27 मई 1964 की रात. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के निधन को चंद घंटे ही बीते थे कि राजनीतिक गलियारों में एक सवाल बार-बार उठने लगा- कौन होगा अगला प्रधानमंत्री? कयासों के बीच जो दो नाम प्रमुखता से सामने आ रहे थे, वो थे- मोरारजी देसाई और लाल बहादुर शास्त्री.
इसी बीच पत्रकार कुलदीप नैयर ने मोरारजी देसाई के घर का रुख किया. वह जानना चाहते थे कि प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी को लेकर मोरारजी का क्या कहना है. नैयर मोरारजी से तो नहीं मिल पाए, लेकिन उनके समर्थकों ने कहा कि मोरारजी मुकाबले में उतरेंगे और आसानी से जीतेंगे. नैयर लाल बहादुर शास्त्री के सूचना अधिकारी रह चुके थे. ऐसे में मोरारजी के बेटे कांति देसाई ने उनसे कहा, ''अपने शास्त्री से कह दो मुकाबला न करें.'' नैयर ने इस बात का जिक्र अपनी आत्मकथा 'बियॉन्ड द लाइन्स' में किया है.
शास्त्री की थी यह राय
नैयर शास्त्री की राय जानने उनके घर पहुंचे. शास्त्री ने नैयर से कहा कि वो सबकी सहमति के पक्ष में हैं. इसके साथ ही उन्होंने अपनी तरफ से दो नाम सुझाए- जयप्रकाश नारायण और इंदिरा गांधी. शास्त्री ने ये भी कहा कि वो चुनाव होने की सूरत में मोरारजी से मुकाबला कर सकते हैं और जीत भी सकते हैं, लेकिन इंदिरा से नहीं.
मोरारजी ने शास्त्री के सुझाव को खारिज किया
नैयर एक बार फिर मोरारजी के घर पहुंचे. उन्होंने मोरारजी को उन नामों के बारे में बताया जो शास्त्री ने सुझाए थे. इस पर मोरारजी ने जयप्रकाश नारायण को 'भ्रमित शख्स' और इंदिरा गांधी को 'छोटी-सी लड़की' करार दिया. उन्होंने कहा कि मुकाबले को रोकने का एक ही तरीका है कि पार्टी (कांग्रेस) उन्हें ही नेता के रूप में स्वीकार कर ले.
फिर जारी हुई वो खबर...
उस वक्त कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज थे. कामराज पार्टी के अंदर की राय जानने में लगे थे. हालांकि, कामराज की निजी राय मोरारजी के पक्ष में नहीं थी.
इसी बीच नैयर ने न्यूज एजेंसी यूएनआई पर एक खबर जारी की. जिसमें उन्होंने लिखा-
प्रधानमंत्री के पद के लिए सबसे पहले पूर्व वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने अपनी दावेदारी का ऐलान कर दिया है. माना जाता है कि उन्होंने अपने सहयोगियों से कहा है कि वे इस पद के उम्मीदवार हैं...बिना विभाग वाले मंत्री लाल बहादुर शास्त्री को एक और उम्मीदवार माना जा रहा है. हालांकि, वे खुद कुछ नहीं कह रहे हैं.
मोरारजी को लेकर लोगों की राय बदली
नैयर के मुताबिक, इस खबर के बाद लोग सोचने लगे कि मोरारजी इतने महत्वाकांक्षी हैं कि उन्होंने अपनी दावेदारी पेश करने के लिए नेहरू की चिता की आग ठंडी होने का भी इंतजार नहीं किया. मोरारजी के समर्थकों के मुताबिक, इस खबर की वजह से उन्हें कम से कम 100 वोटों का घाटा हुआ था. हालांकि, नैयर ने कहा कि इस खबर से उनकी मंशा किसी को फायदा या नुकसान पहुंचाने की नहीं थी.
मगर उन्हें इस खबर का असर तब समझ आया, जब कामराज ने संसद भवन की सीढ़ियों से उतरते हुए उनके कान में फुसफुसाते हुए कहा- थैंक्यू. इसके बाद कामराज ने ऐलान किया कि सर्वसम्मति शास्त्री के पक्ष में है. इस तरह लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ हो गया.
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