ये कैसा नशा है जबां उर्दू का!
खुद की पढ़ी इस नज्म के टुकड़े में छिपे सवाल का जवाब भी खुद ही देते नजर आते हैं गुलजार.
उर्दू के दीवानों के लिए जश्न-ए-रेख्ता एक बार फिर हाजिर है. पहले दिन उर्दू से महकती शाम में लोगों को मशहूर लेखक और गीतकार गुलजार का साथ मिल जाए तो क्या कहने. इसका लुत्फ उर्दू के जश्न में पहुंचे लोगों ने बखूबी उठाया.
दिल्ली में लगातार तीन दिन तक चलने वाले इस उर्दू फेस्टिवल के दूसरे दिन भी लोगों ने अपनी सुबह गुलजार के नाम की. जाहिर सी बात है कि शेर-ओ-शायरी का दौर तो चलता ही लेकिन इससे इतर हट कर गुलजार ने ऐसी कई बातें कही जो वहां बैठे नए लेखकों, उनको सुनने आए लोगों के सीखने लायक रही.
जाने-माने हिंदी-उर्दू लेखक जावेद सिद्दीकी कहते हैं कि गालिब ने अपने एक दोस्त को अपने सारे कलाम सौंपते हुए कहा था कि आपको इसमें जो नहीं पसंद आप उसे काट दें. गालिब ने खुद के लिखे हुए कई शेर काटे जिसमें उन्हें जरा सी भी खामी नजर आई.
गुलजार थोड़ी तल्खी चेहरे पर लाते हुए कहते हैं कि आजकल हर कोई साहिब-ए-किताब बनना चाहता है. सभी को किताब छापने की जल्दी है. आगे चलकर आप खुद के लिखे लफ्ज के लिए अफसोस करेंगे. जल्दी क्यों है इतनी? इत्मीनान से खुद को नापना सीखना चाहिए. खुद के काम को रद्द करने का तरीका सीखें. अपने आप को चेक करने, एडिट करने की आदत डालनी चाहिए.
‘कला में समाज के प्रति जिम्मेदारी हो’
गुलजार कहते हैं- शायरी सिर्फ अपना दर्द कहने का तरीका नहीं. आप एक समाज का हिस्सा है. समाज की बात, दर्द, माहौल भी शायरी-लेखनी में नजर आनी चाहिए.
हर कलाकार के अंदर एक समाज-ई-शऊर होना चाहिए. उनकी कला में समाज के प्रति जिम्मेदारी होनी चाहिए. क्योंकि आप खुद अपने दौर का इतिहास हैं.गुलजार
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