देश के 76 प्रतिशत लोगों को लगता है कि समाचार चैनलों पर उचित बहस (डिबेट) न होकर अनावश्यक झगड़ा होता है. आईएएनएस सी-वोटर मीडिया कंजम्पशन ट्रैकर के हालिया निष्कर्षों में यह बात सामने आई है. सर्वे में 76 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने माना कि विचारों के सार्थक आदान-प्रदान के बजाय टेलीविजन डिबेट पर झगड़ा अधिक होता है.
‘चीखने-चिल्लाने पर भरोसा’
उत्तरदाताओं का विचार है कि ये बहस अक्सर पहले विश्व युद्ध की शैली पर आधारित होती हैं, जिसमें स्पष्ट रूप से पहचाने जाने वाले लड़ाके (वाद-विवादकर्ता) दूसरी तरफ के व्यक्ति पर और भी अधिक जोर से चीखने-चिल्लाने में विश्वास रखते हैं.
आईएएनएस सी-वोटर के सर्वे में उत्तरदाताओं से पूछा गया कि क्या वे वास्तव में मानते हैं कि टीवी न्यूज चैनल पर वास्तविक बहस की तुलना में लड़ाई-झगड़ा और चीख-पुकार अधिक होती है. इस पर सर्वे में शामिल 76 प्रतिशत ने सहमति व्यक्त की. इनमें से 77.1 पुरुष उत्तरदाताओं ने सहमति दिखाई, वहीं 74.9 महिला उत्तरदाता इस बात से सहमत दिखाई दीं.
अलग-अलग समुदायों का क्या मानना है?
जब इन सवालों को सामाजिक समूहों के समक्ष रखा गया था तो दिलचस्प आंकड़े सामने आए.
- जिन्हें कथित तौर पर उच्च जाति का कहा जाता है ऐसे 79.7 प्रतिशत हिंदू, जबकि 94 प्रतिशत ईसाई इस बात से सहमत हैं.
- इसके अलावा 78 प्रतिशत से अधिक मुसलमानों ने माना कि चैनलों पर कोई सार्थक बहस नहीं होती है, जबकि 71.6 प्रतिशत ओबीसी और 73.9 प्रतिशत एससी और एसटी वर्ग के लोगों ने कहा कि बहस से ज्यादा झगड़ा देखने को मिलता है.
- शहरी क्षेत्र में लगभग 75 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 77 प्रतिशत लोग सोचते हैं कि टीवी डिबेट में बहस से कहीं अधिक झगड़ा देखने को मिलता है.
- अगर आयु वर्ग की बात की जाए तो 18 से 44 आयु वर्ग में औसतन 75 प्रतिशत लोगों को लगता है कि कोई सार्थक बहस नहीं होती है.
'न्यूज चैनल के समाचार देखकर थक चुके हैं'
कोविड-19 महामारी ने भारत के नए मीडिया परिदृश्य को दर्शाया है. देश में 54 प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया है कि वह टीवी समाचार चैनलों को देखकर थक चुके हैं. वहीं 43 प्रतिशत भारतीय इस बात से असहमत हैं. इस सर्वे में सभी राज्यों में स्थित सभी जिलों से आने वाले 5000 से अधिक उत्तरदाताओं से बातचीत की गई है. यह सर्वे वर्ष 2020 में सितंबर के आखिरी सप्ताह और अक्टूबर के पहले सप्ताह के दौरान किया गया है.
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