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MP में बाढ़,किन्नौर में भूस्खलन,धर्मशाला में आपदा- भारत में ये क्यों हो रहा है

भारत 2021 के शुरुआती 8 महीनों में ही अलग-अलग तरह की Natural Disaster का शिकार बन चुका है

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भारत
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भारत ने 2021 के सिर्फ आठ महीनों में कई प्राकृतिक आपदाएं देख चुका है. इन अलग-अलग आपदाओं में 26 जुलाई को महाराष्ट्र के चिपलून में 190 मौतें, 25 जुलाई को हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में 9 लोगों की मौत हुईं. 26 मई को पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में 20,000 से अधिक लोग बेघर हो गए. 7 फरवरी को उत्तराखंड के चमोली में आठ लोगों की मौत हो गई.

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एक नजर में देखें तो इस वर्ष तमाम आपदाएं देखने को मिली हैं जैसे- मानसून की देर से शुरुआत, अत्यधिक बारिश, उत्तराखंड में ग्लेशियर फटना, जंगलों में लगी आग, हिमाचल प्रदेश में बादल फटना, भूस्खलन होना, राजस्थान में बिजली गिरना, बाढ़ आना, लू चलना, सूखा पड़ना.
इसके अलावा इस साल मई में भारत के पूर्वी और पश्चिमी तट से दो बड़े चक्रवात यास और ताउते टकरा चुके हैं.

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यह सब क्यों हो रहा है?

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“मानसून के मौसम का आधा वक्त भी नहीं गुजरा और हमने पहले ही मौसमी बारिश का लक्ष्य हासिल कर लिया. जलवायु परिवर्तन इस समय की वास्तविकता है. मौसम की संवेदनशीलता बढ़ रही है, चाहे वो बादल फटने की तीव्रता हो, भूस्खलन, भारी बारिश, चक्रवात या अन्य घटनाएं ”
मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन, स्काईमेट वेदर के अध्यक्ष एवीएम जी पी शर्मा
हम देख रहे हैं कि एक पैटर्न बहुत तेजी से उभर रहा है. चक्रवातों की संख्या और तीव्रता में वृद्धि हुई है. बारिश के पैटर्न में भारी बदलाव आ रहा है और ये स्पष्ट रूप से जलवायु परिवर्तन की घटनाएं हैं. औद्योगिक युग में महासागरों का तापमान लगभग 0.8 डिग्री बढ़ गया है और ये नमी मानसून प्रक्रिया में शामिल हो रही है. विशेष तौर पर भारतीय उपमहाद्वीप में चक्रवातों के तटों से टकराने की घटनाएं बढ़ रही हैं.
इसपर IPCC के सदस्य क्लाइमेट साइंटिस्ट अंजल प्रकाश का कहना है कि,

उत्तर भारत की पहाड़ियों को भी इस वर्ष जलवायु परिवर्तन का भयंकर खामियाजा भुगतना पड़ा है.

  • फरवरी 2021: उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर फटा

  • अप्रैल 2021: पूरे उत्तराखंड में जंगलों में लगी आग

  • जुलाई 2021: हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में बादल फटा

  • जुलाई 2021: हिमाचल प्रदेश के किन्नौर में भूस्खलन

“पहाड़ी क्षेत्र में मौसम अधिक संवेदनशील हो जाता है, क्योंकि पहाड़ मौसम के प्रति अधिक तेजी से प्रतिक्रिया करते हैं. तेज ऊपरी हवा के अभाव में, तूफानी बादल बहुत लंबा सफर नहीं कर पाते हैं या हम कह सकते हैं कि वे फंस जाते हैं. ये बादल तब एक निश्चित क्षेत्र में सारा पानी उड़ेल देते हैं, जिसे बादल फटना कहते हैं. वनों की कटाई और जलविद्युत संयंत्रों, सड़कों, होटलों या घरों के निरंतर निर्माण से मिट्टी ढीली हुई है, जिसके कारण थोड़ी सी बारिश के कारण भी बार-बार भूस्खलन होता है. मैं कहूंगा कि भारत विशेष रूप से अतिसंवेदनशील है. यहां दुनिया की सभी इकोलॉजी मौजूद है, चाहे वो पर्वत, तटीय, अर्ध-शुष्क क्षेत्र, रेगिस्तानी क्षेत्र हों ... ये सभी जलवायु परिवर्तन हॉटस्पॉट क्षेत्र हैं. हिमालय में पिघलने वाले ग्लेशियरों का सीधा प्रभाव ब्रह्मपुत्र, गंगा और सिंधु जैसी नदी प्रणालियों पर पड़ता है.
मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन, स्काईमेट वेदर के उपाध्यक्ष महेश पलावत

महानगर भी भुगत रहे जलवायु परिवर्तन का खामियाजा

ये सब एक बड़ी मानवीय कीमत पर हो रहा है. कुछ मेगासिटी भारत के तटीय शहर हैं, जैसे- मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और विशाखापत्तनम हों. ये शहर सीधे तौर पर प्रभावित होने वाले हैं और ये बिजनेस सेंटर भी हैं. कई बार यह घटनाएं शहरों को एक या दो सप्ताह के लिए बिल्कुल रोक देती हैं. फिर आपके पास पूरी पुनर्वास प्रक्रिया है, नौकरियों का नुकसान, विशेष रूप से निचले स्तर पर काम करने वाले लोगों, दिहाड़ी मजदूरों के लिए. तो इस घटना के लिए एक बड़ी मानवीय कीमत है और ये एक ऐसी चीज है जिसे हमें पहचानना चाहिए.
क्लाइमेट साइंटिस्ट अंजल प्रकाश

यह सिर्फ भारत की समस्या नहीं है, इस जलवायु परिवर्तन से पूरी दुनिया परेशान है.
चाहे मेक्सिको में 'समुद्र में लगी आग' हो या कनाडा में लू से 400 से ज्यादा लोगों की मौत. जर्मनी की बाढ़ में 150 से ज्यादा लोगों की मौत हो या दक्षिण यूरोप में जंगलों में लगी आग या चीन में आयी भारी बाढ़. यह सब जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम है.

ये सब वास्तव में हो रहा है और अब इसके लिए दुनिया को सख्त कदम उठाने चाहिए.

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