15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजों से आजाद हुआ था, लेकिन राष्ट्रभक्त भारतीयों ने अपना पहला 'स्वतंत्रता दिवस' इससे 17 साल पहले ही मना लिया था. वो 'स्वतंत्रता दिवस' 26 जनवरी 1930 को मनाया गया था. उसका मुख्य मकसद था कि देशवासियों में राष्ट्रवादी भावना का संचार हो और ब्रिटिश सरकार आजादी की मांग को गंभीरता से ले.
इस खास दिन को कैसे मनाया जाए, इसे लेकर 'यंग इंडिया' में अपने एक लेख में महात्मा गांधी ने कुछ सुझाव दिए थे. गांधीजी ने कहा था कि ‘यह बेहतर होगा कि आजादी का ऐलान सारे गांवों और सारे शहरों में एक ही साथ किया जाए. यह और भी अच्छा होगा कि सभी जगहों पर इस संदर्भ में एक ही खास समय पर बैठकें की जाएं.’
रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब ‘इंडिया आफ्टर गांधी’ में लिखा है कि गांधीजी ने सलाह दी थी कि इन बैठकों का वक्त पारंपरिक रूप से ढोल-नगाड़ा पीटकर प्रचारित किया जाए, समारोह की शुरुआत राष्ट्रीय झंडे को फहराकर की जाए, दिन का बाकी हिस्सा रचनात्मक कामों को करके बिताया जाए, चाहे यह चरखा काटना हो, ‘अछूतों’ की सेवा करना हो, हिंदू-मुसलमानों का मिलन हो या कोई काम करने से इनकार करना हो. उन्होंने कहा कि इसमें हिस्सा लेने वाले लोग यह शपथ लें कि
जनवरी 1930 के आखरी रविवार को 'आजादी का दिन' घोषित करने संबंधी प्रस्ताव लाहौर में पास किया गया था, जहां कांग्रेस अपना वार्षिक अधिवेशन कर रही थी.
इस दिन को लेकर नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, ''हर जगह लोगों की भारी भीड़ बिना किसी आवाज या शोरगुल के शांतिपूर्वक और पूर्णनिष्ठा से आजादी की शपथ ले रही थी. वो दृश्य बहुत ही प्रभावशाली था और उसमें जरूर कोई खास बात थी.''
आजादी के लिए चुना गया 15 अगस्त का दिन
1930 के बाद से हर साल कांग्रेसी मानसिकता वाले भारतीय 26 जनवरी को 'स्वतंत्रता दिवस' के तौर पर मनाने लगे. हालांकि, साल 1947 में जब भारत को आजादी मिलना तय हुई तो अंग्रेजों ने सत्ता ट्रांसफर का दिन 15 अगस्त तय किया.
रामचंद्र गुहा ने लिखा है कि इस दिन को वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने चुना था क्योंकि इसी दिन दूसरे वर्ल्ड वॉर में मित्रराष्ट्रों के सामने जापानी सेना के सरेंडर की दूसरी बरसी थी.
वहीं, अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के एक आर्टिकल में लिखा गया है, लॉर्ड माउंटबेटन को ब्रिटिश संसद ने 30 जून, 1948 तक सत्ता ट्रांसफर करने के लिए मेंडेट दिया था. अगर उन्होंने जून 1948 तक इंतजार किया होता, तो सी राजगोपालाचारी के शब्दों में, ट्रांसफर के लिए कोई सत्ता बाकी नहीं रहती.
उस समय, माउंटबेटन ने दावा किया था कि तारीख को पहले खिसकाकर, वह सुनिश्चित कर रहे थे कि कोई रक्तपात या दंगा न हो. हालांकि, बाद में जब स्थिति कुछ और दिखी तो उन्होंने यह कहकर खुद को सही साबित करने की कोशिश की, कि “जहां भी औपनिवेशिक शासन खत्म हुआ है, वहां रक्तपात हुआ है. यह वो कीमत है, जिसको आप चुकाते हैं. ”
आखिर में बात करते हैं कि पहली प्रतीकात्मक आजादी और वास्तविक आजादी पर लोगों के व्यवहार में क्या अंतर था. इसे लेकर गुहा ने लिखा है कि जब 26 जनवरी 1930 को पहली बार 'स्वतंत्रता दिवस' मनाया गया था तो लोग ‘औपचारिक रूप से अनुशासनबद्ध थे’ (जैसा नेहरू ने खुद अनुभव किया था), लेकिन जब 1947 में आजादी का वास्तविक दिन आया तो लोग स्वाभाविक रूप से खुशी से झूम उठे थे.
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