव आने के बाद दिल्ली सरकार ने नोटिफिकेशन जारी किया है कि पश्चिमी दिल्ली में मौजूद घोड़े तीन महीनों के लिए बाहर नहीं जा सकेंगे. साथ ही दूसरे जिले के घोड़े भी इस जिले में दाखिल नहीं हो पाएंगे. पशुपालन विभाग की टीम पूरी दिल्ली में मौजूद 3000 घोड़ों से ब्लड सैंपल लेने में जुटी है.’’डॉ. जितेंद्र कुमार गौड़, डायरेक्टर, पशुपालन विभाग, दिल्ली सरकार
रिपब्लिक डे को लेकर सतर्क पशुपालन विभाग
अब तक दिल्ली के करीब 300 घोड़ों के सैंपल लिए जा चुके हैं. सैंपल लेने के बाद रिपोर्ट के वक्त पहचान हो सके इसके लिए घोड़े के गले में एक नंबर भी बांधा जा रहा है. बीमारी को लेकर एहतियात बरतने का दायरा करीब 50 किलोमीटर का होता है. ऐसे में दिल्ली के आस-पास के राज्य उत्तरप्रदेश, हरियाणा और राजस्थान सरकार से भी बात की गई है.
साथ ही गणतंत्र दिवस को लेकर आर्मी और दिल्ली पुलिस को भी अपने घोड़ों के सैंपल की रिपोर्ट दिल्ली सरकार के पशुपालन विभाग को देने को कही गई है.
“ये एक बैक्टेरियल रोग है. ये एक्यूटेड बैक्टीरिया होता है और ये एंट्रा सेल्यूलर होता है. यानी ये सेल के अंदर ही घुस जाता है. इसलिए इसके ऊपर दवा बगैरह कम काम करती है. इसलिए इसका ट्रीटमेंट नहीं किया जा सकता है. कोई जानवार या इंसान अगर इसके संपर्क में आ जाए तो बीमारी का खतरा बना रहता है. फिलहाल दिल्ली में किसी इंसान तक ये बीमारी नहीं पहुंची है.”डॉ. जितेंद्र कुमार गौड़, डायरेक्टर, पशुपालन विभाग, दिल्ली सरकार
दिल्ली से पहले इन राज्यों में ग्लैंडर्स के मामले
पहली बार देश में 2006 में घोडों में ग्लैंडर्स का मामला सामने आया था. लेकिन उस पर तुरंत काबू पा लिया गया था. अगस्त 2016 में उत्तर प्रदेश, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और हरियाणा में करीब 400 घोड़ों में ये बीमारी पाई गई थी.
अब तक भारत में इस बीमारी से किसी इंसान की मौत नहीं हुई है. लेकिन अमेरिका में साल 2000 में इंसानों में ये बीमारी देखने को मिली थी. देशभर में हरियाणा के हिसार स्थित राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र में इस बीमारी के सैंपल की जांच की जाती है.
जानवरों में बीमारी की पहचान के बाद टीका लगाकर उसे मारा जाता है. पशु चिकित्सकों के मुताबिक, बीमारी से ग्रसित घोड़े या अन्य जानवरों को मारने के बाद उसे 6 से 7 फीट गहरे गड्ढे में डालना चाहिए. ताकि कोई अन्य जानवर उसके संपर्क में नहीं आए.
मुआवजे का है प्रावधान
घोड़ों के अलावा, गधे, खच्चरों और कई अन्य जानवरों में भी ग्लैंडर्स बीमारी हो सकती है. इस बीमारी में जानवरों को मारने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है. सरकार की तरफ से इस बीमारी से पीड़ित घोड़ों के मालिकों के लिए 25 हजार रुपये और बीमार खच्चर और गधों के लिए 15 हजार रुपये के मुआवजे का प्रावधान है.
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