पंजाब एंड महाराष्ट्र कोऑपरेटिव (PMC) बैंक में हुए फाइनेंशियल फ्रॉड ने इसके निवेशकों और खाता धारकों को तो परेशान किया ही, साथ ही एक बड़ा सवाल भी खड़ा किया कि क्या अब हमारा पैसा बैंकों में भी सुरक्षित नहीं है. क्योंकि हर खाताधारक के मन में यही सवाल उठ रहा है कि बैंकों पर नजर रखने वाले RBI ने वक्त रहते गड़बड़ी क्यों नहीं पकड़ी? जबकि हकीकत ये है कि इस बैंक पर RBI की कड़ी नजर थी ही नहीं.
PMC बैंक मैनेजमेंट ने नियमों को दरकिनार करते हुए 6500 करोड़ रुपये (बैंक के टोटल कैपिटल का 73% हिस्सा) सिर्फ एक ही कंपनी HDIL को दे दिया. बैंक में हुई ये धांधली नजर में आने के बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने PMC बैंक पर पाबंदियां लगा दीं और इसके खाताधारकों पर छह महीन के अवधि में सिर्फ दस हजार रुपये की विदड्रॉल लिमिट तय कर दी. इन पाबंदियों से बैंक के ग्राहक खासे परेशान हैं.
PMC बैंक ने क्या गड़बड़ी की?
- PMC बैंक पर आरोप है कि उसने 6500 करोड़ रुपये यानी बैंक के टोटल कैपिटल का 73% हिस्सा सिर्फ एक ही कंपनी HDIL को दे दिया था, जो अब दिवालिया हो गई है
- रिपोर्ट्स के मुताबिक, PMC बैंक के एमडी जॉय थॉमस की अगुवाई में बैंक मैनेजमेंट ने रियल एस्टेट कंपनी हाउसिंग डिवेलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (HDIL) को फंड दिलाने के लिए कई डमी अकाउंट खोले हुए थे
- दिवालिया हो चुकी कंपनी पर बकाया इस लोन को बैंक ने RBI की गाइडलाइंस के बावजूद एनपीए में नहीं डाला. वह भी तब जबकि कंपनी लोन को चुकाने में लगातार फेल होती रही
- RBI गाइडलाइंस के मुताबिक, ऐसे मामलों में बैंक को लॉस का जिक्र करना चाहिए
को-ऑपरेटिव बैंकों को कौन रेगुलेट करता है?
बता दें, कोऑपरेटिव बैंक, कोऑपरेटिव सोसायटी एक्ट के तहत पंजीकृत होती हैं. साल 1966 में बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949 में संशोधन के जरिए सहकारी समितियों पर भी बैंकिंग कानून लागू किए गए थे. तब से, बैंकिंग से संबंधित कार्यों को RBI रेगुलेट करता है, और मैनेजमेंट से संबंधित कार्यों को संबंधित राज्य सरकारों या केंद्र सरकार द्वारा रेगुलेट किया जाता है.
राज्य और केंद्रीय सहकारी बैंकों का निरीक्षण करने के लिए नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डिवेलपमेंट (NABARD) को भी अधिकार दिए गए हैं. हालांकि, सहकारी बैंकों पर सरकारों और स्थानीय नेताओं का प्रभाव बहुत ज्यादा होता है. इसी वजह से जिन सहकारी बैंकों को सहकारिता के लिए शुरू किया गया था, उन पर ताकतवर लोगों या नेताओं का प्रभाव देखा जाता है और सहकारी बैंक अपने मूल उद्देश्यों से भटक जाती हैं.
ऐसे में अब वो समय आ गया है, जब सहकारी बैंकों का पूर्ण नियंत्रण और निगरानी आरबीआई के हाथ में हो.
कॉमर्शियल बैंकों और कोऑपरेटिव बैंकों में क्या अंतर होता है?
- कॉमर्शियल बैंक मुख्य रूप से मुनाफा कमाने के दृष्टिकोण से काम करते हैं, जबकि सहकारी बैंक सहयोग के सिद्धांत पर काम करते हैं. इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कुछ लोग पैसा जमा कर बैंक बनाते हैं और फिर जिसे जरूरत होती है उसे लोन देते हैं.
- कॉमर्शियल बैंकों का गठन संसद से पारित अधिनियम के आधार पर होता है, जबकि कोऑपरेटिव बैंकों की स्थापना राज्यों की सहकारी समितियों से संबंधित अधिनियमों के आधार पर की जाती है.
- कोऑपरेटिव बैंकों में भारत में तीन स्तरीय व्यवस्था है जैसे राज्य स्तर पर सहकारी समिति, जिला स्तर पर जिला सहकारी बैंक और तहसील स्तर पर प्राथमिक सहकारी बैंक, जबकि कॉमर्शियल बैंकों में इस तरह की कोई स्तरीय व्यवस्था नही हैं
- कॉमर्शियल बैंकों को आरबीआई से लोन लेने का अधिकार है, जबकि सहकारी बैंकों में केवल राज्य सहकारी बैंक इस सुविधा का लाभ उठा सकते हैं
- कॉमर्शियल बैंक देश के किसी भी जिले / राज्य में अपनी ब्रांच खोल सकते हैं, जबकि कोऑपरेटिव बैंक केवल सीमित इलाकों के भीतर अपनी गतिविधियों को संचालित कर सकते हैं.
- कॉमर्शियल बैंक विदेशों में भी अपनी ब्रांच खोल सकते हैं लेकिन कोऑपरेटिव बैंक ऐसा नहीं कर सकते.
- बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 1949 पूरी तरह से भारत के सभी कॉमर्शियल बैंकों पर लागू है, जबकि कोऑपरेटिव बैंक आंशिक रूप से इस एक्ट का पालन करने के लिए बाध्य हैं
HDIL का क्या कहना है?
संकट में फंसी हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (HDIL) ने मंगलवार को कहा कि पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव (पीएमसी) बैंक समेत अन्य बैंकों को 'पर्याप्त सुरक्षा' गारंटी देकर कर्ज लिया गया है और यह कारोबार की एक सामान्य प्रक्रिया है. कंपनी ने कहा कि जमाकर्ताओं के हितों की रक्षा के लिए वह बैंकों के साथ बातचीत के लिए तैयार है.
मुंबई पुलिस ने पीएमसी बैंक मामले में HDIL के प्रमोटर्स और बैंक के पूर्व प्रबंधन के खिलाफ सोमवार को मामला दर्ज किया है और कहा कि स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) इस मामले की जांच करेगी.
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