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विजय माल्या को एक बुरे सौदे ने कैसे बर्बाद कर दिया

विजय माल्या केस को समझने के लिए ये सबसे आसान कुंजी है 

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8 मार्च 2016. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस कुरियन जोसफ और जस्टिस रोहिंटन नरीमन की बेंच थी. भारत के अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी 14 सरकारी बैंकों की तरफ से अदालत में जिरह कर रहे थे. उन्होंने कोर्ट से अपील की कि विजय माल्या पर सरकारी बैंकों का लगभग 9000 करोड़ का बकाया है, लिहाजा उनका पासपोर्ट रद्द कर दिया जाए और उनके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया जाए.

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इससे 6 दिन पहले ही स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने बेंगलुरु के डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल में माल्या के खिलाफ अर्जी दायर की थी. स्टेट बैंक माल्या का सबसे बड़ा कर्जदाता था. 2005 से 2011 के बीच बैंक ने उन्हें 7.5 करोड़ डॉलर का कर्ज दिया था. माल्या DRT में समन जारी होने के बावजूद पेश नहीं हुए थे, न ही उन्होंने सुनवाई के जरूरी सिक्‍योरिटी जमा करवाई थी. लिहाजा उन्हें सुप्रीम कोर्ट का रुख करना पड़ा था.

जस्टिस कुरियन ने जिरह कर रहे रोहतगी को बीच में रोककर पूछा, "लेकिन विजय माल्या हैं कहां?" अटॉर्नी जनरल ने जवाब में कहा, "हमें सीबीआई के जरिए सूचना मिली है कि वो 6 दिन पहले ही लंदन चले गए हैं."

कोर्ट ने माल्या का पासपोर्ट सीज करने का आदेश तो दे दिया, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी.

ऐसे शुरू हुआ 'किंग ऑफ गुड टाइम्स' का बैड टाइम

हिंदी में एक कहावत है, "पांचों उंगलियां घी में होना". 1983 में अपने पिता के शराब के व्यवसाय को संभालने के बाद विजय माल्या ने बारे में यह कहावत सटीक साबित हुई. उन्होंने किंगफिशर बियर को दुनिया का सबसे ज्यादा बिकने वाला ब्रांड बना दिया. फिर आया 2005 का साल. माल्या ने बड़े जोर-शोर से अपनी विमान कंपनी किंगफिशर एयरलाइन्स की शुरुआत की. बाजार में बहुत हल्ला था उस समय.

कहते हैं कि बिजेनस में एक बुरा सौदा आपकी बर्बादी की वजह बन सकता है. माल्या के साथ भी ऐसा ही हुआ. उन्होंने 2007 में घाटे में जा रही डेक्कन एयरलाइन्स को खरीद लिया. इस सौदे के साथ ही किंगफिशर एविएशन बाजार की दूसरी बड़ी कंपनी बन गई. लेकिन इस बार किस्मत माल्या के साथ नहीं थी.

अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें असमान छूने लगीं. किंगफिशर एयरलाइन का साइज पहले काफी बढ़ गया था और उसे चलने का खर्चा भी. इधर बाजार में नए प्लेयर भी आना शुरू हो गए थे. माल्या की कंपनी घाटे में जाने लगी. घाटे को पूरा करने के लिए वो बैंको से कर्ज ले रहे थे, लेकिन कंपनी की उड़ान में टर्बुलेंस थमने का नाम नहीं ले रही थी.

1 अक्टूबर 2012 को किंगफिशर के कर्मचारी हड़ताल पर चले गए. उनका आरोप था कि कंपनी उन्हें पिछले कई महीनों से सैलरी देने में नाकाम रही है. कंपनी और कर्मचारियों की इस हुज्जत के बीच सरकार ने किंगफिशर एयरलाइन्स का लाइसेंस रद्द कर दिया. डेक्‍कन एयरलाइन्स को खरीदने के महज पांच साल के भीतर ही किंगफिशर एयरलाइन्स के हवाई जहाज जमीन पर उतार लिए गए.

फिर माल्या की नीयत में खोट आ गई

8 मार्च 2016 की अदालती जिरह के दौरान जजों ने मुकुल रोहतगी से एक बेहद बुनियादी सवाल पूछा, ''घाटे में जा रही कंपनी को आखिर इतना कर्जा मिला कैसे?"

अटॉर्नी जनरल का जवाब था कि जिस समय कर्जा दिया गया, उस समय उसकी ब्रांड इमेज अपने शीर्ष पर थी. लेकिन अब सवाल कर्जा देने नहीं, उसे वापस हासिल करने का था. 2012 में बैंकों को अपने कर्ज की चिंता सताने लगी. जवाब में माल्या ने अपनी लिकर कंपनी यूएसएल का कुछ हिस्सा बेचकर कर्जे की भरपाई की पेशकश की.

2013 में माल्या ने यूएसएल के 27 फीसदी शेयर ब्रिटिश कंपनी डायाजियो को बेच दिया. इस सौदे में उन्हें करीब 6,500 करोड़ रुपए हासिल हुए. माल्या की नीयत में यहीं से खोट आ गई. उन्होंने वायदे के मुताबिक यह पैसा अपने कर्जदारों को नहीं लौटाया. 2014 में यूनाइटेड बैंक ने सबसे पहले इस धोखाधड़ी को पकड़ा और माल्या को विलफुल डिफॉल्टर घोषित कर दिया.

बैंकों की देनदारी के केस फंसते देख उनकी साझीदार कंपनी डायाजियो ने हाथ झटकना शुरू कर दिया. डायाजियो की तरफ से माल्या पर दबाव बनाया जाने लगा कि वो यूनाइटेड स्प्रिट्स के चेयरमैन का पद छोड़ दें. माल्या ने इससे साफ मना कर दिया.

आखिरकार 2016 में माल्या और डायाजियो के बीच समझौता हुआ और उन्होंने चैयरमेन पद छोड़ दिया. डियाजियो ने यूनाइटेड स्प्रिट्स के पचास फीसदी शेयर खरीदकर कंपनी को अपने कब्जे में कर लिया. इस समझौते में माल्या को 515 करोड़ रुपए मिले.

बैंकों की कर्जदारी को देखते हुए DRT ने इसे निकालने पर रोक लगा दी. अब माल्या के पास न तो अपनी कंपनी बची थी, न ही कर्जा उतारने के लिए पैसे. यह खुद को किंग ऑफ गुड टाइम्स कहने वाले माल्या के बुरे दिनों की शुरुआत थी.

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