बेतहाशा बढ़ रही महंगाई के बीच भारत ने गेहूं के निर्यात (Ban On Export Of Wheat) पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया है. यह फैसला एनुअल कंज्यूमर प्राइस इंफ्लेशन के आठ सालों में सबसे ऊंची दर (7.79 फीसदी) पर पहुंचने के एक दिन बाद लिया गया है. बता दें इस दौरान रिटेल फूड इंफ्लेशन 8.38 फीसदी के और भी ज्यादा स्तर पर पहुंच गया है.
कॉमर्स डिपार्टमेंट के नोटिफिकेशन के मुताबिक, अब गेहूं के सिर्फ दो तरह के निर्यात को ही अनुमति प्राप्त होगी- 1) भारत सरकार से अनुमति प्राप्त निर्यात, जो दूसरे देशों की खाद्य सुरक्षा के लिए जरूरी हैं, जिसके लिए वहां की सरकारों ने भारत सरकार से अनुमति मांगी हो. 2) ट्रांजिशनल एग्रीमेंट के तहत निर्यात हो रहा हो. मतलब पहले से ही कोई पुख्ता समझौता हो रखा हो. लेकिन इसके लिए दस्तावेज जमा करने होंगे.
बता दें रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते दुनिया के कई देश गेहूं की पूर्ति के लिए भारत से आस लगाए हुए थे. यूरोप में रूस गेहूं का सबसे बड़ा निर्यातक है. वहीं भारत, चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है. लेकिन मार्च में हीटवेव के चलते बड़े पैमाने पर गेहूं की फसल का नुकसान हुआ, ऊपर से बढ़ती महंगाई को काबू में करने के लिेए भारत को यह कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा.
भारत के रुख में अचानक आया बदलाव, कांग्रेस ने साधा निशाना
इससे पहले अपनी जर्मनी यात्रा के दौरान भी प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय मूल के लोगों के एक कार्यक्रम में कहा था कि दुनियाभर में चल रही गेहूं की कमी के दौर में भारत के किसान दुनिया को निवाला देने के लिए आगे आ चुके हैं.
इस बीच कांग्रेस ने गेहूं खरीद के लक्ष्य और गेहूं खरीद को लेकर सरकार पर निशाना साधा है.
बता दें भारत का हाल तक यही रुख यही रहा था कि गेहूं के निर्यात को कम नहीं किया जाएगा, लेकिन अब खुद की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए भारत को यह कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा है.
पढ़ें ये भी: Russia Ukraine War: यूक्रेन में 35% कम हुई गेहूं की फसल, वैश्विक कमी की आशंका
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)