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जलियांवाला बाग की कहानी: मशीनगन से गोली बरसाना चाहता था डायर

जलियांवाला बाग में जनरल डायर ने निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाई, जिसमें सैकड़ों लोग शहीद हुए थे

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(इस आर्टिकल को पहली बार 14 अगस्त 2022 को पब्लिश किया गया था. आज 13 अप्रैल 2024 को जलियांवाला बाग नरसंहार के बरसी पर इसे दोबारा पब्लिश किया गया है.)

आज कहानी जलियांवाला बाग की...जिसके बाद भारत में आजादी के आंदोलन की दशा और दिशा बदल गई. क्रूरता और जुल्मो सितम की इंतहा ने भारत के बच्चे-बच्चे को जगा दिया.
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जलियांवाला बाग में क्या हुआ था?

ये साल था 1919 और बैसाखी का दिन था. क्रांतिकारी अंग्रेजों की दमनकारी नीति के खिलाफ जलियांवाला बाग में इकट्ठा हुए थे. वो रोलेट एक्ट का विरोध कर रहे थे. इसके अलावा सत्यपाल और सैफुद्दीन नाम के क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी के विरोध में ये जनसभा बुलाई गई थी. हालांकि शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था लेकिन बड़ी संख्या में इस जनसभा में देशप्रेमी इकट्ठा हुए. जिससे अंग्रेज बौखला गए.

अंग्रेजों को लगा कि कहीं 1857 जैसी नौबत दोबारा ना आ जाये. इसलिए भारतीयों की उठती इस आवाज को पूरे तरीके से कुचल देना चाहिए. लिहाजा जनरल डायर को इस विरोध से निपटने का जिम्मा दिया गया. जनरल डायर अपने 90 हथियारों से लैस ब्रिटिश सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग पहुंच गया. अंग्रेजों ने जलियांवाला बाग को चारों तरफ से घेर लिया. उस वक्त जलियांवाला बाग में करीब 5 हजार लोग मौजूद थे. जिसमें ब्चचे और महिलाएं भी शामिल थीं और ये सभी निहत्थे थे. शांतिपूर्ण तरीके से जनसभा कर रहे थे.

जनरल डायर ने बिना चेतावनी के चलवाई गोली

अंग्रेजी सैनिकों ने जनसभा को घेरकर सारे भागने के रास्ते बंद कर दिये और जनरल डायर ने बिना कोई चेतावनी दिये गोली चलाने का आदेश दे दिया. ब्रिटिश सैनिकों ने निहत्थे बच्चे, महिलाएं और बुजुर्गों पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी. अंग्रेजी सैनिकों ने केवल 10 मिनट में 1650 राउंड गोलियां चलाईं. वहां मौजूद एक भी शख्स बाग से नहीं निकल पाया क्योंकि चारों तरफ मकान थे और बाहर जाने के रास्ते पर ब्रिटिश सैनिक.

गोली से बचने के लिए कोई दीवार पर चढ़ने की कोशिश में शहीद हो गया और कोई वहां मौजूद एकमात्र कुएं मैं कूद गया. उस कुएं की हालत ये थी कि वो लाशों से पट गया था.

इस नरसंहार में शहीद हुए लोगों का सही आंकड़ा आज तक नहीं मिल पाया लेकिन जलियांवाला बाग में 388 शहीदों की लिस्ट है. जबकि ब्रिटिश सरकार के तत्कालीन दस्तावेजों में 379 लोगों की मौत और 200 लोगों के घायल होने का दावा किया गया है. हालांकि अनाधिकारिक आंकड़े के मुताबिक एक हजार से ज्यादा लोग इस नरसंहार में शहीद हुए थे.

जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद क्या हुआ?

एक तरफ जलियांवाला बाग नरसंहार और दूसरी तरफ अंग्रेजों का रॉलेट एक्ट, जिसने भारतीयों से अपील और दलील के सारे हक छीन लिये. देशवासियों के मन में गुस्सा भर गया, वो किसी भी तरीके अंग्रेजों को मार भगाना चाहते थे. उधर महात्मा गांधी और मोतीलाल नेहरू भी इससे बेहद आहत थे. लिहाजा फैसला हुआ कि कांग्रेस का सम्मेलन इस बार अमृतसर में ही होगा. तारीख तय की गई 26,27 और 28 दिसंबर 1919.

गांधी जी को देशवासियों की भावनाओं का अंदाजा था. अब का गोलबाग उस वक्त एएचिसन पार्क के नाम से जाना जाता था. यहीं पर कांग्रेस का अधिवेशन था. इसी अधिवेशन में गांधी जी ने देशवासियों से असहयोग आंदोलन का आह्वान किया. जिसके बाद पूरे देश में अंग्रेजी प्रोडक्ट्स को जलाना शुरू कर दिया गया.

इसके अलावा यहां फैसला किया गया कि अमृतसर में देशभक्तों ट्रेनिंग दी जाएगी. इसके लिए स्वराज आश्रम की स्थापना हुई. जहां देशभक्तों को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने की ट्रेनिंग दी जाती थी. ये सब जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद हुआ. उस नरसंहार ने देशवासियों में नई ऊर्जा भर दी.

जनरल डायर मशीनगन से हमला करना चाहता था

19 नवंबर 1919 को लाहौर में जलियांवाला नरसंहार को लेकर भारतीय वकील ने जनरल डायर से सवाल किये थे. जिसका जिक्र वकील चिमनलाल सीतलवाड़ ने अपनी आत्मकथा ‘रिकलेक्शंस एंड रिफलेक्शंस’ में किया है. उन्होंने लिखा है कि मैंने डायर से पूछा था कि क्या वो जलियांवाला बाग में मशीनगन लेकर गए थे. तो इसके जवाब में डायर ने कहा था हां मैं लेकर गया था, लेकिन रास्ता बहुत छोटा था इसलिए गाड़ी अंदर नहीं जा सकी. अगर गाड़ियां अंदर जा पाती तो मैं मशीनगनों से हमला करवाता. इस पर वीकल चिमनलाल ने पूछा था कि ऐसे में और भी ज्यादा लोगों की जानें जाती, आपको नहीं लगता आप गलत कर रहे थे. इसके जवाब में डायर ने बड़ी बेशर्मी से कहा था, नहीं मैं पूरे पंजाब को सबक सिखाना चाहता था. ताकि कोई दोबारा बगावत ना कर सके.

दरअसल उस वक्त जनरल डायर दो मशीनगनें गाड़ियों पर लगाकर ले गया था लेकिन जलियांवाला बाग का गेट बहुत संकरा था. तो वो अंदर नहीं जा पाईं. वरना डायर उनसे गोली चलवा देता.

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