डॉ. किशोर मूर्ति न्यूयॉर्क जा रही उस पैन एम 73 फ्लाइट में थे, जिसे कराची में आतंकवादियों ने अपने कब्जे में ले लिया था. उन्होंने नीरजा को यात्रियों को बचाने के लिए गोली खाते देखा.
वे याद करते हैं: मैंने उसे गोली खाते देखा. उसके सिर में गोली मार दी गई थी, सीधा निशाना. आगे से छठी पंक्ति में बैठे हुए मैंने उसे उसके आखिरी पलों में देखा था.
5 सितंबर, 1986 को मुंबई से कराची होते हुए न्यूयॉर्क जाने वाली उस फ्लाइट को एयरपोर्ट सिक्योरिटी स्टाफ के रूप में आए आतंकियों ने कब्जे में ले लिया था.
23 साल की नीरजा ने अपनी सूझ-बूझ से इमरजेंसी एग्जिट गेट खुलवाकर यात्रियों को सुरक्षित निकलने में मदद की थी. इसके लिए नीरजा को सबसे बड़ा नागरिक वीरता सम्मान मरणोपरांत अशोक चक्र दिया गया था.
380 में से 20 यात्रियों की मार दिया गया था. ‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने नीरजा के जीवन पर आ रही फिल्म की रिलीज से एक दिन पहले बेंगलुरु में इस हादसे के दो प्रत्यक्षदर्शियों से बात की.
डॉ. मूर्ति और उनकी पत्नी वीणा भारती, दोनों ही फिल्म की शुरुआत से फिल्म के प्रोड्यूसर के संपर्क में रहे हैं.
नीरजा इस डरावनी घटना के दौरान पूरे समय शांत थीं. उसी ने सबसे पहले कैप्टन, को-पायलट और फर्स्ट ऑफिसर को संभावित हाइजैक के बारे में सूचना दी थी. उसी के निर्देश पर वे कॉकपिट से बाहर चले गए थे, ताकि विमान उड़ान न भर सके. वह सच्ची ग्लोबल सिटिजन थी. उसने भारतीय और अमेरिकी नागरिकों में भेदभाव नहीं किया.डॉ. किशोर मूर्ति, पैन एम 73 विमान अपहरण के प्रत्यक्षदर्शी नीरजा
वे अपना 24वां जन्मदिन मनाने से दो ही दिन दूर थीं. वे अपने जन्मदिन पर परिवार के साथ पार्टी मनाने की योजना बना रही थीं. पर इसके उलट जन्मदिन के एक दिन बाद उनके परिवार को उसका मृत शरीर हासिल हुआ.
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