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Global Hunger Index में पाक-नेपाल से कैसे पिछड़ा भारत? इसे कैसे कैलकुलेट किया जाता है?

Global Hunger Index: पिछली बार 6 पायदान की गिरावट आई थी, जबकि इस बार भारत 4 पायदान नीचे खिसकते हुए 125 देशों में 111वें नंबर पर है.

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ग्लोबल हंगर इंडेक्स (Global Hunger Index) यानी वैश्विक भूख सूचकांक की नई रिपोर्ट जारी हुई है. इस बार की रिपोर्ट में भारत की स्थिति पिछले साल की तुलना में और खराब हो गई है. 2023 में 125 देशों के सर्वे में भारत 111वें पायदान पर है. जबकि 2022 में 126 देशों के सर्वे में भारत 107वीं रैक पर था. आयरिश NGO कंसर्न वर्ल्डवाइड और जर्मन NGO वेल्ट हंगर हिल्फे द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में "हंगर कंडीशन", "सीरियस लेवल" पर है.

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GHI की नई रिपोर्ट को लेकर इस साल भी भारत ने सवाल उठाए हैं. केंद्र सरकार ने भूख मापने के मापदंड को गलत बताते हुए इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया है. बता दें कि 2021 में भारत 101 और 2020 में 94वें पायदान पर था.

अब सवाल उठता है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स है क्या? इसे कैसे कैलकुलेट किया जाता है? भारत को क्या आपत्ति है? 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने के बावजूद क्यों नहीं सुधर रही स्थिति?

ग्लोबल हंगर इंडेक्स क्या है?

ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) भुखमरी से मरने वाले लोगों या सरप्लस भोजन या भोजन की कमी का सामना करने वाले देश की गिनती के बारे में नहीं है. बल्कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) एक उपकरण है जिसे वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर भूख को व्यापक रूप से मापने और ट्रैक करने के लिए डिजाइन किया गया है, जो समय के साथ भूख के कई आयामों को दर्शाता है.

GHI का उद्देश्य भूख के खिलाफ संघर्ष के बारे में जागरूक करना, दुनियाभर के देशों के बीच भूख के स्तर की तुलना करने का एक तरीका प्रदान करना और दुनिया के उन क्षेत्रों पर ध्यान आकर्षित करना है जहां भूख का स्तर सबसे अधिक है और जहां भूख मिटाने के लिए अतिरिक्त प्रयासों की जरूरत सबसे ज्यादा है.

GHI को कैसे कैलकुलेट किया जाता है?

हर देश का GHI स्कोर 4 पैमानों पर कैलकुलेट किया जाता है:

  1. अल्पपोषण (Undernourishment): अंडरनरिशमेंट यानी एक स्वस्थ व्यक्ति को दिनभर के लिए जरूरी कैलोरी नहीं मिलना. आबादी के कुल हिस्से में से उस हिस्से को कैलकुलेट किया जाता है जिन्हें दिनभर की जरूरत के मुताबिक पर्याप्त कैलोरी नहीं मिल रही है.

  2. चाइल्ड स्टंटिंग (Child stunting): चाइल्ड स्टंटिंग का मतलब ऐसे बच्चे जिनका कद उनकी उम्र के लिहाज से कम हो. यानी उम्र के हिसाब से बच्चे की हाइट न बढ़ी हो. हाइट का सीधा-सीधा संबंध पोषण से है. जिस समाज में लंबे समय तक बच्चों में पोषण कम होता है वहां बच्चों में स्टंटिंग की परेशानी होती है.

  3. चाइल्ड वेस्टिंग (Child wasting): चाइल्ड वेस्टिंग यानी बच्चे का अपनी उम्र के हिसाब से बहुत दुबला या कमजोर होना. 5 साल से कम उम्र के ऐसे बच्चे, जिनका वजन उनके कद के हिसाब से कम होता है. ये दर्शाता है कि उन बच्चों को पर्याप्त पोषण नहीं मिला इस वजह से वे कमजोर हो गए.

  4. बाल मृत्यु दर (Child mortality): चाइल्ड मोर्टालिटी का मतलब हर एक हजार जन्म पर ऐसे बच्चों की संख्या जिनकी मौत जन्म के 5 साल की उम्र के भीतर ही हो गई.

GHI स्कोर को कैलकुलेट करने की तीन-स्तरीय प्रक्रिया है:

  1. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त स्रोतों से उपलब्ध लेटेस्ट आंकड़ों के आधार पर प्रत्येक देश के लिए चारों पैमानों के वैल्यू निकाले जाते हैं.

  2. इसके बाद प्रत्येक देश के लिए चारों पैमानों का स्टैंडर्ड वैल्यू पर्सेंटेज निकाला जाता है. GHI ने स्टैंडर्ड वैल्यू निकालने के लिए प्रत्येक पैमाने का फॉर्मूला तय कर रखा है. ये फॉर्मूला आप यहां देख सकते हैं.

  3. प्रत्येक देश के लिए GHI स्कोर की गणना करने के लिए स्टैंडर्ड वैल्यू का उपयोग किया जाता है. अल्पपोषण (Undernourishment) और चाइल्ड मोर्टालिटी (Child mortality) दोनों GHI स्कोर में 1/3-1/3 का योगदान करते हैं, जबकि चाइल्ड स्टंटिंग और चाइल्ड वेस्टिंग दोनों मिलाकर 1/3 का योगदान देते हैं.

कैसे जुटाए जाते हैं आंकड़े?

ग्लोबल हंगर इंडेक्स की वेबसाइट के मुताबिक, अल्पपोषण के आंकड़े यूएन के 'फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन' (FAO) से लिए गए हैं. यह 2020 से 2022 के डेटा का इस्तेमाल किया गया है.

चाइल्ड स्टंटिंग और वेस्टिंग कैलकुलेट करने के लिए WHO, UNICEF और MEASURE DHS 2023 से आंकड़े लिए गए हैं. बता दें इसके लिए 2018–2022 के बीच उपलब्ध ताजा आंकड़े जुटाए गए हैं.

बाल मृत्यु दर के लिए UN IGME 2023 (यूएन इंटर-एजेंसी ग्रुप फॉर चाइल्ड मोर्टेलिटी एस्टीमेशन) से 2021 के आंकड़े लिए गए हैं.

GHI रैंकिंग में लगातार तीसरे साल गिरावट

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की रैंकिंग में लगातार तीसरे साल गिरावट दर्ज की गई है. भारत 125 देशों में 111वें स्थान पर है. 28.7 स्कोर के साथ भारत में भूख की स्थिति को "गंभीर" बताया गया है. इससे पहले 2022 में 121 देशों की लिस्ट में भारत 107वें नंबर पर था, जबकि 2021 में भारत को 101वां रैंक मिला था​.

2023 की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में चाइल्ड वेस्टिंग (Child wasting) यानी बच्चों में कमजोरी की दर 18.7 प्रतिशत है जो दुनिया में सबसे ज्यादा है. यह अति कुपोषण को दर्शाती है. रिपोर्ट के मुताबिक, 2000 में यह 17.8 फीसदी थी जो 2008 में बढ़कर 20.0 फीसदी हो गई. हालांकि, 2015 में इसमें गिरावट देखने को मिली और यह 18.0 फीसदी रही.

भारत के लिए चाइल्ड स्टंटिंग (Child stunting) भी चिंताजनक है. बच्चों की उम्र के हिसाब से उनकी लंबाई नहीं बढ़ रही है. 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में चाइल्ड स्टंटिंग की दर 35.5% है. जो कि बहुत ज्यादा की श्रेणी में आता है. हालांकि, इसमें 2000 के 51.0% के 'बेहद चिंताजनक' स्कोर से गिरावट देखने को मिली है.

GHI की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में बाल मृत्यु दर (Child mortality) में सुधार देखने को मिला है. पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 3.1 प्रतिशत है. 2000 में 9.2% से घटकर 2008 में 6.5%, 2015 में 4.4% और 2023 में 3.1% हो गई है.

वहीं भारत में अल्पपोषण (Undernourishment) की दर 16.6 प्रतिशत है. जो 2015 के 14.0% से 2.6% ज्यादा है. हालांकि, ये अभी 'मध्यम' श्रेणी में है. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत की 15 से 24 वर्ष उम्र की महिलाओं में एनीमिया 58.1 प्रतिशत है.

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भारत सरकार ने रिपोर्ट पर उठाए सवाल

भारत सरकार ने इस रिपोर्ट को गलत और और भ्रामक करार दिया है. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कहा कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स भारत की वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाता है.

मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि इस इंडेक्स के चार में से तीन इंडिकेटर बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़े हैं और पूरी आबादी का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं. वहीं चौथा और सबसे महत्वपूर्ण इंडिकेटर 'कुपोषित जनसंख्या का अनुपात', ओपिनियन पोल पर आधारित है, जिसका सैंपल साइज मात्र 3000 है.

सरकार का कहना है कि पोषण ट्रैकर के मुताबिक, महीने-दर-महीने चाइल्ड वेस्टिंग (Child wasting) 7.2% से नीचे रहा है, जबकि ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023 में इसे 18.7% बताया गया है.

आंतरिक सर्वेक्षण में पोषण की कमी की पुष्टि

केंद्र सरकार ने भले ही ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट को गलत कहते हुए खारिज कर दिया हो, लेकिन आतंरिक सर्वेक्षण कुछ और ही कहते हैं. पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 (NFHS-5 2019-2021) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 5 साल से कम उम्र के 35.5% बच्चों की लंबाई उनके उम्र के हिसाब से नहीं है. वहीं बच्चों में कमजोरी की दर 19.3% है.

GHI की 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में चाइल्ड स्टंटिंग की दर भी 35.5% है, जो कि NFHS-5 के आंकड़ों से मेल खाता है. वहीं चाइल्ड वेस्टिंग (Child wasting) दर 18.7 प्रतिशत है, जिसमें NFHS-5 की रिपोर्ट की तुलना में 0.6 फीसदी का सुधार हुआ है.

क्विंट हिंदी से बातचीत में पूर्व वित्त सचिव सुभाष चंद्र गर्ग कहते हैं, "मुख्यतः जो डेटा इस्तेमाल होता है, वो भारत सरकार के नेशनल हेल्थ सर्वे से ही लिया जाता है. चाइल्ड वेस्टिंग का आंकड़ा परेशान करने वाला है. जो कि दुनिया में सबसे ज्यादा है. वो डेटा भारत सरकार के हेल्थ सर्वे का ही डेटा है."

"भारत सरकार ने कहा है कि वो पोषण कार्यक्रम के तहत भी डेटा इकट्ठा करते हैं. जिसके हिसाब से वेस्टिंग 7.2% से नीचे है. वो डेटा उन लोगों का है जो पोषण कार्यक्रम में आते हैं. जो नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे होता है उसमें भी पूरा डेटा आता है और इसमें भी पूरा डेटा आता है. तो ये कहना की उनकी कार्यप्रणाली सही नहीं है यह मेरे ख्याल से अनुचित है."
सुभाष चंद्र गर्ग

क्विंट हिंदी से बातचीत में ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर दीपांशु मोहन कहते हैं, "भारत में सरकार 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देती है, जिसका मतलब है कि सरकार भी मानती है कि देश में पोषण की समस्या है. ग्रामीण क्षेत्रों में पोषण की समस्या ज्यादा है क्योंकि वहां वैकल्पिक रोजगार के अवसर और आय अर्जित करने की क्षमता कम है."

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पाकिस्तान-बांग्लादेश-नेपाल से पिछड़ा भारत

इस बार के सूचकांक में पाकिस्तान 102वें स्थान पर है. वहीं बांग्लादेश 81वें, नेपाल 69वें और श्रीलंका 60वें स्थान है. इसका मतलब है कि भूख के मामले में पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे भारत के पड़ोसी देशों की स्थिति भारत से बेहतर है.

लोगों के मन में सवाल है कि आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान और श्रीलंका की स्थिति भारत से अच्छी कैसे है? इस सवाल पर सुभाष चंद्र गर्ग कहते हैं,

"हंगर इंडेक्स का GDP इंडेक्स से कुछ लेना देना नहीं है. हंगर इंडेक्स आर्थिक विकास या फिर कृषि उत्पादकता को नहीं मापता है. हंगर इंडेक्स से हमें अपनी जनसंख्या की पोषण की स्थिति का पता चलता है."

इसके साथ ही वो कहते हैं कि औसतन आदमी अपने पोषण पर कितना खर्च करता है और वो सही पोषण लेता है या नहीं लेता है उसपर निर्भर करेगा कि आपका न्यूट्रिशन स्टेटस या हंगर इंडेक्स कैसा आता है. तो ये तर्क की हमारा आर्थिक विकास पाकिस्तान या नेपाल से अच्छा है या हम ज्यादा अनाज पैदा करते हैं, इसलिए हमारा हंगर इंडेक्स बेहतर होना चाहिए- ये गलत है.

NFSA, PMGKAY के बावजूद क्यों नहीं सुधर रही स्थिति?

भारत आम तौर पर खाद्य सुरक्षा और बच्चों में कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए लाखों-करोड़ों रुपये की योजनाएं चलाता है.

एकीकृत बाल विकास योजना (ICDS) जिसे 'पोषण-2' के रूप में पुनर्जीवित किया गया है, बच्चों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को पूरक पोषण प्रदान करके बच्चों में कुपोषण को संबोधित करता है.

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) सामान्य कुपोषण को संबोधित करता है, जिसके तहत सरकार द्वारा प्रत्येक चिन्हित, वंचित व्यक्ति को पांच किलो गेहूं/चावल/मोटा अनाज उपलब्ध कराया जाता है. 80 करोड़ से अधिक भारतीय को NFSA के तहत अनाज मिलता है.

इस साल जनवरी में मोदी कैबिनेट ने अंत्योदय अन्न योजना (AAY) और प्राथमिक घरेलू (PHH) लाभार्थियों को मुफ्त अनाज देने के लिए नई एकीकृत खाद्य सुरक्षा योजना को मंजूरी दी थी. नई योजना का नाम प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY) रखा गया था. इसके तहत दिसंबर 2023 तक मुफ्त अनाज दिया जाएगा जो कि NFSA के तहत किए गए सामान्य आवंटन के अतिरिक्त था.
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इस तरह की योजनाओं के बावजूद भारत की स्थिति क्यों नहीं सुधर रही है. इस सवाल के जवाब में सुभाष चंद्र गर्ग कहते हैं, "पहला- हमारा जो फूड प्रोग्राम है, जिसके जरिए हम फूड न्यूट्रिशन लोगों को देते हैं, वो गेहूं और चावल पर आधारित है. न्यूट्रिशन में अनाज का महत्व है लेकिन आपको सिर्फ गेंहू और चावल से पर्याप्त पोषण नहीं मिलता है. 80 करोड़ लोगों को हम गेहूं-चावल बांटते हैं. लेकिन उन्हें पूर्ण आहार नहीं मिल पाता है."

"दूसरा- भारत में सरकार की ओर से चला गया जा रही योजनाएं परिणाम आधारित नहीं है. बल्कि दूसरे देशों में परिणाम पर जोर दिया जाता है. भारत में आपूर्ति संचालित योजना चलाई जा रही है, रिजल्ट पर जोर नहीं दिया जाता है. जिससे उसके असर का पता नहीं चल पाता है."

वहीं दीपांशु मोहन कहते हैं कि, "लोकल कम्युनिटी बेस्ड कॉपरेटिव, सेल्फ हेल्प ग्रुप और महिलाओं द्वारा संचालित संस्थानों को स्वायत्तता देने और इनकी मदद से इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है."

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