जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने देश के 74वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कहा कि जम्मू-कश्मीर का सांस्कृतिक और धार्मिक स्वरूप सभी हमलों में सुरक्षित रहा है और हमेशा पूरे देश के लिए एक किरण के रूप में सामने आया है.
श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर क्रिकेट स्टेडियम में मुख्य स्वतंत्रता दिवस परेड को संबोधित करते हुए सिन्हा ने कहा कि जब 'द्विराष्ट्र सिद्धांत' के अनुयायी देश को विभाजित करने के लिए एक खूनी रेखा खींच रहे थे, तो जम्मू-कश्मीर के लोग राष्ट्रीय मुख्यधारा में शामिल होने के लिए खड़े थे जहां सभी धर्मों और संस्कृतियों को, जोड़ने की ताकत के रूप में माना जाता है, न कि विभाजनकारी शक्तियों के रूप में.
उन्होंने कहा, “देश की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा के लिए जम्मू-कश्मीर के लोगों द्वारा बड़े बलिदान किए गए.”
सिन्हा ने कहा, "ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह (एमवीसी) ने उरी में आक्रमणकारियों का मुकाबला किया और भारत की संप्रभुता की रक्षा के लिए अपनी आखिरी सांस तक चट्टान की तरह खड़े रहे." उन्होंने कहा, "ब्रिगेडियर उस्मान ने 1947 में आक्रमणकारियों से लड़ते हुए अपना जीवन बलिदान कर दिया और उनके अंतिम शब्द थे 'मैं जा रहा हूं, लेकिन राज्य को आक्रमणकारियों के हाथों में न जाने दें."' उपराज्यपाल ने कहा कि आक्रमणकारी पीछे हटने पर मजबूर हो गए.
उन्होंने यह भी कहा कि जम्मू -कश्मीर इस्लाम के पैगंबर की उतनी ही भूमि है जितन कि यह गौतम बुद्ध और भगवान शिव की है.
सिन्हा ने कहा, “मैं जम्मू-कश्मीर की हिंदू-मुस्लिम एकता की भावना से बहुत प्रभावित हूं और इस बात को कश्मीरी कवयित्री लल्लेश्वरी ने बखूबी कहा, जब उन्होंने कहा था कि वह हिंदू और मुस्लिम के संदर्भ में नहीं सोचतीं क्योंकि ऐसी संकीर्ण मानसिकता आपको आपके निर्माता की महानता से दूर ले जाएगी.”
अपने भाषण से पहले, उपराज्यपाल सिन्हा ने ध्वजारोहण किया और सुरक्षा बलों की टुकड़ियों का निरीक्षण किया.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)