उत्तर प्रदेश के हाथरस में 20 साल की लड़की के साथ हैवानियत के बाद मौत के मामले को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. जिसमें हाईकोर्ट ने पुलिस की कार्रवाई को लेकर कई सवाल उठाए और फटकार भी लगाई. इस दौरान आधी रात को लड़की का दाह संस्कार करने पर भी सवाल पूछा गया. साथ ही कोर्ट ने यूपी सरकार से परिवार की सुरक्षा का पूरा खयाल रखने की भी बात कही है. इसके अलावा हाईकोर्ट ने एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) से कहा कि वो सीधे कैसे कह सकते हैं कि रेप नहीं हुआ.
‘सरकार का काम शासन करना और कंट्रोल करना नहीं’
हाथरस के इस मामले को लेकर हुई सुनवाई पर हाईकोर्ट ने कई तीखी टिप्पणियां कीं. बार एंड बेंच के मुताबिक, हाईकोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए साफ किया कि सरकार और प्रशासन का सिद्धांत आजादी के बाद सेवा और सुरक्षा होना चाहिए, न कि राज करना और कंट्रोल करना. इसके अलावा हाईकोर्ट ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा कि आधी रात को दाह संस्कार करने की क्या जरूरत पड़ी? हाईकोर्ट ने कहा,
“पीड़िता का जल्दबाजी में आधी रात को दाह संस्कार कर दिया गया, परिवार को उससे पहले उसका चेहरा तक नहीं दिखाया गया और अंतिम संस्कार की रस्में पूरी नहीं हुईं. इसके बाद बिना उनकी मर्जी के और बिना उनकी मौजूदगी के दाह संस्कार हुआ, जो मौलिक और मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन है.”
हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को सख्त निर्देश दिए हैं कि पीड़िता के पूरे परिवार को सुरक्षा मुहैया कराई जाए. उन्हें किसी भी तरह का नुकसान नहीं होना चाहिए. साथ ही कोर्ट इस बात के लिए भी चेताया कि एसआईटी और सीबीआई जांच से जुड़ी कोई भी बात लीक नहीं होनी चाहिए. इसे गोपनीय रखा जाए.
कोर्ट ने ADG को याद दिलाया कानून
सिर्फ इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने हाथरस मामले को लेकर यूपी के एडीजीपी को भी कानून याद दिलाया. हाईकोर्ट ने कहा कि क्या आपको 2013 में क्रिमिनल लॉ में हुए अमेंडमेंट के बारे में पता है? बता दें यूपी के एडीजीपी ने पीड़िता से रेप की बात को नकार दिया था और कहा था कि बॉडी में स्पर्म नहीं पाया गया. कोर्ट ने कहा कि जब जांच जारी है तो कोई कैसे खुलकर कह सकता है कि कुछ भी नहीं हुआ. जबकि वो शख्स जांच का हिस्सा तक नहीं है.
इसके साथ ही अब हाईकोर्ट ने उन सभी अधिकारियों को इस मामले पर बयान देने से रोक लगा दी है, जो केस से सीधे नहीं जुड़े हैं. यानी सिर्फ सीबीआई और एसआईटी टीम के अधिकारी ही इस मामले पर बयान दे पाएंगे.
किसके आदेश से हुआ आधी रात को दाह संस्कार?
जब हाईकोर्ट ने ये सवाल पूछा तो कोर्ट में डीएम का जवाब दाखिल किया गया. डीएम ने पहले तो वही बात दोहराई कि परिवार की सहमति से ही उनकी लड़की का दाह संस्कार हुआ. इस सवाल का भी जवाब दिया गया है कि आखिर किसके आदेश से आधी रात को ये सब किया गया. जिसमें डीएम ने बताया,
“अलीगढ़ एडीजी, कमिश्नर, आगरा आईजी, अलीगढ़ एसपी और खुद मैंने मिलकर ये फैसला लिया था. ये अंदाजा था कि अगर हम रात की जगह सुबह का इंतजार करते तो इसे जाति और राजनीतिक मुद्दा बनाकर करीब 10 हजार से ज्यादा लोग वहां जमा हो सकते थे. इसीलिए कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए ये फैसला लिया गया.”
डीएम ने अपने जवाब में साफ किया कि लखनऊ से इसके लिए उन्हें कोई भी आदेश नहीं मिले थे. पीड़िता का दाह संस्कार आधी रात को करने का फैसला सभी अधिकारियों ने सहमति से लिया था.
पूरे मामले में प्रशासन रहा फेल- हाईकोर्ट
कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि प्रथम दृष्टया यही लगता है कि प्रशासन अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रहा है. क्योंकि उसने आधी रात को दाह संस्कार कराए जाने और परिवार को शव नहीं सौंपने को लेकर कोई अच्छा कारण नहीं बताया है. कोर्ट ने कहा कि प्रशासन कम से कम 30 मिनट के लिए भी परिवार को शव सौंप सकता था, जिसके बाद वो रात या फिर सुबह दाह संस्कार कर सकते थे.
'केरोसिन के कैन में शायद गंगाजल रहा हो'
डीएम के इस लिखित जवाब में पुलिस के हाथों में दाह संस्कार के वक्त दिख रहे केरोसिन के कैन का भी जिक्र है. लेकिन ये जवाब ऐसा है, जिस पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल है. डीएम ने कहा, पूरे सम्मान के साथ पीड़िता का दाह संस्कार हुआ. ये बात गलत है कि शव को केरोसिन डालकर जलाया गया. आमतौर पर दाह संस्कार में केरोसिन का इस्तेमाल नहीं होता है. कुछ वीडियो में जो कैन नजर आ रहा है, उसमें हो सकता है कि गंगा जल रहा हो.
बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में कई मीडिया संस्थानों ने अपनी वीडियो फुटेज दी है. जिसमें दिख रहा है कि कैसे पुलिसकर्मी जबरन शव का दाह संस्कार कर रहे हैं.
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