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हिंदी के बाद कश्मीरी भाषा के लिए देश में सबसे ज्यादा क्रेज

एक दशक में कश्मीरी भाषा बोलने वाले लोगों में 22.9 7% की बढ़ोतरी दर्ज की गयी है.

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'कोस-कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी' जैसी पहचान वाले भारत में भाषा की जितनी विविधता है, उतनी दुनिया के किसी दूसरे देश में नहीं है. देश की बढ़ती हुई जनसंख्या के अनुपात में यहां बोली जाने वाली भाषाओं का इस्तेमाल करने वाले लोगों की तादाद में भी साल दर साल बढ़ोतरी हो रही है. साल 2011 की जनगणनाओं से मिले भाषाई आंकड़ों में कई दिलचस्प तथ्य सामने आए हैं.

इंडियास्पेंड ने इन आंकड़ों का विश्लेषण करके एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें एक दशक में भारत की सभी प्रमुख भाषाओं में हुई बढ़ोतरी के आंकड़े पेश किये गए हैं. खास बात ये है कि हिंदी के बाद कश्मीरी भारत की दूसरी सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ने वाली भाषा के तौर पर उभर कर सामने आई है. हालांकि बीते दशक में कोंकणी और उर्दू बोलने वाले लोगों की संख्या में गिरावट आयी है.

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राजभाषा हिंदी देश में भाषाओं का सरताज

भारत में 2001 से लेकर 2011 के बीच हिंदी बोलने वाले लोगों में करीब 100 मिलियन नए लोग जुड़े. इस दौरान हिंदी 25.1 9% बढ़त के साथ भारत की सबसे तेजी से बढ़ती हुई भाषा थी. जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, हिंदी के बाद देश में सबसे ज्यादा कश्मीरी भाषा में 22.9 7% की बढ़ोतरी दर्ज की गयी. इसके बाद गुजराती 20.4%, मणिपुरी 20.07%, और बांग्ला 16.63% की बढ़ोतरी के साथ क्रमशः तीसरी, चौथी और पांचवी सबसे तेजी से बढ़ती भाषाएं हैं.

बोलने वाले लोगों के तादाद के लिहाज से बात करें तो 2011 जनगणना के मुताबिक देश में सबसे ज्यादा 520 मिलियन लोग हिंदी भाषी थे. इसके बाद दूसरे नंबर पर बांग्ला भाषा है, जिन्हें देश के 97 मिलियन लोग बोलते हैं. इस नजरिए से बांग्ला देश भर में दूसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बनी हुई हैं. 83 मिलियन लोगों के साथ मराठी तीसरे और 81 मिलियन लोगों के साथ तेलुगू चौथे नंबर पर है.

अंग्रेजी में भी उछाल

2011 में भारत में 2,60,000 ऐसे लोग थे, जो अंग्रेजी को अपनी मातृभाषा के तौर पर मानते हैं. 2001 में ये संख्या 2,26,000 थी. इस तरह अंगेजी को मातृभाषा मानने वाले लोगों में 14.67% का इजाफा हुआ. सबसे ज्यादा अंग्रेजी बोलने वाले लोग महाराष्ट्र में हैं, इसके बाद तमिलनाडु और कर्नाटक का नंबर आता है.

साल 2001 से 2011 तक 76% की बढ़ोतरी के बावजूद सूचीबद्ध भाषाओं में संस्कृत देश में सबसे कम बोली जाने वाली भाषा है. साल 2011 में भारत में आधिकारिक तौर पर महज 24,821 संस्कृत बोलने वाले लोग थे. दो मान्यता प्राप्त भाषाओं को अपनी मातृभाषा मानने वाले लोगों की संख्या में गिरावट दर्ज की गयी गई. इनमें उर्दू में 1.58% और कोंकणी में 9.54% की गिरावट आई.

गैर सूचीबद्ध भाषाओं में ये हैं अव्वल

99 गैर सूचीबद्ध भाषाओं में से, भीली/भीलोडी सबसे ज्यादा लोगों में बोली जाने वाली भाषा है. 2001 में 95 मिलियन से ज्यादा लोग इसे इस्तेमाल करते थे, जबकि 2011 में ये 104 मिलियन लोगों की मातृभाषा थी. 2001 में 27 मिलियन से बढ़कर 29 मिलियन बोलने वाले लोगों के साथ गोंडी भाषा ने अपनी दूसरी पोजीशन बरकरार रखी.

भीली/भीलोडी मुख्य रूप से भील लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा है, जो गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश के मूल निवासी हैं. गोंडी उन गोंड लोगों द्वारा बोली जाती है जो मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, बिहार और कर्नाटक में रहते हैं.

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