भारत में कोरोना वैक्सीन की अलग-अलग कीमतों को लेकर सरकार की आलोचना हो रही है. सीरम इंस्टीट्यूट और भारत बायोटेक ने अपनी-अपनी कोविड वैक्सीन की कीमतों का ऐलान किया है, जिसमें सरकारी और प्राइवेट के लिए अलग-अलग कीमतें तय की हैं, जिसके बाद से सरकार पर सवाल उठाए जा रहे हैं. भारत सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा है कि वैक्सीन की कीमतों को उलझाया जा रहा है. वहीं, देश के पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने इसे ‘मुनाफाखोरी’ करार दिया है.
वैक्सीन की कीमतों को लेकर जहां इतने सवाल उठ रहे हैं, वहीं एक सवाल है सप्लाई का. देश में वैक्सीन सप्लाई एक बड़ा मुद्दा है, क्योंकि प्रोडक्शन उतना नहीं है, जितनी डिमांड है.
अलग-अलग कीमतों और सप्लाई के मुद्दे को समझने की कोशिश करते हैं;
पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम का कहना है कि सरकार को मैन्युफैक्चरर को सही कीमत अदा करना चाहिए. साथ ही सुब्रमण्यम ने सभी को मुफ्त में वैक्सीन देने की भी वकालत की. वैक्सीन की अलग-अलग कीमतों पर उन्होंने कहा कि इससे जटिलताएं पैदा होंगी, जो गैरजरूरी हैं.
“पूरे भारत में वैक्सीन मुफ्त में लगाई जाए. वैक्सीन की अलग-अलग कीमतें और जटिलताएं, गैरजरूरी हैं, इन्हें लागू करने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. अगर सभी को मुफ्त में वैक्सीन दे दी जाएगी, तो इस मुद्दे के राजनीतिकरण से भी बचा जा सकेगा.”अरविंद सुब्रमण्यम, पूर्व आर्थिक सलाहकार
सुब्रमण्यम ने केंद्र सरकार को वैक्सीन का पूरा भार उठाने का भी सुझाव दिया.
चिंदबरम ने वैक्सीन कीमतों को बताया ‘मुनाफाखोरी’
पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने वैक्सीन की कीमतों को ‘मुनाफाखोरी’ बताते हुए कहा कि वैक्सीन की कीमतें काफी ज्यादा हैं. चिदंबरम ने कहा कि एक नजरिया ये भी है कि 150 रुपये प्रति डोज पर भी दोनों मैन्युफेक्चरर्स को थोड़ा मुनाफा हो रहा है. पूर्व वित्त मंत्री ने कहा, “अगर सच है तो 400-1000 रुपये पर ये मुनाफाखोरी होगी. शायद सरकार यही चाहती है.”
वैक्सीन की अलग-अलग कीमतें बहस का मुद्दा हैं, लेकिन इस बात पर भी गौर किए जाने की जरूरत है कि 1 मई से 18+ के लिए शुरू होने जा रहे वैक्सीनेशन प्रोग्राम के लिए सरकार वैक्सीन कहां से लाएगी?
सप्लाई, उत्पादन और बंटवारे का मुद्दा
हालांकि, कीमतों पर होती बहस के बीच, ट्रू नॉर्थ के पार्टनर, हरेश चावला ने इस मुद्दे को उठाया है. चावला ने कहा कि वैक्सीन की कीमतें हमें वैक्सीन सप्लाई, वैक्सीन आवंटन और वैक्सीन के बंटवारे से भटका रही है. चावला ने मांग की कि वैक्सीन को लेकर जानकारियां पब्लिक की जाएं.
इसमें कितने ऑर्डर दिए गए, कितने ऑर्डर प्रक्रिया में हैं, पूरी हो चुकी पेमेंट और डिलीवरी शेड्यूल जैसी बातें हैं.
एक उदाहरण देते हुए चावला ने कहा कि जब फूड डिलीवरी सर्विस पल-पल के अपडेट्स दे सकती है, तो सरकार वैक्सीन की जानकारी क्यों नहीं दे सकती. चावला ने कहा कि अगर राज्य सरकारें सीधा मैन्युफैक्चरर और इंपोर्टर से वैक्सीन लेने की कोशिश करेंगी, तो ऑक्सीजन संकट जैसी विपत्ति पैदा हो सकती है.
चावला ने भी वैक्सीनेशन को मुफ्त करने की मांग करते हुए लिखा, “ये हमारे टैक्स के पैसों से खरीदी की जा रही है. इसका आसान जवाब है- मुफ्त.”
क्यों वैक्सीन की सप्लाई है बड़ा मुद्दा?
स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े (25 अप्रैल सुबह 7 बजे तक) के मुताबिक, देश में अब तक 14.09 लाख लोगों को वैक्सीन का डोज दिया जा चुका है. इसमें से केवल 2.23 करोड़ लोगों को दोनों डोज मिली है, यानी 11.85 करोड़ लोगों को अभी एक डोज और दी जानी बाकी है.
जब देश में पहले से ही इतने बड़ी आबादी दूसरी डोज का इंतजार कर रही हो, और 1 मई से सबसे बड़े ग्रुप को वैक्सीनेशन के लिए खोल दिया जाए, तो वैक्सीन सप्लाई का मुद्दा उठना लाजिमी है.
दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन मैन्युफैक्चर, पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया हर महीने करीब 6.5 करोड़ वैक्सीन का उत्पादन कर रहा है. सीरम इंस्टीट्यूट ने जून से अपनी क्षमता बढ़ाने की बात की है. स्वदेशी वैक्सीन, भारत बायोटेक की बात की जाए तो कंपनी अभी महीने में करीब सवा करोड़ (1.2 करोड़) कोवैक्सीन का उत्पादन कर रही है.
वैक्सीनेशन में तेजी लाने के लिए भारत ने रूस की स्पुतनिक V को मंजूरी दी, लेकिन इसमें भी एक अड़चन आ गई है. रॉयटर्स की 22 अप्रैल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में स्पुतनिक V की डिलीवरी में देरी हो गई है और अब ये वैक्सीन मई के आखिर तक भारत पहुंचेगी.
स्पुतनिक V को भारत में डिस्ट्रिूब्यूट करने वाली कंपनी डॉ रेड्डी लैबोरेट्रीज ने रॉयटर्स से कहा कि वैक्सीन के पहले बैच मई की आखिर तक भारत पहुंचने की संभावना है.
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