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भारत की पहली महिला वकील को गूगल का सलाम, बनाया डूडल

भारत की पहली महिला बैरिस्टर कॉर्नेलिया सोराबजी के 151वें जन्मदिन पर गूगल ने एक खास डूडल बनाकर उनको समर्पित किया है

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आज यानी 15 नवंबर को भारत की पहली महिला बैरिस्टर कॉर्नेलिया सोराबजी का 151वां जन्मदिन है. इस मौके पर गूगल ने एक खास डूडल बनाकर उन्हें सम्मानित किया है. कॉर्नेलिया सोराबजी के नाम कई रिकॉर्ड हैं. वे न सिर्फ भारत और लंदन में लॉ की प्रैक्टिस करने वाली पहली महिला थीं, बल्कि वो बॉम्बे यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट होने वाली पहली महिला, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई करने वाली पहली महिला और किसी ब्रिटिश यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने वाली पहली भारतीय महिला भी थीं.

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शिक्षा का संघर्ष भरा सफर

कॉर्नेलिया सोराबजी का जन्म 15 नवम्बर 1866 को नासिक में हुआ था. वो समाज सुधारक होने के साथ-साथ एक लेखिका भी थीं. कॉर्नेलिया 1892 में कानून की पढ़ाई के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी गयीं. हालांकि उनके लिए यह सफर इतना आसान नहीं था. उस समय यूनिवर्सिटी में आमतौर पर महिलाओं को दाखिला नहीं दिया जाता था.

नेशनल इंडियन एसोसिएशन ने कॉर्नेलिया की मदद की और उनके अंग्रेज दोस्तों ने उनके लिए कोर्ट में याचिका दायर की. इसके बाद उन्हें वहां दाखिला मिला और कॉर्नेलिया ने 1894 में अपना कोर्स पूरा किया, लेकिन यूनिवर्सिटी ने उन्हें डिग्री नहीं दी. साल 1922 के बाद से ही ऑक्सफोर्ड ने महिलाओं को डिग्री देना शुरू किया था.
भारत की पहली महिला बैरिस्टर कॉर्नेलिया सोराबजी के 151वें  जन्मदिन पर गूगल ने एक खास डूडल बनाकर उनको समर्पित किया है
तमाम संघर्षों के बाद कॉर्नेलिया को कानून की शिक्षा हासिल हुई
(फोटो : ट्विटर)
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भेदभाव के बावजूद जारी रहा जुनून

इंग्लैंड से कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद कॉर्नेलिया सोराबजी 1894 में भारत लौटीं. उस समय भारतीय समाज में महिलाओं को ऊंचा पद नहीं दिया जाता था और न ही महिलाओं को वकालत का अधिकार था. भारत में उन्हें वकालत की इजाजत नहीं मिली. लेकिन कॉर्नेलिया में समाज सुधार और रवायतों को बदलने का एक जुनून था.

अपनी प्रतिभा और काबिलियत की बदौलत उन्होंने महिलाओं को कानूनी सलाह देने की शुरुआत की और महिलाओं के लिए वकालत का पेशा खोलने की मांग उठाई. कॉर्नेलिया ने एक बार फिर से बॉम्बे यूनिवर्सिटी सेे एलएलबी की पढ़ाई की और कानून की डिग्री हासिल की.

आखिरकार 1907 के बाद कॉर्नेलिया को अपनी इस लड़ाई में जीत हासिल हुई. उन्हें बंगाल, बिहार, उड़ीसा और असम की अदालतों में सहायक महिला वकील का पद दिया गया. 1923 में भारत में महिला वकीलों के लिए कोर्ट के दरवाजे खुले, जिसके अगले साल वह कोलकाता हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगीं. रिटायर होने के 6 साल बाद वह लंदन चली गईं और 6 जुलाई 1954 को उनका निधन हो गया.

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