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“उसके दोबारा ऐसा करने तक, मुझे लगा मैं गलत थी” #ProtectOurChildren

बाल यौन शोषण से पीड़ित लोगों की कहानियों की सीरीज में पहली कहानी, जो द क्विंट आपके साथ साझा कर रहा है.

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(द क्विंट, संसद सदस्य राजीव चंद्रशेखर के चलाए अभियान #ProtectOurChildren अभियान का समर्थन करता है. यह अभियान बच्चों को यौन शोषण की समस्या से बचाने के लिए एक समाधान खोजने की बात करता है. देवनिक साहा, जो इस अभियान से जुड़ी हुई हैं, वे अपने साप्ताहिक कॉलम में यौन शोषण के बारे में बात करेंगे व पीड़ितों की कहानियां आपके साथ साझा करेंगे. यह अभियान, यौन शोषण पीड़ितों की कहानियां सबके साथ साझा करने के लिए प्रोत्साहित करता है.)

इस सप्ताह की शुरूआत में राजीव चंद्रशेखर ने एक खुली बहस आयोजित की जिसका विषय था, “हमें अपने बच्चों के यौन शोषण व उनकी सुरक्षा के बारे में बात करने की जरूरत क्यों है” - जिसमें हक़ सेंटर फॉर चाइल्ड राइट्स, राही फाउंडेशन, व चेंज डॉट ऑर्ग आदि ने हिस्सा लिया.

बाल यौन शोषण के मामलों में 2009 से 2014 तक 151 फीसदी की बढोतरी हुई है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2009 में जहां 5,484 मामले दर्ज हुए थे वहीं वर्ष 2011 में इनकी संख्या 13,766 दर्ज की गई. देश भर में ‘प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज़ एक्ट’ यानी ‘पोस्को’ के तहत कुल 8,904 मामले दर्ज हुए जबकि “महिलाओं पर हमला” (बालिका) वर्ग में धारा 354 के तहत स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से उस पर हमला करने संबंधी 11,335 मामले दर्ज हुए(इनमें, पीछा करना, देर तक घूरना, अवांछनीय शारीरिक संपर्क आदि शामिल है).

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खुली बहस काफी सफल रही. जब कुछ पैनलिस्ट्स और प्रतिभागियों ने स्वीकार किया कि कभी न कभी उनके साथ यौन शोषण की घटनाएं हुई हैं, तो मुझे एक विचार सूझा.

मुझे महसूस हुआ कि हमें और अधिक पीड़ितों से बात करनी होगी और उन्हें अपनी कहानियां साझा करने के लिए मनाना होगा, शायद एक कहानी पिछली से ज्यादा खौफनाक होगी. द क्विंट ने हमें समर्थन दिया और इस तरह पहली कहानी आपके सामने है.

हाल ही में देश के सबसे अच्छे लॉ स्कूलों में से एक से पढ़ कर निकलीं रिचा गुप्ता (अनुरोध पर नाम बदल दिया गया है) को जब हमने सीरीज के बारे में बताया तो वे अपनी कहानी सुनाने को तैयार हो गईं.

“मैं अपना नाम इसलिए नहीं बताना चाहती क्योंकि मेरे नाम से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण मेरी कहानी है. हालांकि मैं उन लोगों की बेहद इज्जत करती हुं जो खुलकर आगे आते हैं.”

रिचा बस चार साल की थीं जब उन्हें स्कूल में भर्ती करा दिया गया. क्योंकि माता-पिता दोनों काम करते थे उन्हें क्रेच में छोड़ दिया जाता था. क्रेच में कुछ दिन बिताने के बाद ही, क्रेच चलाने वाली महिला के 17-18 साल के बेटे ने उनका यौन शोषण शुरु कर दिया.

वह मुझे परेशान करने का कोई मौका नहीं छोड़ता, जब भी अकेली होती, वह मुझे सताता. बहाने बना कर वह मुझे सुनसान जगहों पर ले जाता और मेरा शोषण करता.
रिचा गुप्ता ( अनुरोध पर नाम बदल दिया गया है)
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मैंने बड़ी सावधानी के साथ अगला सवाल पूछा - कि क्या वह बता सकेगी कि आखिर उसने उसके साथ किया क्या. रिचा के जवाब की तारीफ करनी होगी.

“जो कुछ हुआ उसे साफ-साफ बताना हमारी बातचीत के असल मकसद पर हावी हो जाएगा. हम वयस्क हैं, हम जानते हैं कि यौन शोषण के बीच क्या हो सकता है, और यह कितना डरावना हो सकता है. साथ ही मैं ये भी नहीं चाहती कि लोग अपने मन में वो तस्वीरें बनानें लगें कि उस समय क्या हुआ होगा, कैसे हुआ होगा या उसने ऐसा क्यों किया होगा... सच ये है कि, सबसे जरूरी बात यह है कि उसने ऐसा किया.”

खुली बहस के दौरान एक महत्वपूर्ण बात सामने आई कि अधिकतर बच्चों को यह पता भी नहीं होता कि उनका यौन शोषण किया जा रहा है.

रिचा के साथ भी कुछ यही हुआ.

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उस वक्त मुझे कोई अंदाजा नहीं था कि मेरे साथ हो क्या रहा है. मैं घर लौट कर यह मान लेती थी कि कुछ नहीं हुआ - जब तक ये दोबारा नहीं होता था. हालांकि मुझे अजीब लगता था, और शर्म भी आती थी पर मैंने किसी को कुछ नहीं बताया. यह पूरे एक साल तक चलता रहा, जब तक मुझे दूसरे स्कूल में दाखिला नहीं मिल गया. दो-तीन साल बाद जब में अखबार पढ़ने लगी और मैंने इस तरह की घटनाओं के बारे में पढ़ा, तब समझ आया कि मेरे साथ क्या हुआ था. पर मैं तब भी चुप रही.
रिचा गुप्ता ( अनुरोध पर नाम बदल दिया गया है)
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“जब मैं 18 साल की हुई तब जाकर कहीं अपने माता-पिता को उस घटना के बारे में बता सकी. वे यकीन नहीं कर पा रहे थे पर उन्होंने हमेशा की तरह मेरा साथ दिया. कभी उस घटना को सामने लाकर मुझे मेरे सपने पूरे करने से नहीं रोका.”

इस घटना ने उसे एक व्यक्ति के तौर पर कैसे बदला?

“उस घटना के बाद मैं लोगों की परेशानियों को समझने लगी. मैं मानती हूं कि उसी वजह से मैंने पर्यावरण व मानवाधिकार कानून की पढ़ाई की. खासतौर से मैं जेंडर पर काम करती हूं.”

बाल यौन शोषण के मुद्दे पर रिचा के भी कुछ सवाल हैं.

“अपने अनुभव के आधार पर मैं बाल शोषण के मुद्दों पर काम करने वालों से पूछना चाहती हूं कि क्या हमें कम उम्र के बच्चों को यौन शोषण के बारे में बता कर उनकी मासूमियत छीन लेनी चाहिए या फिर उन्हें ना बताने का खतरा मोल लेना चाहिए?”

दुखद यह है कि रिचा की स्टोरी उन कई कहानियों में से एक है जिसे द क्विंट हर सप्ताह आपके साथ साझा करेगी. हम आपको भी इस अभियान में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित करते हैं.

अगर आप अपनी या अपने दोस्तों की यौन शोषण से जुड़ी कहानियां साझा करना चाहते हैं तो devanik.saha@gamil.com पर हमें लिखें या फिर #ProtectOurChildren के साथ ट्वीट करें.

आईये, मिलकर बाल यौन शोषण के खिलाफ कदम उठाएं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

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