बेचारा आम आदमी! अब सस्ती प्याज का जश्न मना भी नहीं पाया था कि आलू ने दम निकाला, टमाटर ने गुस्से से लाल कर दिया और दाल तो बेहाल कर ही चुकी है. आसमान छू रही हैं कीमतें. जनता परेशान है और सरकार बस फॉर्मूले लगा रही है.
पिछले दो सालों में अरहर के दाम दोगुने हो गए हैं और उड़द की कीमतें 120% बढ़ गई है. यहां तक कि चना दाल, जिसका देश में बड़ी मात्रा में उत्पादन होता है, उसके दाम भी दिल्ली में 85% बढ़ गए.
पिछले साल के सूखे की वजह से यह तो इस जनवरी ही तय हो गया था कि दालों के उत्पादन पर फर्क पड़ेगा. फिर भी सरकार ने दालों के स्टॉक रखने के लिए कोई उचित प्रबंध नहीं किया या जो प्रबंध किया वो नाकाफी रहे.
टमाटर और आलू का गणित
वहीं दो रोजमर्रा की सब्जियां आलू और टमाटर की बात करें तो ये थोड़ी अलग है. इनकी खेती में इतना समय नहीं लगता, ये थोड़े समय में उत्पादित होने वाली फसलें है. लेकिन इनकी कीमतों ने भी उछाल मारा है.
टमाटर की पैदावार रोपाई के 60-70 दिनों बाद हो जाती है, जबकि आलू की पैदावार 75-120 दिन में होती है. जो टमाटर अभी बाजार में आ रहे हैं उनकी पौध मार्च के महीने में लगा दी जाती है और टमाटर की फसल पूरी तरह से बारिश पर निर्भर नहीं रहती.
पिछले साल के मुकाबले ज्यादा उत्पादन होने के बाद भी टमाटर की कीमतें आसमान छू रही है. जबकि सरकार का कहना है कि देश के कई हिस्सों में कीमतें ज्यादा नहीं बढ़ी है. जबकि डिपार्टमेंट ऑफ कंज्युमर अफेयर एंड द नेशनल होरटीकल्चर बोर्ड के डाटा से पता चलता है कि ज्यादातर शहरों में अप्रैल और जून में कीमतें 100 से 200% तक बढ़ी है. अगर जून 2014 और जून 2016 की कीमतों की तुलना की जाए तो पता चलता है कि ज्यादातर शहरों में टमाटर के दाम अचानक ही बढ़े है.
आलू की तरफ नजर डाले तो पाएंगे कि पिछले साल (48 मिलियन टन) की तुलना मे इस बार (46 मिलियन टन) कम उत्पादन हुआ है. लेकिन आलू का गणित अलग है. आलू की पैदावार का एक हिस्सा हर साल कॉल्ड स्टोरेज में जाता है जिसे बाद में बाजार में उतारा जाता है. तो यह सिर्फ आपूर्ति और मांग का मामला नहीं है.
इस साल आलू के उत्पादन में कमी का एक कारण बंगाल में आलू के खेतों में फसल का नुकसान भी है. इससे भी कीमतों बढ़ी हैं.
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