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आर्टिकल 370 लागू होने से खत्म होने तक - कश्मीर की पूरी कहानी

भारत में विलय को कैसे मजबूर हुए जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह

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केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला आर्टिकल 370 खत्म कर दिया. इसके साथ ही मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित राज्यों में बांटने का फैसला किया है.

सरकार और सत्ताधारी दल इस फैसले को ऐतिहासिक बता रहा है, वहीं विपक्ष ने इसे संविधान के साथ मखौल करार दिया है. आर्टिकल 370 को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं हो रही हैं और इसे लेकर कई सवाल भी उठ रहे हैं. ऐसे ही सवालों के जवाबों के साथ हम आपको बताएंगे कि जम्मू-कश्मीर कब भारत का हिस्सा बना और कब जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाला आर्टिकल 370 लागू किया गया.

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आजाद रहना चाहता था जम्मू-कश्मीर

भारत को जब ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिली, उस वक्त देश की मौजूदा सीमा में 565 प्रिंसली स्टेट यानी स्वतंत्र रियासतें थीं. आजादी के बाद इनमें से तीन रियासतों को छोड़कर सभी भारत में विलय को राजी हो गईं. ये रियासतें थीं- जम्मू-कश्मीर, जूनागढ़ और हैदराबाद. तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से जूनागढ़ और हैदराबाद का विलय भारत में हो गया.

लेकिन जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह चाहते थे कि उनका कश्मीर स्वतंत्र राज्य रहे. लिहाजा, उन्होंने भारत और पाकिस्तान के साथ स्टैंड स्टिल समझौते की पहल की. उस समझौते का मकसद था कि उन्हें भारत या पाकिस्तान में विलय करने के लिए कुछ और समय मिल जाए.

पाकिस्तान ने महाराजा हरि सिंह के साथ ये समझौता कर लिया लेकिन भारत ने उस स्थिति में इंतजार करना बेहतर समझा.

कबायलियों का कश्मीर पर हमला

भारत कश्मीर के विलय का इंतजार कर रहा था और महाराजा हरि सिंह आजाद कश्मीर का सपना पाले हुए थे.

22 अक्टूबर 1947 को हजारों हथियारबंद लोग कश्मीर में दाखिल हो गए और तेजी से राजधानी श्रीनगर की ओर बढ़ने लगे. इन्हें कबायली हमलावर कहा जाता है. कहते हैं कि इन हमलावरों को पाकिस्तान का समर्थन मिला हुआ था. कश्मीर के पुंछ इलाके में राजा के शासन के प्रति पहले से ही काफी असंतोष था. लिहाजा इस इलाके के कई लोग भी उनके साथ मिल गए.

...जब महाराजा हरि सिंह ने भारत से मांगी सैन्य मदद

महाराजा हरि सिंह के सामने दो ही विकल्प बचे थे या तो वे राज्य में कबायली हमलावरों द्वारा किया जा रहा कत्लेआम होने दें, या फिर भारत में विलय को तैयार हो जाएं.

24 अक्टूबर को जब ये हमलावर बारामूला की ओर बढ़ रहे थे तो महाराजा हरी सिंह ने भारत सरकार से सैन्य मदद मांगी. अगली ही सुबह सरदार पटेल के करीबी अफसर वीपी मेनन हालात का जायजा लेने दिल्ली से कश्मीर रवाना हो गए. मेनन सरदार पटेल के नेतृत्व वाले राज्यों के मंत्रालय के सचिव थे. मेनन जब महाराजा हरि सिंह से श्रीनगर में मिले तब तक हमलावर बारामूला पहुंच चुके थे. ऐसे में उन्होंने महाराजा को तुरंत जम्मू रवाना हो जाने को कहा और वे खुद कश्मीर के प्रधानमंत्री मेहरचंद महाजन को साथ लेकर दिल्ली लौट आए.

मुश्किल वक्त में विलय को तैयार हुए थे हरि सिंह

हालात ऐसे थे कि किसी भी वक्त कश्मीर की राजधानी पर हमलावरों का कब्जा हो सकता था. महाराजा हरी सिंह भारत से मदद की उम्मीद लगाए बैठे थे. ऐसे में लॉर्ड माउंटबेटन ने सरदार पटेल को सलाह दी कि कश्मीर में भारतीय फौज भेजने से पहले हरी सिंह से ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर करवा लिया जाए.

मेनन को एक बार फिर से जम्मू रवाना किया गया. 26 अक्टूबर को मेनन ने महाराजा हरी सिंह से ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर करवाए और उसे लेकर वे तुरंत ही दिल्ली वापस लौट आए.

अगली सुबह भारतीय फौज कश्मीर रवाना हो गई. कुछ ही दिनों में पाकिस्तान समर्थित कबायली हमलावरों और विद्रोहियों को भारतीय फौज ने खदेड़ दिया.

26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरि सिंह ने विलय के समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए. 27 अक्टूबर को उस समय आजाद भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत की तरफ से समझौते को मंजूरी दी.

विलय के समय जम्मू-कश्मीर सरकार ने जो ड्राफ्ट तैयार किया था, उस पर सहमति बनाने के लिए करीब पांच महीने तक बातचीत चलती रही. इसके बाद 27 मई 1949 को आर्टिकल 306 A, जिसे बाद में 370 के नाम से जाना गया, पारित हुआ.

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आर्टिकल 370 के जरिए कश्मीर को मिला विशेष राज्य का दर्जा

जब महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर छोड़ दिया तो शेख अब्दुल्ला के मंत्रिमंडल से विचार-विमर्श के बाद आर्टिकल 370 की योजना बनाई गई, जो भारत के साथ कश्मीर राज्य के संबंध की व्याख्या करता है. आर्टिकल 370 के तहत कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा मिला. इसके मुताबिक-

  • जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती
  • राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्‍त करने का अधिकार नहीं है
  • जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता
  • भारतीय संसद जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में सीमित क्षेत्र में कानून बना सकती है
  • जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज अलग है. वहां के नागरिकों द्वारा भारत के राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना अनिवार्य नहीं है.
  • दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते.
  • धारा 360 के अन्तर्गत देश में आर्थिक आपातकाल लगाने का प्रावधान है, लेकिन यह जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता
  • जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है.
  • सुप्रीम कोर्ट के आदेश जम्मू-कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होते हैं.
  • जम्मू-कश्मीर की कोई महिला अगर भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी करती है तो उसकी नागरिकता समाप्त हो जाएगी.
  • धारा 370 की वजह से कश्मीर में आरटीआई और सीएजी (CAG) जैसे कानून लागू नहीं होते हैं.
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कश्मीर में अब्दुल्ला की एंट्री और हरि सिंह का एग्जिट

महाराजा हरि सिंह ने साल 1925 में जम्मू-कश्मीर की राजगद्दी संभाली थी. जम्मू-कश्मीर ऐसा राज्य था, जहां मुस्लिम बहुत आबादी होने के बावजूद शासक हिंदू था. यही वो दौर था जब कश्मीर में राजशाही के खिलाफ आवाजें उठने लगी थीं. इन आवाजों के सबसे बड़े प्रतिनिधि थे - शेख अब्दुल्ला.

साल 1932 में शेख अब्दुल्ला ने ‘ऑल जम्मू-कश्मीर मुस्लिम कॉफ्रेंस’ का गठन किया. कुछ सालों बाद इसी संगठन का नाम बदलकर ‘नेशनल कॉफ्रेंस’ कर दिया गया. इसमें सभी धर्मों के लोग शामिल थे और इसकी मुख्य मांग थी - राज्य में जनता के प्रतिनिधित्व वाली सरकार का गठन हो जिसका चुनाव मताधिकार के जरिए किया जाए. 1940 आते-आते शेख घाटी के सबसे लोकप्रिय नेता बन चुके थे.

भारत में विलय के बाद जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने तत्कालीन पीएम नेहरू से राजनीतिक संबंधों को लेकर बातचीत की. इसी के तहत उन्हें राज्य का संवैधानिक प्रमुख बनाया गया. वहीं, शेख अब्दुल्ला को आपातकालीन प्रशासक के पद पर नियुक्त कर राज्य में सरकार चलाने की जिम्मेदारी दी गई. बाद में शेख अब्दुल्ला को 05 मार्च 1948 को राज्य का अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया.

इसके बाद महाराजा हरि सिंह को कश्मीर छोड़ना पड़ा और वह बंबई में जाकर बस गए.

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