Global Hunger Index: शनिवार को ग्लोबल हंगर इंडेक्स जारी किया जा चुका है, जिसमें भारत की स्थिति पिछली बार की तुलना में बद से बदतर हो चुकी है. 126 देशों के सर्वे में भारत 107वीं रैंक पर है. इस रिपोर्ट को साझा तौर पर बनाने वाली आइरिश ऐड एजेंसी कंसर्न वर्ल्डवाइड और जर्मन ऑर्गेनाइजेशन वेल्ट हंगर हिल्फे के मुताबिक, भारत में "हंगर कंडीशन", "सीरियस लेवल" पर है.
हर साल आने वाली यह रिपोर्ट चर्चा का विषय बनती है. भारत की स्थिति इसमें बदतर होती जा रही है. 2020 में भारत 101वें पायदान पर था, उससे पहले 94वें नंबर पर. अब सवाल उठता है कि इसे कैलकुलेट कैसे किया जाता है? इसके कैलकुलेशन में इस्तेमाल होने वाले आंकड़े कहां से लिए जाते हैं? और बीते सालों में कैलकुलेशन मैथडोलॉजी पर कैसे सवाल उठे हैं?
कैसे होता है कैलकुलेशन?
हंगर इंडेक्स एक नंबर होता है. यह नंबर 0 से लेकर 100 तक हो सकता है. इसमें 0 सबसे बेहतर स्थिति होती है, मतलब संबंधित देश में भुखमरी बिल्कुल भी नहीं होगी. जबकि 100 सबसे बदतर स्थिति होती है, मतलब पूरी आबादी ही भुखमरी का शिकार है.
अब सवाल उठता है कि यह जीएचआई (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) नंबर कैसे निकाला जाता है? दरअसल इसमें तीन तरह के आंकड़े अहम होते हैं?
किसी देश की कुल आबादी में कुपोषण की शिकार आबादी की हिस्सेदारी (प्रतिशत में)
किसी देश में 5 साल से कम उम्र के कुल बच्चों में कम वजन वाले बच्चों की हिस्सेदारी (प्रतिशत में)
किसी देश में पैदा हुए ऐसे बच्चों का प्रतिशत, जिनका पांच साल की उम्र पूरी होने से पहले निधन हो गया (शिशु मृत्यु दर).
इन तीनों आंकड़ों को निकालकर उनका औसत निकाल लिया जाता है. मतलब तीनों संख्याओं को जोड़कर उनमें 3 से भाग दे दिया जाता है. जो निकलता है, वही संबंधित देश का जीएचआई होता है.
जैसे- एक देश "X" में-
40 प्रतिशत आबादी कुपोषण का शिकार है.
5 साल की उम्र से कम वाले कुल बच्चों में से 30 फीसदी कम वजन से पीड़ित हैं.
5 साल की उम्र से पहले 25 फीसदी बच्चों का निधन हो जाता है.
तो संबंधित देश का जीएचआई होगा- (40+30+25)/3 = 31.66
ध्यान रहे यहां भारत का स्कोर इस बार 29.1 है. जबकि 121वें पायदान पर मौजूद यमन का 45.1 है. सबसे बदतर स्थिति में मौजूद बुरुंडी, सोमालिया, दक्षिण सूडान और सीरिया का स्कोर 35 से 49.9 के बीच है.
सबसे बेहतर स्थिति 5 अंक से कम मानी जाती है. चीन जैसा बड़ा देश भी अपने हंगर इंडेक्स को 5 से कम करने में कामयाब रहा है. ऐसे 17 देश हैं, जिनका स्कोर 5 से कम है. चीन के अलावा इनमें ज्यादातर पूर्वी और मध्य यूरोप के छोटे देश, दक्षिण अमेरिका से चिली और उरुग्वे के साथ-साथ एशिया से कुवैत और तुर्की शामिल हैं.
कैसे जुटाए जाते हैं आंकड़े?
हमने यह तो देख लिया कि यह स्कोर कैसे कैलकुलेट होता है, अब सवाल उठता है कि इन पैमानों का आंकड़ा कहां से लिया जाता है.
रिपोर्ट जारी करने वाली संस्था के मुताबिक. पिछली कुछ कैलकुलेशन में किसी देश में कुल आबादी में कुपोषण के आंकड़ों के लिए यूएन के संगठन "फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफएओ)" के डेटा का इस्तेमाल किया गया. यह आंकड़े 2019-21 के बीच के हैं.
जबकि 5 साल से कम उम्र के बच्चों में कम वजन वाले बच्चों की हिस्सेदारी जानने के लिए यूनिसेफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन और वर्ल्ड बैंक से डेटा लिया गया. इस दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा लगातार अपडेट किए जाने वाले "ग्लोबल डाटाबेस ऑन चाइल्ड ग्रोथ एंड मालन्यूट्रिशन" टेबल का भी सहारा लिया गया. कुछ देशों के मामले में मंत्रालयों से भी आंकड़ा लिया गया. यह आंकड़े 2017-21 के बीच के हैं.
जबकि शिशु मृत्यु दर के लिए यूएन आईजीएमई (यूएन इंटर-एजेंसी ग्रुप फॉर चाइल्ड मोर्टेलिटी एस्टीमेशन) से 2020 के आंकड़े लिए गए हैं.
पिछली बार भारत ने उठाए थे मैथडोलॉजी पर सवाल
जैसा ऊपर बताया, पिछली बार भी भारत की स्थिति में 7 पायदान की गिरावट आई थी. तब भारत सरकार ने स्टेटमेंट जारी कर इसे "अवैज्ञानिक पद्धति की रिपोर्ट" बताया था. इस दौरान बाल एवम् शिशु कल्याण मंत्रालय की तरफ से कुपोषण पर एफएओ द्वारा इकट्ठे किए हुए आंकड़ों को जमीनी हकीकत से परे बताया गया था, जो इस गणना का एक आधार था.
मंत्रालय ने एफएओ के आंकड़ों को इकट्ठा करने के तरीके पर सवाल उठाते हुए कहा कि संगठन ने "अपना विश्लेषण चार सवालों के ओपिनियन पोल पर आधारित रखा. जबकि यह सवाल भी टेलीफोन से पूछे गए थे. यहां, प्रति व्यक्ति अनाज उपलब्धता जैसी किसी वैज्ञानिक पद्धति का पालन नहीं किया गया था."
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