बरेली के बीजेपी विधायक राजेश मिश्रा की बेटी साक्षी ने एक दलित से शादी की तो उनके मुताबिक उनकी जान को खतरा पैदा हो गया. उन्होंने अपने पिता से ही खतरे का आरोप लगाया. वैसे ये देश के लिए कोई नहीं बात नहीं. इंटर कास्ट मैरिज करने वाले जोड़ों को अक्सर ऐसा खतरा रहता है, जबकि सरकार ने इंटर कास्ट मैरिज को बढ़ावा देने के लिए बाकायदा एक योजना चला रखी है.
मिनिस्ट्री ऑफ सोशल जस्टिस एंड एंपावरमेंट के तहत काम करने वाली डॉ. अंबेडकर स्कीम फॉर सोशल इंटीग्रेशन थ्रू इंटरकास्ट मैरिज सिर्फ इसीलिए बनाई गई है कि निचली जाति में शादी करने वालों को कोई भी परेशानी न हो.
क्या कहती है स्कीम?
जिस इंटरकास्ट मैरिज पर आज पूरे देशभर में बवाल मचा हुआ है, उसे लेकर बनाई गई ये स्कीम कहती है कि इंटरकास्ट शादी ही एक ऐसा कदम है जिससे जातिवाद और अछूत जैसी कुरीतियों को खत्म किया जा सकता है और आजादी, समानता, भाईचारा फैल सकता है. इसलिए इस योजना में साफ कहा गया है कि इंटर कास्ट मैरिज करवाने में केंद्र और राज्य सरकार मदद करें.
इंटरकास्ट मैरिज स्कीम को यूपीए सरकार के दौरान शुरू किया गया था. इसे दो साल के लिए 2013-14 तक पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चलाया गया, जिसके बाद 1 अप्रैल 2015 से ये एक रेगुलर स्कीम की तरह काम करने लगी. इस योजना के लिए सांसद, विधायक और मजिस्ट्रेट के पास आवेदन करना होता है.
राज्य सरकार के लिए निर्देश
- किसी दलित या फिर दूसरी जाति में शादी करने पर समाज का तिरस्कार झेलने वाले शादीशुदा जोड़ों का राज्य सरकार पूरा समर्थन करेगा.
- समाज में सांप्रदायिक सद्भाव और जरूरी बदलाव के लिए राज्य सरकारें खास कैंपेन चलाएं और ऐसी शादियों को बढ़ावा देने में मदद करें
- जो लोग इंटरकास्ट शादी करने का कदम उठाते हैं उन्हें प्रोत्साहित किया जाए और आर्थिक मदद दी जाए.
- ऐसी शादियों के लिए कार्यक्रम आयोजित होने चाहिए और उसे लोकल मीडिया में प्रचारित करना चाहिए.
ढाई लाख रुपये देने का प्रावधान
अंबेडकर फाउंडेशन की वेबसाइट पर लावारिस सी पड़ी इस योजना के तहत शादी होते वक्त 25 हजार रुपये प्रति जोड़ा दिया जाएगा. यानी एक जोड़े को 25 हजार रुपये देने का प्रावधान है. वहीं इसके बाद ऐसे शादीशुदा जोड़े को ढाई लाख रुपये भी देने का प्रावधान है.
इस योजना के तहत शादी के तुरंत बाद इंटरकास्ट शादी करने वाले जोड़े को ढाई लाख में से डेढ़ लाख रुपये दे दिया जाएगा. बाकी के पैसे को अंबेडकर फाउंडेशन में जमा करा दिया जाएगा, शादी के तीन साल बाद ये पैसा ब्याज सहित शादीशुदा जोड़े को दे दिया जाएगा.
योजना को भूल गई सरकार
इंटरकास्ट मैरिज के लिए सरकार ने ऐसी योजना बनाई है और उसके बाद भी देशभर में युवाओं के साथ हजारों हॉरर किलिंग और सामाजिक उत्पीड़न के मामले सामने आते हैं. इससे यही लगता है कि केंद्र और राज्य सरकारें इस योजना को भूल चुकी हैं. ऐसी शादियों को प्रोत्साहित करना तो दूर नेता इंटरकास्ट मैरिज की बात करने से भी घबराते हैं. वोट बैंक के चलते नेता सौहार्द और भेदभाव दूर करने वाली ऐसी योजनाओं से दूरी बना लेते हैं.
अपने ही बनते हैं जान के दुश्मन
भले ही हम 21वीं सदी में जी रहे हों, लेकिन आज भी हमारे समाज में इंटरकास्ट मैरिज के नाम पर हत्याएं होती हैं. ऐसे जोड़ों की ऑनर यानी सम्मान के लिए हत्या कर दी जाती है, जिसे हॉरर किलिंग कहा जाता है. इसके ताजा मामलों की बात करें तो बरेली के विधायक की बेटी साक्षी मिश्रा ने सोशल मीडिया पर खुद को जान का खतरा बताया. उसने आरोप लगाया कि दलित युवक से शादी करने के बाद उसके पिता और उसका पूरा परिवार उनकी जान का दुश्मन बन चुका है.
हालांकि इस मामले के मीडिया में आने के बाद विधायक ने आरोपों से इनकार कर दिया. नौबत यहां तक आ गई कि साक्षी और उसके पति को सुरक्षा के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट जाना पड़ा. लेकिन यहां पहुंचने पर भी उन पर हमला कर दिया गया.
दूसरा मामला भी उसी दिन का है, जिसमें एक शादीशुदा जोड़े को कोर्ट परिसर से ही अगवा कर लिया गया. ये दोनों भी इलाहाबाद हाईकोर्ट से खुद के लिए सुरक्षा मांगने आए थे, लेकिन कोर्ट पहुंचने से पहले ही परिवार वालों ने हथियारों के बल पर उन्हें उठा लिया.
वहीं विकास के मॉडल पर चलने वाले गुजरात से भी एक चौंकाने वाली घटना सामने आई. यहां बनासकांठा के कुछ गांवों ने अपना ही संविधान बना लिया है. साथ ही इस संविधान ने फैसला किया है कि घरवालों के खिलाफ शादी करने को अपराध माना जाएगा. ठाकोर समुदाय के कुछ लोगों ने ये खुद का कानून बनाया है. साथ ही ये लोग लड़कियों के मोबाइल फोन इस्तेमाल पर पाबंदी लगाने पर भी विचार कर रहे हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)