कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में लगे हिजाब पर बैन को चुनौती देने वाले मामले को अब सुप्रीम कोर्ट की एक बड़ी बेंच के पास भेजा जाएगा. ऐसा इसलिए है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया की दो-जजों वाली डिवीजन बेंच ने गुरुवार, 13 अक्टूबर को खंडित फैसला (SC Hijab Ban Verdict) सुनाया. ऐसे में राज्य के विभिन्न हिस्सों में हिजाब पहनने के कारण स्कूल न जा पाने वाली लड़कियों ने मांग की है कि उन्हें अंतिम फैसला आने तक क्लास में बैठने की अनुमति दी जाए.
कर्नाटक के मैंगलोर जिले की 20 वर्षीय छात्रा हिबा शेख ने क्विंट से बात करते हुए कहा कि
“हमने पहले ही इतने महीने बर्बाद कर दिए हैं, पहले कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले का इंतजार किया और फिर अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं. हम और इंतजार नहीं कर सकते. चूंकि यह एक बंटा हुआ फैसला है, और एक जज ने हमारे शिक्षा के अधिकार के बारे में बात की है. ऐसे में हम कर्नाटक सरकार से अपनी पढ़ाई फिर से शुरू करने की अनुमति देने का आग्रह करते हैं."
मार्च महीने में हिबा शेख को कथित तौर पर छात्र संगठन ABVP के छात्रों के एक समूह ने कॉलेज में प्रवेश करने से रोक दिया था और परीक्षा में बैठने रोका था. इसका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था. उसके बाद से उसे अपने कॉलेज में एंट्री नहीं दी गयी है.
सुप्रीम कोर्ट में खंडित फैसला, लेकिन कर्नाटक सरकार हिजाब बैन पर टिकी रहेगी
गुरुवार को मामले की सुनवाई कर रही बेंच के दो जजों में से एक जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा कि कर्नाटक सरकार के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर बैन लगाने के आदेश को रद्द किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि "आखिर में यह (हिजाब पहनना) पसंद का मामला है, न ज्यादा और न ही कम."
जस्टिस धूलिया ने फैसला देते हुए कहा कि "मेरे मन में सबसे महत्वपूर्ण सवाल था लड़कियों की शिक्षा का. क्या हम उनके जीवन को बेहतर बना रहे हैं?".
हालांकि दूसरी तरफ जस्टिस हेमंत गुप्ता ने हिजाब बैन को बरकरार रखने वाले कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले से सहमति जताई थी. चूंकि इस दो जजों की डिवीजन बेंच का फैसला अलग-अलग था, कोई निर्णायक फैसला नहीं हुआ. अब याचिकाओं को भारत के चीफ जस्टिस के पास भेज दिया गया है, जो मामले की फिर से सुनवाई के लिए एक बड़ी बेंच को नियुक्त करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कुछ घंटों बाद, कर्नाटक के शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने मीडिया से कहा कि सरकार हिजाब बैन के अपने आदेश पर कायम रहेगी. उन्होंने कहा कि “कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला मान्य रहेगा, जिसमें कॉलेजों में किसी भी धार्मिक प्रथा की अनुमति नहीं दी जाएगी, और छात्रों को जहां भी निर्धारित हो, समान नियमों का पालन करना होगा. कर्नाटक शिक्षा अधिनियम के अनुसार, हम कॉलेजों में किसी भी धार्मिक प्रथा की अनुमति नहीं देंगे.”
'हमारे हाथों से शिक्षा और भविष्य की संभावनाएं फिसल रही हैं'
5 फरवरी 2022 को कर्नाटक सरकार ने सरकारी शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर बैन लगाने का आदेश जारी करते हुए कहा कि "समानता, अखंडता और सार्वजनिक लॉ-एंड-ऑर्डर को भंग करने वाले कपड़े नहीं पहनने चाहिए." इसके बाद इसके खिलाफ याचिकाकर्ता जब कर्नाटक हाई कोर्ट पहुंचे तो HC ने 15 मार्च 2022 को सरकारी शिक्षण संस्थानों में हिजाब पर राज्य सरकार के बैन को बरकरार रखा.
शिमोगा के एक सरकारी कॉलेज में अंतिम वर्ष की छात्रा शाहीन ने इस साल अप्रैल में कॉलेज में जाना बंद कर दिया था, क्योंकि उसके कॉलेज ने कर्नाटक हाई कोर्ट के मार्च के फैसले को लागू करने के लिए हिजाब बैन को बरकरार रखा था. 20 साल की शाहीन कहती है कि
“छह महीने और सोलह दिन हो गए हैं जब मुझे आखिरी बार अपने कॉलेज में जाने की अनुमति मिली थी. मैं हर एक दिन को मार्क करती हूं. अगर मैं जल्द ही अपनी पढ़ाई फिर से शुरू नहीं कर पाती हूं तो मेरा पूरा एक साल बर्बाद हो जायेगा. चूंकि यह मेरा फाइनल ईयर है, यह डिग्री को छोड़ देने जैसा होगा".
शाहीन ने कहा कि वह हाई कोर्ट के फैसले के बाद से दूसरे कॉलेजों में एडमिशन लेने की कोशिश कर रही है, लेकिन उसे हर जगह से वापस भेज दिया गया.
“उन्होंने कहा कि अगर मुझे एडमिशन लेना है तो मुझे अपना हिजाब छोड़ना होगा. ऐसा लगता है कि मेरी शिक्षा और भविष्य की संभावनाएं मुझसे दूर जा रही हैं."शाहीन
सरकारी कॉलेजों में हिजाब पर बैन लागू होने के बाद हिजाब पहनने वाली कुछ लड़कियों ने अपना एडमिशन प्राइवेट यूनिवर्सिटीज में करा लिया है. बैंगलोर में 22 साल की हिजाब पहनने वाली छात्रा ने कहा कि “हमने वास्तव में अपने कॉलेज के अधिकारियों को समझाने की कोशिश की, लेकिन जब उन्होंने हमें क्लास में बैठने की अनुमति देने से इनकार कर दिया, तो हमने एक निजी कॉलेज में एडमिशन लेने की कोशिश की. यहां तक कि उस प्रक्रिया में भी बहुत समय लगा था और यह थकाऊ था.”
“लेकिन मैं उसी कॉलेज की कई ऐसी लड़कियों को जानती हूं जो प्राइवेट कॉलेजों में शिफ्ट होने का खर्च नहीं उठा सकतीं, और वे अब भी झेल रही हैं. अगर उन्हें हिजाब पहनने की इजाजत दी जाती है, तो यह उनके लिए बहुत बड़ी राहत होगी.”
मैंगलोर में एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी की छात्रा अयात असलम ने कहा कि उसे हिजाब बैन का सामना नहीं करना पड़ा, लेकिन उसके चचेरी बहनें और दोस्त जो सरकारी संस्थानों में थी, इसका सामना कर रही हैं. अयात असलम ने कहा कि "बहुत सी लड़कियां हैं, जिन्हें मैं जानती हूं, वो प्राइवेट एजुकेशन का खर्च नहीं उठा सकती हैं और उन्हें पूरी तरह से कॉलेज छोड़ना पड़ा है. यह देखकर दिल दहल गया.”
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