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Handloom: कोरोना के बाद बिजली की मार से त्राहि त्राहि कर रहे कासगंज के बुनकर

National Handloom Day 2022: यूपी के कासगंज के बुनकर क्यों छोड़ रहे ये व्यवसाय?

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भारत
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उत्तर प्रदेश में पारंपरिक उद्योगों में से एक हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योग है. श्रम प्रधान क्षेत्र होने के कारण और इस प्रकार रोजगार के अनेक अवसर प्रदान करते हुए, यह राज्य के सामाजिक-आर्थिक ढांचे को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. पूरे देश में रहने वाले बुनकरों में एक चौथाई भाग उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं.

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आज क्विंट हिंदी आपके बीच कासगंज के कस्बा गंजडुंडवारा के बुनकरों की कहानी लेकर आया है. बिजली से परेशान बुनकर अब अपने हथकरघा कबाड़ी को बेचने को मजबूर हैं.

बिजली की दरों और आपूर्ति से परेशान बुनकर अब अपने हथकरघे बेच रहे हैं या धंधा बंद कर कोई और धंधे की शुरुआत कर रहे हैं. यहां के बुनकर मुख्य रूप से बिजली की ऊंची दरें, आपूर्ति, मिलने वाले सरकारी अनुदान से परेशान हैं. इनका कहना है कि....

योगी सरकार में हम बुनकरों की कोई नहीं सुन रहा है. न सरकार सुनती है और ना ही क्षेत्र की विधायक 'नादिरा सुल्तान उर्फ बिटिया'. हम लोग अधिकारी और नेताओं की चौखट के चक्कर लगा लगाकर परेशान हो गये हैं.

बुनकर बताते हैं कि हमारे गंजडुंडवारे का अंगौछा, लुंगी, जांघिया कपड़ा मशहूर है. हम लोग ऑर्डर पर और भी तरीके का माल तैयार कर देते थे. लेकिन, अब हम लोगों को ऑर्डर नहीं मिल पा रहा है. वो बताते हैं कि ....

गंजडुंडवारा कस्बा का कपड़ा बहुत ही मशहूर है. हम लोग ऑर्डर के अनुसार हर तरीके का कपड़ा बनाते हैं. पहले हमारे यहां का कपड़ा गल्फ देशों में भी बिका करता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है. बिजली की मार दिनों दिन बढ़ रही है. पहले बिजली हमको एक मुश्त दर में मिलती थी, अब ऐसा नहीं है. पिछले दो सालों से हम लोगों का बिल तक नहीं निकल रहा है.
मोहम्मद इदरीश, बुनकर (गंजडुंडवारा, कासगंज)

परेशान कारोबारी काम बंद करने को मजबूर

2006 में जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे उस समय प्रति मशीन 75 रुपये फिक्स चार्ज था. लेकिन, इस समय ऐसा कुछ नहीं है. अब हम लोगों का बिल भी नहीं निकल पा रहा है. अब किसी का बिल 20 लाख आ रहा है तो किसी का बिल 9 लाख आ रहा है. मीटरगेज रेलवे लाइन के समय हमारे यहां से माल ढुलाई करके अन्य शहरों में कम कीमत पर पहुंच जाता था. जब से रेलवे लाइन ब्रॉडगेज में परिवर्तित हुई है, तब से ये सुविधा भी बंद कर दी गयी है.

श्रमिकों को 200 रुपए ही मिल पाती है पूरे दिन की दिहाड़ी

इस उद्योग के कारोबारी ही नहीं बल्कि इसमें काम करने वाले श्रमिक और कारीगरों के सामने रोटी और रोजी का संकट गहराया हुआ है.

हम लोग पूरे सप्ताह (7 दिन) में कुल 1000 से 1200 तक का काम कर पाते हैं. यहां पर कोई एकमुश्त तनख्वाह नहीं होती है. हम लोगों को काम के अनुसार पैसा दिया जाता है. इस समय बिजली नहीं आती है, तो काम भी नहीं चल रहा है. घर में आठ लोगों का परिवार है कमाने वाले सिर्फ दो लोग हैं मैं और मेरा बेटा.
अब्दुल रहमान, श्रमिक, पावरलूम

दूसरे श्रमिक बताते हैं कि कोरोना के समय हम लोगों के पास खाने के लिए खाना तक नहीं था. हम यहां पर कपड़ों को फोल्ड करने का काम करते हैं. हमें भी तनख्वाह काम के अनुसार मिलती है. कोरोना के समय पर हम भूखे तक रहे हैं. मालिक लोगों से पंद्रह हजार का कर्जा तक हो गया है. अब सोचते हैं मकान बनाने में या खेत पर मजदूरी कर लें तो मालिक कहते हैं पहले कर्जा चुकाओ तब कहीं जाना. हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं, जो हम उनकी उधारी के पैसे चुका पाएं. इस समय हम तो बंधुआ मजदूर बन चुके हैं.

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कारोबारियों के बच्चों को इस काम में कोई रुचि नहीं

कासगंज के गंजडुंडवारा में 100 साल से ज्यादा का हो चुका इस कारोबार का कोई वारिस नहीं मिल रहा है. अधिकतर कारोबारी के बच्चे कहते हैं कि...

इस काम मे कोई फायदा नहीं है. बिजली का बिल भी ज्यादा आता है, तो बाजार में हम लोगों का माल भी महंगा रहता है. इसलिए ऑर्डर नहीं मिल पाते हैं. श्रमिकों की दिहाड़ी भी नहीं निकल पाती है, तो ऐसे में काम करने वाले लोग भी नहीं मिल पाते हैं.
अब्दुल हक्काम

इस पूरे मामले पर कासगंज के बिजली विभाग के एक्सईएन ने बताया कि अभी हम लोगों को इन बुनकरों से कैसे बिल वसूलना है इसके कोई आदेश नहीं आये हैं .इसलिए हम लोग अभी बिल जारी नहीं कर रहे हैं. गंजडुंडवारा के बुनकरों के ऊपर बिल बकाया चल रहे हैं.

जिला मुख्यालय से लेकर लखनऊ तक लगाए चक्कर

कारोबारी नईम अख्तर बताते हैं कि हम लोग अपनी मांगों में बिजली के एक मुश्त दर की मांग करने के लिए जिला अधिकारी से लेकर के उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यालय तक के चक्कर लगा रहे हैं. हमारी कोई सुनने वाला नहीं है. सब कह देते हैं जल्द ही करवा देंगे. हम कोशिश कर रहे है, फिलहाल हमारी कोई नहीं सुन रहा है.

जन प्रतिनिधियों को नहीं है हमारी कोई सुध

क्षेत्रीय जन प्रतिनिधियों को लेकर समाज के लोगों में भयंकर गुस्सा है. इस कारोबार से जुड़े लोग हताश होकर बताते हैं.

सांसद से लेकर के विधायक, चेयरमैन कोई भी कुछ नहीं कर रहा है. ये लोग केवल चुनाव के समय वोट मांगने के लिये आते हैं. लंबी चौड़ी बातें करते हैं और निकल जाते हैं. चुनाव के बाद नजर तक नहीं आते हैं. आखिर हम अपना दर्द किसे दिखाएं और किससे कहें.

जिम्मेदार अधिकारी बदलते रहे, समस्या रही जस की तस

जिले के जिम्मेदार अधिकारी आते रहे और जाते रहे, लेकिन इन बुनकरों की सुध लेने वाला कोई नहीं मिला. इस समय जनपद की मौजूद जिलाधिकारी हर्षिता माथुर ने बताया कि बुनकर लोग बिजली की समस्या को लेकर मिलते रहे हैं, जिसको लेकर बिजली विभाग के अधिकारियों को पूर्व में निर्देशित करते रहे हैं. एक बार बुनकर बिजली बिल माफी को लेकर मिले थे. कह रहे थे शासन ने बिजली बिल माफी के लिए आदेश जारी किए हैं, लेकिन मैंने बिजली विभाग के अधिकारियों से मिलकर बुनकरों को बताया था ऐसा कोई आदेश नहीं आया है. ये मामला बिजली विभाग के रेवेन्यू से जुड़ा हुआ है, इसमें हम तो कुछ कर नहीं सकते हैं.

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