1 अक्टूबर को केंद्र सरकार (Central Government) ने पंजाब (Punjab Government) और हरियाणा (Haryana Government) को पत्र भेजकर बताया कि आपके राज्यों में धान की खरीद (paddy purchase) देरी से शुरू की जाएगी. इस देरी की वजह बताते हुए केंद्र सरकार ने तर्क दिया था कि अभी इन राज्यों के धान में नमी है, क्योंकि यहां हाल ही में बारिश होती रही है. किसान फैसला होने के बाद से ही इस फैसले का विरोध कर रहे थे, और 2 अक्टूबर को हरियाणा-पंजाब में प्रदर्शन (Farmer Protest) करने का ऐलान कर दिया.
चंद घंटो में ही सरकार को झुकना पड़ा
1 अक्टूबर को सरकार ने फैसला किया कि हरियाणा और पंजाब में 11 अक्टूबर से धान की फसल खरीदी (paddy procurement) जाएगी, लेकिन चंद घंटे बाद ही सरकार को किसानों के आगे झुकना पड़ा.
किसानों ने 2 अक्टूबर को हरियाणा और पंजाब में प्रदर्शन शुरू किया. जिसमें किसान हरियाणा के बीजेपी-जेजेपी (BJP-JJP Leader) नेताओं के घरों के बाहर धान लेकर पहुंच गए. यहां तक कि किसानों ने करनाल में सीएम आवास (Manohar lal house) भी घेर लिया. इसके अलावा पंजाब में डीसी ऑफिस पर किसानों का धरना था.
पंजाब की कांग्रेस सरकार ने भी केंद्र के इस फैसले का ऑफिशियली विरोध किया था. हरियाणा में किसानों के जबरदस्त प्रदर्शन से सरकार बैकफुट पर आई और फैसले के कुछ घंटे बाद ही केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने आकर ऐलान किया कि सरकार ने अपना फैसला वापस ले लिया है और अब 3 अक्टूबर को दोनों राज्यों में धान की खरीद शुरू कर दी जाएगी.
विरोध क्यों कर रहे थे किसान?
दरअसल सरकार ने खरीफ की खरीदारी में देरी का ऐलान करते हुए ये तर्क दिया था कि अभी इन दो राज्यों के धान में नमी है, लेकिन सरकार के इस तर्क में दम नहीं था क्योंकि मंडी में जब किसान फसल लेकर जाता है तो उसमें नमी के लिए अलग से धान काटा जाता है. इसका मतलब ये होता है कि अगर किसी के धान में नमी है तो उसके धान की कुछ कटौती करके तोल की जाएगी. इसीलिए किसान कह रहे थे कि इस फैसले के पीछे कोई और वजह है.
धान की सितंबर के अंत तक खरीद क्यों जरूरी?
हरियाणा और पंजाब में बासमती धान की कई ऐसी किस्में किसान पैदा करते हैं, जो बाकियों से पहले पक जाता है. वैसे भी हरियाणा देश में सबसे अच्छा बासमती धान पैदा करने वाले राज्यों में से एक है और यहां के धान की विदेशों तक धूम है. हरियाणा में आमतौर पर 25 सितंबर को धान की खरीद शुरू हो जाती है और पंजाब में 1 अक्टूबर से आम तौर पर धान की खरीद शुरू होती है.
हरियाणा और पंजाब में काफी किसानों का धान अब तक पक चुका है और वो मंडी में लेकर पहुंच गए हैं. खरीद ना शुरू होने से मंडियों में किसान इकट्ठे होते रहते, और उन्हें अगली फसल की तैयारी में भी देरी होती. इसके अलावा ज्यादातर किसान वो होते हैं जो पिछली फसल बेचकर ही अगली फसल की तैयारी करते हैं ऐसे में अगर उनकी फसल नहीं बिकती तो उन्हें काफी नुकसान होने की संभावना थी, क्योंकि फिर मजबूरी में जरूरत के लिए किसान प्राइवेट प्लेयर को सस्ते में धान बेचकर जाता.
क्या इतनी देरी वाकई बड़ी बात है?
10-15 दिन की देरी किसानों के लिए कितना असर डालती, ये हम आपको हरियाणा के एक उदाहरण से समझाएंगे. पिछले साल हरियाणा में 25 सितंबर खरीफ की फसल सरकार ने खरीदनी शुरू की थी. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल 5 अक्टूबर तक हरियाणा की मंडियों में 8 लाख 34 हजार क्विंटल से ज्यादा धान पहुंच चुका था.
अगर इसके आधार पर भी देखें तो 11 अक्टूबर 10 लाख क्विंटल से ज्यादा धान सिर्फ हरियाणा की मंडियों में पहुंच सकता था. आप सोचिए कि इस देरी की भरपाई कैसे होती, क्योंकि मंडियों में सबकुछ ठीक चलने के बाद भी किसानों को कई-कई दिन फसल बेचने के लिए इंतजार करना पड़ता है.
2 अक्टूबर के प्रदर्शन की बड़ी बातें
किसानों ने शनिवार को जो प्रदर्शन किया वो इतने बड़े स्तर पर था कि हरियाणा में किसानों ने सीएम समेत लगभग सभी मंत्रियों के घर घेर रखे थे. कई जगह पुलिस ने किसानों पर लाठी भी चलाई और वाटर कैनन का इस्तेमाल भी किया, लेकिन किसान डटे रहे और सरकार को झुकना पड़ा.
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