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हरियाणा के सीएम खट्टर की कुर्सी इन 3 वजहों से फिलहाल बच गई है!

मनोहर लाल खट्टर की कुर्सी बच गई लेकिन कैसे?

Published
भारत
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डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम को बीती 25 अगस्त को बलात्कार का दोषी ठहराया गया. सीबीआई की स्पेशल कोर्ट से आए इस फैसले के तुरंत बाद पंचकुला समेत हरियाणा के तमाम शहरों में हिंसा फैल गई. हिंसा की अलग-अलग घटनाओं में 35 से ज्यादा लोगों की जानें गईं. इसके साथ ही सियासी हलकों में ये चर्चा तेज होने लगी कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की विदाई का वक्त नजदीक है. लेकिन अगले दो दिन में घटनाक्रम तेजी से बदला. हरियाणा की राजधानी से बात निकली तो देश की राजधानी में हलचल तेज हो गई. बैठकों का दौर शुरू हो गया.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने हरियाणा प्रभारी और बीजेपी महासचिव अनिल जैन को तलब किया और प्रधानमंत्री मोदी के साथ खट्टर के भविष्य पर चर्चा की गई. पहले केन्द्र के नाराज होने की खबर सामने आई लेकिन दिल्ली से चंडीगढ़ के 244 किलोमीटर का रास्ता पूरा तय करने से पहले ही नाराजगी फुस्स हो गई. तमाम मंथन के बाद अब मनोहर को कुर्सी बचाने की मनुहार करने की जरूरत नहीं पड़ेगी. क्योंकि इन 3 वजहों से फिलहाल के लिए उनकी कुर्सी बच गई है.

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वजह नंबर 1

बीजेपी सूत्रों की मानें तो डेरा समर्थकों को पंचकुला तक पहुंचने देना, सरकार की गलती नहीं थी. बल्कि सरकार का सोचना ये था कि अगर समर्थकों को पहले रोकने की कोशिश की जाती तो तमाम गांव-शहरों में हिंसा आग की तरह फैल सकती थी, जिसे संभालना सरकार के लिए चुनौती भरा होता. अगर ऐसा होता तो पूरे सूबे में सरकार के खिलाफ माहौल तैयार हो सकता था.

मनोहर लाल खट्टर की कुर्सी बच गई लेकिन कैसे?
राम रहीम को दोषी करार दिए जाने के बाद भड़की हिंसा
( फोटो:Reuters/Cathal McNaughton )
हरियाणा सरकार ने दावा तो ये भी किया कि पंचकुला हिंसा पर महज 2 घंटे के भीतर काबू पा लिया गया. साथ ही मरने वालों में ज्यादातर हिंसा फैलाने वाले ही शामिल थे.

यानी देखा जाए, तो खट्टर सरकार पर अब तक जो सबसे बड़ा आरोप हिंसा न रोक पाने का था, वो तो यूं ही खारिज हो गया.

मनोहर लाल खट्टर की कुर्सी बच गई लेकिन कैसे?
पीएम मोदी और सीएम खट्टर रहे हैं पुराने दौर के साथी
(फोटो:PTI)
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वजह नंबर 2

प्रधानमंत्री मोदी और खट्टर के बीच दोस्ती पुरानी है. पीएम जब हिमाचल और हरियाणा के प्रभारी हुआ करते थे तब पंचकुला में खट्टर भी मोदी के साथ रहते थे. मोदी मानते हैं कि खट्टर एक ईमानदार छवि वाले नेता हैं. उनके नेतृत्व पर पीएम का भरोसा उन्हीं दिनों की देन है. जो लोग पीएम मोदी को जानते हैं वो ये भी जानते हैं कि पीएम मीडिया के दबाव में फैसले कम ही लेते हैं. खट्टर को हटाने का मतलब होता, प्रधानमंत्री की पसंद पर ही सवाल खड़े होना. जाहिर है, ऐसे हालात में उनकी कुर्सी पर कोई आंच नहीं आने वाली.

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वजह नंबर 3

मनोहर लाल खट्टर गैर-जाट मुख्यमंत्री हैं. बीजेपी मानती है कि जाट आंदोलन के बाद गैर-जाट वोटर खट्टर की वजह से बीजेपी के पीछे खड़े होंगे.

हरियाणा के जातीय समीकरण को समझें तो यहां ओबीसी 35%, दलित 20%, सवर्ण 20%, और जाट 28% हैं. ये बताने के लिए काफी है कि गैर-जाट वोट बीजेपी के लिए कितनी अहमियत रखता है. यही वजह है कि खट्टर को हटाकर बीजेपी अपना चुनावी गणित गड़बड़ाना नहीं चाहेगी.

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अभी तो मनोहर लाल खट्टर का अभयदान इन्हीं 3 वजहों में छिपा दिखता है. बस अब आने वाले वक्त में खट्टर सरकार को किसी और बिन बुलाई मुसीबत से बचना होगा ताकि बाकी बचे 2 साल चैन से गुजर सकें.

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