दिल्ली के गुरुद्वारा मजनू का टीला के दक्षिण में यमुना नदी के किनारे पाकिस्तान के 900 से ज्यादा हिंदू शरणार्थियों का घर है. पीने के साफ पानी और बिजली की सुविधा नहीं होने की वजह से वे अस्थायी शेड में गंदगी भरे माहौल में रहते हैं. उनका मानना है कि नागरिकता संशोधन कानून उनकी जिंदगी को एक नया रंग देगा.
नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों के मद्देनजर इस रिफ्यूजी कैंप ने मीडिया का बहुत ध्यान खींचा है. यहां रहने वाले कुछ लोगों ने तो पहले से प्रैक्टिस करके रखा है कि उन्हें मीडिया के सामने क्या बोलना है. जब उनसे पूछा गया कि उनकी आगे की जिंदगी कैसे बदलेगी, तो उन्होंने एक सुर में 'जय श्री राम’ के नारे का जाप किया. उनमें से एक ने जवाब दिया, "हम ज्यादा कुछ नहीं जानते हैं, हम बस खुश हैं कि हमारे देश ने आखिरकार हमें अपना लिया है."
‘भारत में आया क्योंकि ये मेरा घर है'
नागरिकता संशोधन कानून के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में उन हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को बग=भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है, जिन्हें वहां धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है.
उनके प्रवास के पीछे के कारणों के बारे में पूछे जाने पर कई शरणार्थियों ने बलात्कार, हत्या, जबरन धर्म परिवर्तन और बुनियादी शिक्षा की कमी से जुड़े उत्पीड़न की भयावह कहानियों को याद किया. हालांकि, इनमें ऐसे लोग भी थे, जिन्होंने कहा कि वे भारत आए क्योंकि उनका मानना है कि यह उनके पूर्वजों का घर है.
महेश (बदला हुआ नाम) ने कहा, “मैं 2018 में भारत आया था क्योंकि मेरे ज्यादातर रिश्तेदार पहले से ही यहां थे. यहां कोई खास समस्या नहीं थी जिसका मुझे सामना करना पड़ा. हर जगह अच्छे और बुरे लोग हैं.”
यह अभी तक साफ नहीं है कि सरकार धार्मिक उत्पीड़न के अलावा अन्य कारणों से आए प्रवासियों के बीच अंतर कैसे करेगी.
2014 के बाद आने वालों के बारे में क्या?
यह कानून अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए उन हिंदुओं, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों, जैनियों और पारसियों को नागरिकता देता है, जो 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत आ गए थे. इस कानून के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवदेन करने के लिए भारत में 11 वर्ष रहने की अनिवार्यता से छूट देते हुए पांच साल कर दिया गया है.
कई शरणार्थी इस तथ्य से अनजान हैं कि केवल 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले आए लोगों को ही नागरिकता दी जाएगी. माजी ठाकुर (बदला हुआ नाम) ने द क्विंट को बताया कि वह 2018 में भारत आए थे. हमें नहीं पता कि हमें नागरिकता मिल रही है या नहीं. उम्मीद है कि हम भी इसे हासिल करेंगे.”
इसी तरह सविता (बदला हुआ नाम) ने भारतीय नागरिकता देने के लिए प्रधानमंत्री को एक गाना गाकर शुक्रिया अदा किया. वो 2017 में अपने बेटे के साथ भारत आई थी, जब उसे बताया गया कि वह 2014 के बाद आने वाली कट-ऑफ के नियम को पूरा नहीं करती हैं, तो उसने सभी को नागरिकता देने की गुजारिश की.
इस बात से अनजान कि वह कट-ऑफ की शर्तों को पूरा नहीं करती है, लक्ष्मी (बदला हुआ नाम) ने कहा कि वह खुश है कि वह भारतीय नागरिक बन जाएगी और उच्च शिक्षा हासिल कर पाएगी.
यह पूछे जाने पर कि 2014 के बाद भारत आने वालों के लिए क्या होगा और वे नागरिकता हासिल करने के योग्य नहीं होंगे, राजेश (बदला हुआ नाम) ने कहा, “नागरिकता के साथ या उसके बिना, सभी हिंदू केवल भारत में रहेंगे. 5 साल, 6 साल...इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. वे वापस नहीं जाएंगे."
‘पाकिस्तान में हिंदू होना अपराध से कम नहीं था’
पाकिस्तान में उत्पीड़न की यादों को याद करते हुए कई शरणार्थी भारत में बेहतर जिंदगी के लिए कोशिश कर रहे हैं. राजेश ने कहा, ”हममें से ज्यादातर छोटे स्तर के किसान हैं. हम पाकिस्तान में नरक जैसी स्थिति में रहते थे. हमारे बच्चों को इस्लामी शिक्षा दी गई, हमारी महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया और हमारे लोगों को जबरन इस्लाम कबूल करवाया गया.”
एक अन्य शरणार्थी ने कहा, "हमारे परिवार के कुछ सदस्य अभी भी वहां हैं और उन पर अत्याचार हो रहा है."
कई वर्षों तक देश से निकाल दिए जाने के लगातार मंडराते खतरे में रहने के बाद, अब देश की राजधानी के बीच रहने वाले इन शरणार्थियों को उम्मीद है कि सरकार भ्रम दूर करेगी. उन्हें भारत के नागरिक बनने का इंतजार है.
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