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राफेल डीलःपुनर्विचार याचिकाओं पर SC में सुनवाई पूरी,फैसला सुरक्षित

राफ़ेल पुनर्विचार याचिकाओं पर बहस सुनकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

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राफेल डील में कथित घोटाले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई पुनर्विचार याचिकाओं पर कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है. शुक्रवार को सुनवाई के दौरान सबसे पहले वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने अपनी बात रखी. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार की ओर से गलत दस्तावेज पेश किए हैं, जिसपर कार्रवाई होना जरूरी है. कोर्ट में सुनवाई के दौरान तीखी बहस हुई, प्रशांत भूषण की तरफ से लगाए गए आरोपों का जवाब अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल राव ने दिया.

लंबी बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट ने राफेल मामले में दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि प्रशांत भूषण पुनर्विचार याचिका के मुद्दे पर सरकार की दलीलों का जवाब 2 हफ्ते में देना होगा.

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कोर्ट के फैसले के बाद पुनर्विचार याचिका

सुप्रीम कोर्ट ने राफेल मामले पर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इस सौदे की जांच के आदेश देने से इनकार कर दिया था. जिसके बाद यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और प्रशांत भूषण ने इस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की. इसके बाद केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राफेल के लीक हुए दस्तावेजों को खारिज करने की मांग की थी. केंद्र ने इसे विशेषाधिकार बताया था.

सुप्रीम कोर्ट ने राफेल से जुड़े स्तावेजों पर केंद्र सरकार के ‘विशेषाधिकार’ वाले दावे को खारिज कर दिया था. जिसके बाद कोर्ट ने इस मामले की दोबारा सुनवाई करने की बात कही थी. कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका के साथ सबूत के तौर पर दिए गए 3 दस्तावेजों को भी मंजूरी दे दी थी

सुप्रीम कोर्ट ने मांगा था केंद्र से जवाब

राफेल की सुनवाई से ठीक पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से हलफनामा दाखिल करने के लिए वक्त मांगा था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को 4 मई तक जवाब दाखिल करने को कहा. केंद्र ने एक हफ्ते का समय मांगा था, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया. जिसके बाद अब आज सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई हो रही है.


SC में केंद्र सरकार ने दी थी ये दलील

केंद्र की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि संबंधित विभाग की अनुमति के बिना कोई भी इन (राफेल डील से जुड़े) दस्तावेजों को कोर्ट में पेश नहीं कर सकता. वेणुगोपाल ने अपने दावे के समर्थन में साक्ष्य कानून की धारा 123 और सूचना के अधिकार कानून के प्रावधानों का हवाला दिया. उन्होंने कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित दस्तावेज कोई प्रकाशित नहीं कर सकता क्योंकि देश की सुरक्षा सबसे ऊपर है.

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