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बिहार, झारखंड, प. बंगाल में जल्द ही मॉनसून बहार

13-14 जून तक माॅनसून देगा दस्तक.

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तपती गर्मी से बेहाल बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में माॅनसून जल्द ही पहुंचने वाला है. 13-14 जून तक वहां बारिश हो सकती है.

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देश के कई हिस्से गर्मी से झुलस रहे हैं. चिलचिलाती धूप ने लोगों की परेशानी बढ़ा दी है. अब ऐसे में कोई बारिश का नाम ही ले ले तो मन को सुकून का एहसास होता है. इस साल मॉनसून मन के लिए खूब राहत लेकर आने वाला है. झमाझम बारिश होगी, खेत लहलहाएंगे, चेहरे खिलेंगे और जेब भी भरेगा.

मौसम विभाग का कहना है कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के दौरान ठीक-ठाक बारिश होगी. लांग पीरियड एवरेज के करीब 98 फीसदी बारिश होने वाली है. यानी की माॅनसून नाॅर्मल होगी. वहीं जून-सितंबर के बीच ये 100 फीसदी भी हो सकती है.

ये खबर कितनी राहत लेकर आई है ना! बारिश का नाम सुनकर झूम उठने वाले यूं तो इसके पीछे के साइंस को समझने में ज्यादा इंटरेस्ट नहीं रखते. लेकिन अच्छी बारिश किसानों के लिए वरदान लेकर आती है इतना तो जरुर जानते होंगे. क्योंकि अच्छे माॅनसून का मतलब किसानी उपज, ग्रामीण मांग और मुद्रास्फीति पर अच्छा असर पड़ना.

इसलिए एकबार बारिश को साइंस के झोल में फंसाकर देखते हैं

अच्छे माॅनसून का अंदाजा इसलिए लगाया गया है क्योंकि अल-नीनो कमजोर पड़ने की संभावना है जिससे हिंद महासागर में सकारात्मक डायपोल की स्थिति नाॅर्मल या उससे अधिक बारिश के लिए मुफीद हो सकती है.

जून से सितंबर के दौरान लांग पीरियड एवरेज के करीब 96 से 104 फीसदी बारिश को नाॅर्मल मॉनसून माना जाता है. 90 फीसदी से नीचे रहने पर बारिश कम मानी जाती है. इसी तरह 105 से 110 फीसदी बारिश को नाॅर्मल से अधिक बारिश कहा जाता है.

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अब ये देखिए कि कितने फायदे हो सकते हैं इस बारिश के-

  • किसानी उपज बढ़ती है. खाद्य मुद्रास्फीति (खाद्य महंगाई) की दर कम होती है और दालों-तिलहनों का इंपोर्ट कम होता है.
  • आर्थिक विकास मजबूत. वाटरलेवल नाॅर्मल हो जाता है जिससे पीने के पानी के लिए संकट नहीं पैदा होता.
  • हाइड्रो पावर प्लांट में पर्याप्त पानी की वजह से बेहतर बिजली की स्थिति. सिंचाई के लिए पंपों का कम यूज.
  • अच्छी खेती की वजह से ग्रामीण उपभोग को बढ़ावा मिलता है. और गैर-कृषि मजदूरी. ऑटो, एफएमसीजी, फर्टिलाइजर्स, बीज, ट्रैक्टर कंपनियों की बिक्री पर पाॅजीटिव असर पड़ता है. इससे ब्याज दरें बढ़ाने के लिए आरबीआई पर कम दबाव होता है.
  • मनरेगा जैसी योजनाओं के तहत कम काम होने से सरकारी खजाने पर दबाव कम पड़ता है.
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लकिन बेसुध होकर बारिश का मजा लेने वालों के लिए इतना ज्ञान हानिकारक न हो जाए.

क्योंकि जब बारिश की बूंदें चेहरे को छूती हैं तो कई यादें सिनेमा बनकर आंखों के सामने घूम जाती है. बचपन की छई-छप्पा-छई, जवानी का इश्क, दोस्तों के साथ गरम चाय-पकोड़े, गांव की गलियां, मिट्टी की सोंधी महक. हर किसी की अपनी अलग-अलग बारिश वाली कहानियां होती हैं.

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बचपन की छई-छप्पा-छई

जवानी का इश्क

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इस तेज बारिश में दोस्त गिर जाए तो डबल मजा!

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और तब कितना बुरा लगता है. जब बाहर बारिश हो रही हो और खिड़की की कांच से ही बरसती बूंदों को देखने की मजबूरी होती है. ऑफिस के बाहर भीगते लोग दिखते हैं. मन मसोस कर रह जाना पड़ता है. ओह्ह..!

इस बार की बारिश में आपको मन न मसोसना पड़े इसलिए एडवांस में आपको हैप्पी माॅनसून!

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