शहर में 'गांजा खतरे' (Marijuana Menace) को खत्म करने के लिए चल रहे अभियान के बीच खबर आई है कि हैदराबाद पुलिस (Hyderabad Police) आबकारी विभाग के साथ एक संयुक्त अभियान में, गांजा बेचने या इस्तेमाल करने वाले व्यक्तियों की पहचान करने के लिए रैंडम तलाशी और छापेमारी कर रही है. इस दौरान लोगों की वॉट्सऐप चैट देखते पुलिस का वीडियो वायरल हो रहा है, जिस पर लोग जमकर गुस्सा उतार रहे हैं.
यह कहते हुए कि पुलिस आधी रात में संदिग्ध गतिविधि होने पर तलाशी ले सकती है, हैदराबाद के पुलिस आयुक्त अंजनी कुमार ने कहा कि रैंडम फोन चेकिंग के वीडियो क्लिप को वेरीफाई नहीं किया गया है.
गुरुवार 28 अक्टूबर को सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो क्लिप में दिखाया गया कि शहर की पुलिस बिना किसी वारंट या कारण के युवाओं से उनके फोन मांग रही है और किसी भी संबंधित निजी चैट को देखने के लिए 'गांजा' जैसे कीवर्ड खोज रही है.
वीडिओ में एक स्थानीय किराना स्टोर पर छापेमारी करते हुए और कई वस्तुओं की सामग्री की गहन खोज देखी जा रही है.
द न्यूज मिनट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कुछ दिनों से शहर के हर थाने में पुलिस कमिश्नर के निर्देश पर गांजा की तलाशी और छापेमारी की जा रही है.
इस बीच तेलंगाना टुडे ने बताया है कि पुलिस ने पिछले दो दिनों में सात मामले दर्ज किए हैं और 10 कथित ड्रग तस्करों को गिरफ्तार किया है.
'लोग सहयोग कर रहे हैं, किसी को फोर्स नहीं किया जा रहा'
द न्यूज मिनट से बात करते हुए, दक्षिण क्षेत्र के पुलिस उपायुक्त, गजराव भूपाल ने दावा किया कि अधिकारी "किसी को भी जांच के लिए अपने फोन सौंपने के लिए मजबूर नहीं कर रहे हैं."
द न्यूज मिनट के हवाले से भूपाल ने कहा, "लोग सहयोग कर रहे हैं और कोई शिकायत नहीं कर रहा है, इसलिए मुझे नहीं लगता कि कुछ भी अवैध है.
हालांकि, यह पूछे जाने पर कि क्या लोगों के पास अपने डिवाइस को सौंपने से इनकार करने के लिए विकल्प है, डीसीपी ने कहा, "जनता अपना फोन देने से इनकार कर सकती है. हालांकि, हमें यह देखना होगा कि कौन से कानूनी प्रावधान लागू होते हैं. कोई खास निर्देश जारी नहीं किये है क्योंकि अब तक कोई समस्या नहीं हुई है."
'असंवैधानिक, निजता के अधिकार का उल्लंघन'
द न्यूज मिनट में छपी खबर के अनुसार, इस कदम को 'गैरकानूनी' और 'निजता के अधिकार का उल्लंघन' बताते हुए, तेलंगाना उच्च न्यायालय के वकील करम कोमिरेड्डी ने कहा, "निजता का अधिकार संवैधानिक ढांचे का हिस्सा है और सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि निजता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है. पुलिस को लोगों के फोन को बेतरतीब ढंग से जांचने का कोई अधिकार नहीं है."
सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में भारत के संविधान में निहित मौलिक अधिकारों की सूची में निजता के अधिकार को शामिल किया था. शीर्ष अदालत की नौ न्यायाधीशों की पीठ ने इस मुद्दे पर सर्वसम्मति से फैसला सुनाया था.
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