गटूर भाई, गुजरात के बोटाद जिले के देवगना गांव में खेतिहर मजदूर के तौर पर काम करते हैं. चार बच्चों के पिता गटूर भाई हर दिन खेत में सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक काम करते हैं, इसके बदले में उन्हें 200 रुपये मिलते हैं. इतनी सी दिहाड़ी या मजदूरी से बढ़ते बच्चों का पालन-पाेषण और गुजारा करने में उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ती है.
26 जुलाई का दिन गटूर भाई के लिए काफी भारी रहा, उनके जीवन में और चुनौतियां लेकर आया. क्योंकि इस दिन उन पर उनके भाई के चार बच्चों की जिम्मेदारी भी आ गई. गटूर के 40 वर्षीय भाई का नाम कन्नू भाई था, वह उन 42 लोगों में से एक थे जिनकी गुजरात के बोटाद और अहमदाबाद जिलों में जहरीली शराब पीने से मौत हो गई. गटूर भाई के गांव में अब तक कम से कम 10 लोगों की मौत हो चुकी है.
"अब मैं आठ बच्चों का भरण-पोषण कैसे करूंगा, उन्हें क्या खिलाऊंगा?" यह एक ऐसा सवाल है जो गटूर भाई कर रहे हैं.
जहरीली शराब से अब तक बोटाद में कम से कम 32 लोगों की और अहमदाबाद के 10 लोगों की मौत हो चुकी है. यहां पर गौर करने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि गुजरात एक ड्राई स्टेट है यानी वहां शराब प्रतिबंधित है.
बोटाद के एसपी करण राज वाघेला का 28 जुलाई को तबादला कर दिया गया. इससे एक दिन पहले उन्होंने क्विंट को बताया था कि "यह मामला नकली शराब के सेवन का नहीं है. इन लोगों की मौत पानी में मिलाए गए एक केमिकल का सेवन करने के बाद हुई है. इस केमिकल के निर्माण और बिक्री में शामिल कई लोगों को हमने गिरफ्तार किया है. इस समय हम 12 लोगों से पूछताछ कर रहे हैं."
अहमदाबाद से करीब 130 किलोमीटर दूर बोटाद जिले के दो गांवों तक क्विंट पहुंचा और इस त्रासदी में मारे गए लोगों के परिवारों से मुलाकात की.
'30 साल से हमारे गांव में खुलेआम बिक रही है शराब'
राजू भाई, बोटाद के रोजिड गांव के उप-सरपंच हैं, उनका दावा है कि इसी साल फरवरी (2022) में अपने गांव में होने वाली "शराब की अवैध बिक्री" को लेकर बोटाद के SP से लिखित में शिकायत की थी.
पांच महीने बीते थे और बीती 26 जुलाई को उनके 35 वर्षीय भतीजे दिनेश ने मिलावटी ड्रिंक पीने के बाद दम तोड़ दिया. दिनेश अपने पीछे 2 साल का बच्चा छोड़ गए हैं. क्विंट से बात करते हुए राजू ने कहा कि "कुछ समय पहले मेरे भतीजे (दिनेश) की पत्नी की भी मौत हो गई थी, इसलिए अब उनका बच्चा अपनी दादी के साथ रहेगा. इस स्थिति में सरकार को हमारी मदद करनी चाहिए."
राजू भाई बताते हैं कि "गांव के अधिकांश पुरुषों की तरह दिनेश भी मतदूरी करता था और उसे दिनभर में नाकाफी मजदूरी मिलती थी. वह काम से लौटने के बाद ड्रिंक करता था. हम सब यह जानते हैं कि गुजरात ड्राई स्टेट है और यहां शराब का सेवन करना प्रतिबंधित है, लेकिन 30 से अधिक वर्षों से मैं अपने गांव में शराब की बिक्री देख रहा हूं."
राजू भाई आगे कहते हैं कि शराब की बिक्री की जानकारी होने के बाद अगर पुलिस गांव में पहुंचती भी है तो "दो दिनों के बाद बिक्री फिर से शुरु हो जाती है."
दिनेश के एक अन्य रिश्तेदार ने दावा किया कि अधिकारियों को "बिक्री के बारे में जानकारी थी, लेकिन जब तक ये मौतें नहीं हो गईं तब तक उन्होंने कुछ नहीं किया."
मिलावटी ड्रिंक पीने के कुछ घंटे बाद दिनेश ने "धुंधला दिखने और उल्टी आने" की शिकायत की थी, जिसके बाद गांव से लगभग 90 किमी दूर भावनगर के एक अस्पताल में उन्हें भर्ती कराया गया. जहां उनकी मौत हो गई.
'बच्चों की देखभाल अब कौन करेगा?'
बोटाद के रोजिड गांव में 27 जुलाई को वाघेला परिवार के ऊपर उस समय दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था जब उनके परिवार के तीन सदस्यों की मौत जहरीली शराब पीने की वजह से हो गई थी.
जिन तीन लोगों की मौत हुई वे वाल्मीकि समुदाय से थे, उनकी उम्र क्रमश: 25 साल, 28 साल और 60 साल थी. प्रवीण नामक शख्स मुंबई से रोजिड अपने रिश्तेदार के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए आए थे. उन्होंने कहा कि "दीपक मेरे बहनोई थे, वे परिवार के एकमात्र कमाने वाले शख्स थे. वे अपने पीछे बूढ़े माता-पिता के साथ-साथ तीन और छह साल की दो छोटी बच्चियों को छोड़कर गए हैं. जहरीली शराब पीने के बाद उन्होंने उल्टी होने और दिखाई न देने की शिकायत की थी."
प्रवीण आगे बताते हैं कि "दीपक एक सफाई कर्मचारी था. वह हर दिन 100-200 रुपये कमा लेता था. उसका काम खराब था, वो कभी-कभी पीता था."
मरने वाले अन्य दो शख्स दीपक के मामा और उसका चचेरा भाई था, दीपक इन्हीं के साथ रहता था. परिवारवालों की मांग है कि सरकार उनकी बेटियों की देखभाल करने और उन्हें शिक्षित करने में मदद करे.
प्रवीण कहते हैं कि "भले ही यहां शराब बेचने की अनुमति नहीं है फिर भी लोग यहां गुप्त रूप से बेचते हैं. जिसकी वजह से युवाओं की मौत हो रही है और वे अपने पीछे छोटे बच्चों को छोड़कर इस दुनिया से जा रहे हैं. इस बार की घटना काफी गंभीर है. सरकार को इसे संजीदगी से लेना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इस तरह की घटनाएं दोबारा न हो."
"मुझे किसी भी राजनेता ने यह नहीं बताया कि वे कैसे इसे रोकेंगे"
52 वर्षीय देवजी भाई के छह बच्चों में से एक धृतिका ठाकुर ने क्विंट से बात करते हुए अपने पिता को याद करते हुए कहती है कि "घटना वाले दिन सुबह उनके पिता ने शराब पीने के बाद चक्कर आने की शिकायत की थी. इसके बाद चीजें काफी तेजी से खराब हुईं. शाम को हमें उन्हें भावनगर अस्पताल ले जाना पड़ा, जहां उनकी मौत हो गई."
धृतिका ठाकुर रोजिड की रहने वाली है यह वही गांव है जहां से पहली मौत की सूचना मिली थी. धृतिका बताती हैं कि "गांव में शराब की बिक्री होती है, यह सबको पता था. इस त्रासदी के लिए हर कोई जिम्मेदार है. यह शराब बेचने वाले, पीने वाले और सरकार सब जिम्मेदार हैं." धृतिका बताती हैं कि उनके भाई की तरह उनके पिता भी मजदूरी थे, जो रोजाना नाकाफी कमा पाते थे.
धृतिका आगे बताती हैं कि
"त्रासदी के बाद से कई राजनेता रोजिड गांव का दौरा कर चुके हैं लेकिन उनमें से किसी ने मुझसे यह वादा नहीं किया कि वे शराब की बिक्री और निर्माण पर कब और कैसे अंकुश लगा सकते हैं."
हाल ही में धृतिका की बड़ी बहन की सगाई हुई है. चूंकि अब उसके पिता इस दुनिया में नहीं रहे इसलिए धृतिका की सरकार से मांग है कि "उसकी बहन की शादी के खर्चों का ख्याल अब सरकार रखे."
"पीने के बाद भाई ने छाती और पेट में जलन की शिकायत की"
पिछले साल कन्नू (40 वर्ष) की पत्नी ने उसे छोड़ दिया था. कन्नू के शराब पीने की वजह से वह थक चुकी थी. गटूर भाई बहते हुए आंसुओं के साथ बताते हैं कि "वह रोज शराब पीकर आता था इसलिए उसकी पत्नी ने उसे छोड़ दिया था. कन्नू के चार बच्चे हैं और अब वह भी इन्हें छोड़कर चला गया."
गटूर देवगना गांव के रहने वाले हैं, अब वे आठ बच्चों का पालन-पोषण कर रहे हैं. उनके भाई कन्नू ने 25 जुलाई की शाम को "पेट दर्द, छाती में दर्द, चक्कर आने और उल्टी होने" की शिकायत की थी. गटूर बताते हैं कि "कन्नू ने कहा था कि जैसे उसके अंदर आग लगी हो. इसके बाद हम उसे एंबुलेंस से भावनगर अस्पताल ले गए लेकिन उसकी हालत बिगड़ गई और कुछ घंटों के बाद उनकी मौत हो गई."
गटूर बताते हैं कि "कुछ साल पहले से गांव में शराब की बिक्री हो रही थी. मुझे नहीं पता कि आखिर उन्हें ये कहां से मिलती है. वह रोजना महज 150 रुपये कमाता था."
शराब पीने की आदत को लेकर दोनों भाइयों में वर्षों से बहस होती रही है. गटूर अक्सर कन्नू को यह दिलाते थे कि कन्नू तेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं, जिनकी देखभाल तुम्हें करनी है.
गटूर कहते हैं कि "मैं उसे चेतावनी देता था कि यह उसके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं, उसे नुकसान पहुंचाएगी. लेकिन वह मुझे अपने काम पर ध्यान देने के लिए कह देता था. वह कहता था कि उसने जो पैसे कमाए हैं उसे वह अपने हिसाब से खर्च करने के लिए स्वतंत्र है. लेकिन अब वह जा चुका है."
कन्नू के बच्चों की उम्र क्रमश: तीन साल, चार साल, आठ साल और नौ साल है. गटूर कहते हैं कि "मैं खेतों में काम करता हूं. वहां से मुझे बहुत कम मेहनताना मिलता है. मुझ पर कर्ज है. मैं कैसे रहूंगा? सरकार से मेरा हाथ जोड़कर निवेदन है कि वह हमारी मदद करे."
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