भारत में कोरोना वायरस के नए केस थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. तेजी से बढ़ रहे मामलों के लिए टेस्टिंग की रफ्तार भी बढ़ाई जा रही है. हर राज्य के लोग रोजाना यही बात सबसे पहले जानना चाहते हैं कि आज उनके यहां कितने नए मामले आए हैं और कुल मामलों का आंकड़ा क्या है. लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अपनी वेबसाइट में दिए जाने वाले राज्यों के आंकड़ों से कुल केस वाला कॉलम हटा दिया है.
बूम की रिपोर्ट के मुताबिक हेल्थ मिनिस्ट्री के अधिकारियों ने इसे लेकर बताया कि फिलहाल वेबसाइट की रीस्ट्रक्चरिंग का काम चल रहा है. बता दें कि पहले हेल्थ मिनिस्ट्री की वेबसाइट पर जो स्टेट डेटा दिखता था, उसमें कुल एक्टिव केस, ठीक हुए या डिस्चार्ज हो चुके केस, कुल मौतें और आखिर में कुल कोरोना केस का आंकड़ा दिया जाता था.
क्या हुए हैं बदलाव?
हेल्थ मिनिस्ट्री की वेबसाइट में फिलहाल बदलाव हो रहे हैं. लेकिन अब तक जो बदलाव देखने को मिले हैं वो ये हैं कि स्टेट डेटा से कुल कोरोना केस की संख्या तो हटा दी गई है. लेकिन उसमें एक दिन में कितने एक्टिव केस में बढ़ोतरी हुई, एक दिन में कितने लोग डिस्चार्ज हुए और एक दिन में कितनी मौत हुईं, ये आंकड़ा अलग से दिखाया गया है. इसके अलावा होम पेज पर भी देश के कुल एक्टिव केस, डिस्चार्ज और मौतों के आंकड़े में भी रोजाना हुई बढ़ोतरी को दिखाया गया है. वहीं डेटा अपटेड होने का वक्त भी दिया गया है. अब स्टेट डेटा को सिर्फ तीन कॉलम में बांटा गया है, जिसमें सबसे पहले एक्टिव केस, फिर ठीक हो चुके/डिस्चार्ज/माइग्रेटेड का कॉलम और आखिर में कोरोना से होने वाली मौतों का कॉलम दिया गया है. इन तीनों कॉलम को नीचे 24 घंटे में होने वाले बदलावों में तोड़ा गया है.
कुल मामलों के लिए अब करनी होगी मेहनत
अब इस बदलाव से सबसे बड़ी समस्या उन लोगों को होगी, जो रोजाना हेल्थ मिनिस्ट्री पर जाकर राज्यों का डेटा इकट्ठा करते थे. जो आसानी से उन्हें मिल भी जाता था. लेकिन अब उन सभी लोगों को एक-एक राज्य का डेटा एक्टिव केस, डिस्चार्ज केस और कुल मौतों के आंकड़े को जोड़कर निकालना होगा. हालांकि अब तक मंत्रालय की तरफ से इसे लेकर कोई भी सफाई नहीं दी गई है, लेकिन कुल मामलों के कॉलम को हटाया जाना कहीं न कहीं पारदर्शिता को लेकर सवाल खड़ा करता है.
बता दें कि भारत में कोरोना के आंकडों को लेकर पहले भी कई सवाल उठ चुके हैं. कुछ राज्य ऐसे भी हैं, जहां मौत और कुल मामलों के आंकड़ों पर काफी विवाद भी हुआ. दिल्ली जैसे राज्य में सरकार और एमसीडी के मौत के आंकड़ों में लगभग दोगुने का अंतर था.
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