गुजरात में एक दलित RTI कार्यकर्ता की घर में घुसकर हत्या कर दी गई. मृतक अमरभाई बोरिचा की बेटी भी इस वारदात में घायल हो गईं. यह घटना भावनगर जिले के घोघा इलाके की है. मृतक अमराभाई बोरिचा की बेटी ने रोते हुए बताया कि, “2013 से उनके पिता को मारने के लिए कई प्रयास किए गए थे. पुलिस ने हमारा साथ नहीं दिया, यही वजह रही कि उच्च जाति के लोग हमारे घर में घुसे और मेरे पिता की हत्या कर दी गई. मृतक अमराभाई बोरिचा 50 वर्ष के दलित RTI कार्यकर्ता थे जिनकी भावनगर जिले में मंगलवार 2 मार्च को हत्या कर दी गई.”
क्या है मामला?
मृतक दलित RTI कार्यकर्ता की बेटी ने बताया कि साल 2013 में अमराभाई बोरिचा ने एससी/एसटी एक्ट के तहत 3 लोगों के खिलाफ दुर्व्यहार की शिकायत दर्ज कराई थी. आरोप था कि उच्च जाति के कुछ लोगों ने घर के बाहर उनके साथ बदसलूकी की थी. इनमें से 3 लोगों के खिलाफ शिकायत की गई थी. इस घटना के कुछ दिनों बाद से आरोपी व्यक्ति जमानत पर बाहर थे और अमराभाई पर लगातार केस वापस लेने का दबाव डाल रहे थे और उन्हें प्रताड़ित कर रहे थे.
घर में घुसकर निर्मम हत्या
मृतक अमराभाई बोरिचा की बेटी निर्मला ने बताया कि “मंगलवार 2 मार्च को कुछ लोग जो कि क्षत्रीय समुदाय से आते हैं, उनके घर के बाहर से डीजे बजाते हुए निकले. इस दौरान मैं और मेरे पिता घर के बाहर ही खड़े हुए थे. इसके बाद कुछ लोग वापस आए और उन्होंने रॉड, पाइप और पत्थर से मेरे पिता पर हमला कर दिया.”
इस हमले में निर्मला भी घायल हो गई, जिसे भावनगर के अस्पताल में ले जाया गया.
अहमदाबाद स्थित दलित अधिकारों के लिए काम करने वाले एनजीओ नवसृजन के कार्यकर्ता अरविंद मकवाना ने कहा कि, “अमराभाई बोरिचा ने अपनी आत्मरक्षा के लिए हथियार रखने की इजाजत मांगी थी, लेकिन पुलिस ने उन्हें सिर्फ होम गार्ड उपलब्ध कराए, जो कि इस हमले में उनकी सुरक्षा करने में नाकाम रहे.” अरविंद मकवाना ने यह भी कहा कि इस मामले में दो FIR दर्ज कराई गई हैं, जिनमें एक आरोपियों के खिलाफ है, जबकि दूसरी पुलिस के खिलाफ जो कि सुरक्षा प्रदान करने में असफल रही.
अरविंद मकवाना ने बताया कि “एक महीने पहले, जब अमराभाई पर हमला किया गया था तो हमने इसकी पुलिस से शिकायत की थी लेकिन घोघा के सब इंस्पेक्टर पी आर सोलंकी ने FIR दर्ज नहीं की थी.”
हालांकि भावनगर के एसपी ने इससे इनकार किया है और कहा कि, “इस संबंध में लोकल पुलिस को कोई लिखित शिकायत नहीं मिली थी, लेकिन हम इसकी जांच करेंगे कि मौखिक शिकायत के बाद आखिर FIR क्यों दर्ज नहीं की गई.”
वहीं अमराभाई बोरिचा को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया नहीं कराए जाने के सवाल पर एसपी ने कहा कि, “परिवार ने पुलिस से कोई सुरक्षा नहीं मांगी. हमने स्वयं इस केस की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए परिवार की सुरक्षा में होम गार्ड तैनात किये थे.”
गुजरात में दलित एक्टिविस्ट पर पहले भी हो चुके हैं हमले
गुजरात में दलित एक्टिविस्ट पर हमले का यह पहला मामला नहीं है. अक्टूबर 2020 में दलित वकील की उच्च जाति के लोगों ने कथित रूप से ब्राह्मणों के खिलाफ की गई फेसबुक पोस्ट को लेकर हत्या कर दी थी. वहीं 2019 में गुजरात सरकार के अभयम हेल्पलाइन में शामिल एक दलित युवक की घर लौटते वक्त हत्या कर दी गई थी, क्योंकि उसने इंटरकास्ट मैरिज की थी.
द क्विंट से बात करते हुए, अरविंद मकवाना ने कहा कि, “वे 1998 से दलित अधिकारों को लेकर लड़ाई लड़ रहे हैं और इस दौरान उन पर FIR दर्ज कराई गई और कई धमकियां दी गईं कि वे दलितों की मदद नहीं करें.” मकवाना ने कहा कि वे कई सालों से दलित अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं और अब उनके अंदर डर कम हो गया है. इससे पहले मैं उच्च जाति के लोगों के क्षेत्र में जाने से डरता था. यहां तक कि अगर वे कुछ भी नही कहते थे, लेकिन एक साथ रहते थे तो डर लगता था.
वहीं एक अन्य दलित अधिकार एक्टिविस्ट हंसमुख सक्सेना ने कहा कि, “सरकार की खामोशी और दोषियों को सजा देने में देरी की वजह से दलितों पर होने वाली हिंसा बढ़ रही है.”
हंसमुख सक्सेना ने कहा कि “हमारी प्रशासनिक व्यवस्था और संरचना इस तरह से डिजाइन की गई है कि वह हमेशा उच्च जाति के लोगों की मदद करती है. इन लोगों के खिलाफ FIR कराना और लड़ाई लड़ना मुश्किल हो जाता है.”
2019 में RTI कार्यकर्ता कौशिक परमार गुजरात पुलिस की SC/ST सेल से राज्य में दलितों की स्थिति को लेकर सूचना मांगी थी. RTI से मिली सूचना के आधार पर पिछले कुछ सालों में दलितों पर हिंसा के 1545 मामले दर्ज किए गए, इनमें सबसे ज्यादा 2001 में हुए थे. इनमें 22 हत्याएं और 104 बलात्कार की वारदातें शामिल हैं.
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