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विवादित क्षेत्र में चीन 100 बार, तो हम 200 बार घुसेः सेना कमांडर

लेफ्टिनेंट जनरल एम.एम. नरवाने ने कहा- ‘चीन समझ ले, ये 1962 वाली सेना नहीं है’

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आर्मी वाइस चीफ (मनोनीत) लेफ्टिनेंट जनरल एम.एम. नरवाने ने चीन को कड़े शब्दों में चेतावनी दी है. नरवाने ने कहा कि अगर चीन ने लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LaC) पर ‘विवादित क्षेत्र’ में 100 बार अतिक्रमण किया है तो भारतीय सेना ने 200 बार ऐसा किया है. उन्होंने दावा किया कि डोकलाम गतिरोध के समय चीन ने ‘क्षेत्रीय दबंग’ की तरह काम किया था.

उन्होंने यहां भारत चैंबर ऑफ कॉमर्स में ‘डिफेंडिंग अवर बॉर्डर्स’ पर संवाद के दौरान कहा, “डोकलाम गतिरोध से स्पष्ट संकेत मिला था कि भारतीय सशस्त्र बल कमजोर नहीं पड़े.’’

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‘चीन समझ ले, ये 1962 वाली सेना नहीं है’

जब पूर्व वायु सेना प्रमुख और चैंबर की रक्षा उप समिति के सदस्य अरूप राहा ने 1962 के युद्ध से मिले सबक और उसके बाद समस्याओं से निपटने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में पूछा, तो नरवाने ने कहा-

‘‘हम अब 1962 वाली सेना नहीं हैं. अगर चीन कहता है कि इतिहास मत भूलो तो हमें भी उन्हें यही बात कहनी है.’’  

चीन की दादागीरी के सामने हम डटे रहे

उन्होंने कहा कि भारत 1962 से बहुत आगे निकल आया है और 2017 के डोकलाम गतिरोध के दौरान चीन की कोई तैयारी नहीं दिख रही थी.

उन्होंने (चीन) सोचा कि वे क्षेत्रीय दबंग बनकर निकल जाएंगे. लेकिन हम उनकी दादागीरी के सामने डटे रहे.
एम.एम. नरवाने

उन्होंने कहा कि भारतीय सशस्त्र बल किसी भी दुश्मन का मुकाबला करने में सक्षम हैं. उन्होंने कहा कि डोकलाम में गतिरोध के बाद कुछ गतिविधियों की खबरें सुनने में आई थीं.

यह खबर भी पूरी तरह गलत नहीं है. दोनों तरफ गतिविधियां रहीं. जो साल भर चलती रही हैं, साल दर साल चलती रही हैं. उन्होंने दो नयी बैरक बनाई हैं, हमने भी दो नयी बैरक बनाई हैं.
एम.एम. नरवाने

‘अगर विवादित क्षेत्र में चीन 100 बार घुसा है तो हम 200 बार घुसे हैं’

LaC पर चीन के उल्लंघन के मामले बढ़ने के संबंध में राहा के सवाल के जवाब में नरवाने ने कहा-

‘‘अगर हम कहते हैं कि चीन विवादित क्षेत्र में 100 दफा आ चुका है तो हम भी 200 बार वहां गए हैं. तो, ऐसा नहीं सोचें कि यह एकतरफा है. मुझे लगता है कि वे भी अपने वॉर रूम में यही शिकायत कर रहे हैं कि हमने कई बार यह किया है.’’  

पूर्वी सैन्य कमान के कमांडर ने 1962 के युद्ध का जिक्र करते हुए कहा कि यह भारत के लिए सेना की नहीं बल्कि राजनीतिक पराजय थी क्योंकि सेना की सभी इकाइयां डटकर लड़ी थीं.

उन्होंने कहा, ‘‘जब भारतीय सेना की इकाइयों को डटकर लड़ने को कहा गया तो उन्होंने पूरे सम्मान के साथ खुद को पेश कर दिया.’’

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