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हरियाणा में फिर सरकार Vs किसान: ई-टेंडरिंग और गन्ना भुगतान पर ‘बगावत’

Haryana में ई-टेंडरिंग सिस्टम के खिलाफ सरपंच लगा रहे BDPO दफ्तरों पर ताला और किसान दे रहे धरना

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हरियाणा (Haryana) में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है. प्रमुख राजनीतिक दल एक्टिव मोड़ में हैं. सियासी पार्टियां अभी से हालात को कंट्रोल करने में जुटी हुई हैं लेकिन गठबंधन सरकार के सामने किसानों और सरपंचों ने मोर्चा खोल दिया है. किसान और सरपंच पीछे हटने को तैयार नहीं और गठबंधन सरकार यू-टर्न लेने के मूड में नहीं है.

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नए-नवेले सरपंच इस उम्मीद में थे कि उन्हें अपने मनमाफिक काम करने की छूट मिलेगी. लेकिन सरकार ने सरपंच चुनाव नतीजे के करीब 1 महीने के भीतर सरपंचों की आंकाक्षाओं पर पानी फिर गया.

ई-टेंडरिंग को आसान शब्दों में समझिए

दरअसल पंचायतों में होने वाले कामों में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सरकार ने ई-टेंडर प्रक्रिया बनाई है. इसके तहत 2 लाख रुपए से अधिक के कामों के लिए ई-टेंडर जारी किए जाएंगे. फिर अधिकारी ठेकेदार के जरिए गांवों का विकास कार्य कराएंगे. इसमें सरपंच विकास के कामों की जानकारी प्रशासन को देंगे. जिसके बाद सरकार ठेकेदार से ई-टेंडरिंग के माध्यम से विकास के काम कराएगी. सरकार का दावा है कि इस प्रक्रिया के तहत भ्रष्टाचार के मामलों में विराम लगेगा.

ई-टेंडरिंग लागू करने से अब तक क्या हुआ

हरियाणा में करीब 2 साल की देरी से पंचायत चुनाव हुए. सरपंचों को उम्मीद थी कि प्रदेश में जल्द विधानसभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में सरकार विकास पर खास फोकस करेगी. सरकार ने सरपंचों से काम लेने से पहले ही जवाब मांग लिया. जैसे ही सरकार ने पॉलिसी को लागू करने का ऐलान किया वैसे ही सरपंचों ने सरकार के खिलाफ बगावती सुर अपना लिए.

पहले तो दबी जुबां में सरपंच बोल रहे थे लेकिन फिर खुलकर सामने आ गए. सूबे के लगभग हर जिले में सरपंचों ने इकट्ठा होकर बीडीपीओ दफ्तर पर तालाबंदी की और सरकार मुर्दाबाद के नारे लगाए.

तब सरपंचों को उम्मीद जगी कि विरोध के बाद सरकार उनकी सुध लेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ तो हरियाणा के कई जिलों में सरपंच अनिश्चकालीन धरने पर बैठ गए. उनका कहना है कि जब तक सरकार पॉलिसी को वापस नहीं लेती, ये धरना जारी रहेगा.

हिसार जिले के एक सरपंच ने खुले मंच से कहा था कि डेढ़ करोड़ रुपए लगाकर सरपंच बना हूं. कई जिलों के सरपंच ने सरकार तक सीधा संदेश पहुंचा दिया है कि हमारे गांव में बीजेपी-जेजेपी का कोई भी नेता गांव में आने की कोशिश ना करे.
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सरपंचों को किस बात का डर

सरपंचों को इस बात का डर सता रहा है कि गांव की चौधर की जो पहचान उन्हें मिली है वो कहीं धुंधली ना पड़ जाए. सरपंचों को इस बात की भी आशंका है कि अगर ई-टेंडरिंग के जरिए काम होने लगा तो वो ठेकेदार की कटपुतली बनकर रह जाएंगे और उन्हें इन्हीं के इशारे पर काम करना पड़ेगा. सरपंचों के दिमाग में ऐसी तमाम तरह की दुविधाएं हैं जिसे सरकार भी दूर नहीं कर पा रही है.

पंचायत मंत्री देवेंद्र बबली ने कहा

पंचायत मंत्री सरपंचों के विरोध से इत्तेफाक नहीं रखते. उनका कहना है कि सरकार ने जनहित को ध्यान में रखते हुए ये फैसला लिया है. जो काम व्यक्तिगत तौर पर होता था अब वो सॉफ्टेवयर के जरिए होगा. पहले जो विकास के कार्य लंबित पड़े रहते थे अब टाइम पर काम होंगे. गुणवत्ता का पैमाना भी बदलेगा. देवेंद्र बबली ने कहा कि अथॉरिटी पंचायत प्रतिनिधि की ही रहेगी. किसी की शक्ति कम नहीं की गई है. अब शक्ति पंचायत प्रतिनिधियों को देने का काम किया है, पहले चंडीगढ़ से काम होते थे.

मुख्यमंत्री के गोद लिए गांव के सरपंच भी धरने पर

सीएम मनोहर लाल ने कैथल जिले का क्योड़क गांव गोद लिया है. जिसकी आबादी करीब 40 हजार है और मतदाताओं की संख्या करीब 15 हजार. लेकिन गांव के सरपंच जसबीर सिंह खुद अनिश्चकालीन धरने पर बैठे हैं. उनका मानना है कि 2 लाख रुपए खर्च करने की सरपंचों को जो पावर दी गई है, इसमें सिर्फ टायलेट बाथरूम ही बन सकता है. अगर ठेकेदार के द्वारा गांवों में काम कराया जाएगा तो उसमें घटिया क्वालिटी का मैटीरियल इस्तेमाल किया जाएगा. टेंडर में लंबा वक्त लगेगा और घटिया काम होगा तो गांव के लोगों की जवाबदेही सरपंच की होगी. सरकार जो ये पॉलिसी लेकर आई है चुनावों में जनता बता देगी कि इसका कितना फायदा होने वाला है.

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कैबिनेट मंत्री कंवरपाल गुर्जर के गांव के सरपंच ने भी जताया विरोध

कैबिनेट मंत्री कंवरपाल गुर्जर के गांव का नाम बहादुरपुर है. जो यमुनानगर जिले के जगाधरी हलके में पड़ता है. गांव के सरपंच प्रवीन गुर्जर का कहना है कि

ई-टेंडरिंग सरपंचों के काम में बड़ी अड़चन है. जिससे पूरे प्रदेश के सरपंच असहज हैं. ऐसे में सरकार को सरपंचों की बात को मान लेना चाहिए. क्योंकि जनता से जवाबदेही हमारी है.

सरकार ने आनन-फानन मे जारी किया 1100 करोड़ का फंड

सरपंचों के आक्रोश को कम करने के लिए मनोहर सरकार ने 1100 करोड़ की ग्रांट जारी की है. मनोहर लाल का कहना है कि इसमें से 850 करोड़ केवल पंचायतों को दिए गए हैं. सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं को और अधिक स्वायत्ता प्रदान की है. इस कदम से पंचायती राज संस्थाओं को बड़ी राहत मिली है और अब गांवों में विकास कार्य तेज गति से हो सकेंगे.

किसान क्यों हैं आग बबूला?

सरकार एक तरफ सरपंचों की नाराजगी झेल रही है तो दूसरी किसान नेताओं ने अस्थाई तंबू गाड़ दिए हैं. किसान बीते 2 महीने से गन्ने की कीमतों में बढ़ोतरी को लेकर सरकार से मिन्नतें कर रहे हैं. लेकिन सरकार किसानों की बात सुनने को तैयार नहीं है. किसानों ने सरकार को चेताने के लिए पहले तो शुगर मिल के कांटे को 2 घंटे के लिए बंद किया और फिर किसानों को आगाह किया कि अन्नदाता शुगर मिल पर धरना देंगे.

ऐसी स्थिति में कोई भी किसान ना तो गन्ने की छिलाई करे और ना ही ढुलाई. किसानों की मांग है कि गन्ने की कीमत 450 रुपए प्रति क्विवंटल की जाए या फिर जिस दर से महंगाई बढ़ी है उस हिसाब से गन्ने की दरों को बढ़ाया जाए. ऐसे में सरकार किसान नेताओं की दोनों मांगों को अभी तक पूरा करने में विफल साबित हुई है.

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किसानों ने कब से शुरू किया अनिश्चकालीन धरना

किसान नेता छोटे-छोटे धरने प्रदर्शन के जरिए अपनी बात को सरकार तक पहुंचाते रहे हैं. थक हारकर किसान नेताओं ने 20 जनवरी से प्रदेश के करीब 14 शुगर मिलों के बाहर धरना शुरु कर दिया है .जैसे-जैसे किसानों का अनिश्चकालीन धरना आगे बढ़ रहा है इसे और मजबूती मिल रही है. अब कई किसान यूनियन के अलावा बड़े राजनीतिक दलों ने भी धरने को समर्थन दिया है. ऐसे में गठबंधन सरकार की नींद हराम हो गई है.

किसान नेताओं का रणनीति

25 जनवरी- इस दिन किसान अपने शहर में ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे और ट्रैक्टरों पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल की अर्थी रखकर घुमाएंगे. उसके बाद शुगर मिल पर पुतला जलाया जाएगा.

26 जनवरी- सर छोटूराम की जयंती पर किसान धरनास्थल पर गन्ने की होली जलाएंगे.

27 जनवरी- अनिश्चकाल के लिए शुगर मिलों के आगे रोड जाम किया जाएगा.

29 जनवरी- सोनीपत के गोहाना में अमित शाह की रैली में किसान पहुंचेंगे, हाथों में बीजेपी के झंडे और बिल्ले लगे होंगे. जैसे ही अमित शाह मंच से बोलना शुरू करेंगे किसान अर्धनग्न होकर प्रदर्शन करेंगे.

30 जनवरी- सभी 14 शुगर मिल से 5 किसानों का प्रतिनिधिमंडल दोबारा बैठक करेगा. जिसमें गुरनाम सिंह चढ़ूनी भी होंगे. बैठक में आगे का रोडमैप तैयार किया जाएगा.

कहीं दिल्ली जैसे आंदोलन की आहट तो नहीं ?

खेती कानूनों को लेकर दिल्ली में शुरू हुए आंदोलन को लेकर पहले किसी ने नहीं सोचा था कि ये आंदोलन विश्व व्यापी होगा. देखते ही देखते आंदोलन ने बड़ा रूप ले लिया. गन्ने की कीमतों को लेकर शुरू हुए इस जोरदार धरने प्रदर्शन ने जान पकड़ ली है. किसान नेता ताकतवर रणनीति अख्तियार कर रहे हैं. हालांकि दिल्ली के आंदोलन में सभी नेता एक छत के नीचे थे. बाद में गुट बने और फिर अपनी-अपनी राह पर चले. लेकिन इस धरने प्रदर्शन में किसान यूनियन फिर से एकजुट होकर धरने को समर्थन दे रही है. गुरनाम सिंह चढ़ूनी ग्रुप को टिकैत और भारतीय किसान संघ से भरपूर साथ मिल रहा है.

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क्विंट हिंदी से बातचीत में भारतीय किसान यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने सरकार को सलाह दी है कि बीते 8 साल में जिस दर से महंगाई दर बढ़ी है, उस दर से गन्ने की कीमतें बढ़नी चाहिए. महंगाई दर तो 8 फीसदी बढ़ी है और गन्ने की कीमत महज 2 फीसदी. ऐसे में सरकार ने किसानों के साथ बड़ी नाइंसाफी की है.

गुरनाम सिंह चढ़ूनी का कहना है कि अगर सरकार 29 जनवरी तक भी किसानों की सुध नहीं लेती तो फिर से धारधार रणनीति बनाई जाएगी और सरकार को झुकने पर मजबूर करेंगे.

क्विंट हिंदी से बातचीत में भारतीय किसान यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष (टिकैत ग्रुप) रतनमान ने बताया कि ''सरकार से गन्ने की कीमतों में बढ़ोतरी को लेकर बातचीत हुई है. उम्मीद है सरकार किसानों को ध्यान रखेगी.गुरनाम सिंह चढ़ूनी ग्रुप के साथ हमारा पूरा सहयोग है क्योंकि ये किसानों की बात है और किसानों के साथ हम हर हालत में खड़े हैं.''

सरकार ने किया गन्ना कमेटी का गठन

किसानो की मांगों पर गौर करने के लिए हरियाणा सरकार ने गन्ना कमेटी बनाई. 22 जनवरी को मुख्यमंत्री मनोहर लाल की अगुवाई में किसान प्रतिनिधियों की बैठक हुई. जिसमें कृषि मंत्री जेपी दलाल भी मौजूद रहे. हांलाकि बैठक तो बेनतीजा रही. सीएम मनोहर लाल ने किसान प्रतिनिधियों को आश्वासन दिया है कि सरकार जल्द ही गन्ना किसानों और चीनी मिलों के हित में फैसला लेगी.

कमेटी की तरफ से चीनी की लागत और रिकवरी, पड़ोसी राज्यों में गन्ने के मूल्य और किसानों की मांगों इत्यादि समेत सभी बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए हितकारी फैसला लिया जाएगा.

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कुल मिलाकर सत्तारूढ़ बीजेपी-जेजेपी के सामने एक बार फिर किसान हैं. किसान गन्ने की कीमतों में वृद्धि को लेकर गठबंधन सरकार से जवाब नहीं मांग रहे हैं बल्कि आने वाले वक्त का आईना दिखा रहे हैं.

किसान नेता दो टूक शब्दों में कह रहे हैं कि अन्नदाता के साथ सरकार को अड़ना महंगा पड़ेगा. तो सरकार के समक्ष दूसरी बड़ी बाधा सरंपच की ई-टेंडरिंग का विरोध है. इन बगावती सुरों से सरकार पूरी तरह से हिल गई है. क्योंकि दोनों धरने प्रदर्शन एक साथ चल रहे हैं और वक्त के साथ इन्हें बल मिल रहा है और बीजेपी-जेजेपी के पास इनके तोड़ का कोई विकल्प फिलहाल नजर नहीं आ रहा है.

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