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भारत में मंदी के कारण पिछड़ रही दुनिया की इकनॉमी-IMF

आईएमएफ ने कहा भारत इस समय गंभीर सुस्ती के दौर में है नीतिगत उपाय करने की जरूरत है.

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भारतीय इकनॉमी की हालत इन दिनों काफी खराब है. मंदी का दौर खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. अब अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने भी ये बात कही है. आईएमएफ ने कहा है कि भारत इस समय गंभीर सुस्ती के दौर में है और सरकार को इसे उबारने के लिए तत्काल नीतिगत उपाय करने की जरूरत है.

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सोमवार को जारी रिपोर्ट में आईएमएफ के निदेशकों ने लिखा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में पिछले सालों में जो जोरदार विस्तार हुआ है उससे लाखों लोगों को गरीबी से निकालने में मदद मिली. हालांकि 2019 की पहली छमाही में कई कारणों के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार स्लो हो गई है.

आईएमएफ ने बताया है कि भारत की आर्थिक मंदी का असर दुनिया के आर्थिक वृद्धि के अनुमानों को कम कर रहा है. आईएमएफ के वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक (डब्ल्यूईओ) में भारत में आर्थिक मंदी की वजह से वैश्विक आर्थिक वृद्धि अनुमानों में 0.1 फीसदी की कटौती की गई. इसमें 2021 के वैश्विक आर्थिक अनुमानों में 0.2 फीसदी की कटौती कर 3.4 फीसदी कर दिया गया है.

भारत में असली मुद्दा आर्थिक मंदी

आईएमएफ एशिया और प्रशांत विभाग में भारत के लिए मिशन प्रमुख रानिल सलगादो ने कहा, ‘‘भारत के साथ असली मुद्दा अर्थव्यवस्था में सुस्ती का है. हमारा अब भी मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में सुस्ती की वजह वित्तीय क्षेत्र का संकट है. इसमें सुधार उतना तेज नहीं होगा जितना हमने पहले सोचा था. यह असली मुद्दा है.’’

इस दौरान आईएमएफ ने भारत पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट भी जारी की. भारत के लिए अनुमान नीचे की ओर जाने का है. ऐसे में आईएमएफ के निदेशकों ने ठोस आर्थिक प्रबंधन पर जोर दिया है. रिपोर्ट में कहा गया है- निदेशकों को लगता है कि मजबूत जनादेश वाली नई सरकार के सामने यह सुधारों को आगे बढ़ाने का एक अच्छा मौका है.

रानिल सलगादो ने कहा कि भारत इस समय गंभीर सुस्ती के दौर में है. चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की ग्रोथ घटकर 4.5 प्रतिशत पर आ गई है जो इसका 6 साल का निचला स्तर है. इन आंकड़ों से पता चलता है कि तिमाही के दौरान घरेलू मांग सिर्फ एक प्रतिशत बढ़ी है.

सलगादो ने कहा कि इसकी वजह गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के ऋण में कमी है. इसके अलावा व्यापक रूप से ऋण को लेकर परिस्थितियां सख्त हुई हैं. साथ ही आमदनी, खासतौर से ग्रामीण आय कम रही है. इससे निजी उपभोग प्रभावित हुआ है.

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